मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू: गिरती इकनॉमी, स्वतंत्र अभिव्यक्ति फेसबुक की जिम्मेदारी?

संडे व्यू: गिरती इकनॉमी, स्वतंत्र अभिव्यक्ति फेसबुक की जिम्मेदारी?

संडे व्यू में पढ़ें प्रताप भानु मेहता, टीएन नायनन, पी चिदंबरम, एसए अय्यर और विनीता डावरा नांगिया का आर्टिकल.

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
संडे व्यू में पढ़ें देश के बड़े अखबारों के सबसे जरूरी लेख
i
संडे व्यू में पढ़ें देश के बड़े अखबारों के सबसे जरूरी लेख
(फोटो: Altered by Quint)

advertisement

फेसबुक ही क्यों सरकारी अफसर भी पक्षपाती

प्रताप भानु मेहता द इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि फेसबुक निशाने पर जरूर है लेकिन सेंसरशिप, अभिव्यक्ति की आजादी जैसे सवाल और भी ज्यादा गंभीर हैं. फेसबुक से शिकायत इसलिए सामने आयी है क्योंकि यह राजनीतिक साझीदार बनता दिख रहा है. हेट स्पीच से लेकर फेक न्यूज तक आम यूजर के सामने पारदर्शिता नहीं रही. उसके पास असीमित शक्ति हो गयी जो आम लोगों की सोच को तय करने लगा. वॉल स्ट्रीट की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक के अहम पदाधिकारी अंधाधुंध रानीतिक पक्षपात कर रहे हैं ऐसी धारणा बन जाने के बाद ही शिकायतें सामने आयीं.

मेहता लिखते हैं कि फेसबुक से शिकायत के रूप में जो चुनौती सामने आयी है उसका कोई हल नहीं दिखता. इसकी वजह है कि पदाधिकारी के प्रति शिकायत परोक्ष रूप से है. चुनौती यह है कि प्राइवेट कंपनी होकर भी फेसबुक की उपयोगिता सार्वजनिक है.

स्वतंत्र अभिव्यक्ति की जिम्मेदारी इसने ले ली है. अब तक यह भूमिका सरकार की थी. मेहता बताते हैं कि यह विचित्र बात है कि फेसबुक पदाधिकारी के राजनीतिक झुकाव को चुनौती नहीं दी जा रही है. वे लिखते हैं कि सरकारी पदाधिकारी जो किसी दल से नहीं होते, उनकी ओर से भी ऐसा किया जा रहा है और वे नियमों को तोड़ रहे हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों खुद को पीड़ित बता रही है. सच्चाई यह है कि सेंसरशिप भी पक्षपात होती है. चूकि सोशल मीडिया मूल बातों को नये सिरे से व्यक्त करता है इसलिए यह तोड़-मरोड़ कर व्यक्त होता है. सेंसरशिप चाहे जिसकी ओर से यह और भी भेदभावपूर्ण हो जाएगा.

80-90 के दशक वाली वृद्धि दर का दौर!

टीएन नायनन बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखते हैं कि सबसे तेज रफ्तार से बढ़ती अर्थव्यवस्था सबसे तेज रफ्तार से सिकुड़ने लगी है. मंदी के कारण रिकॉर्ड वित्तीय घाटे और रिकॉर्ड सार्वजनिक कर्ज की स्थिति ही नहीं बन रही है बल्कि बैंकों और कंपनियों के लिए दोहरे बैलेंस शीट के संकट जैसी चुनौतियों का खतरा पैदा हो गया है. इन सबका नतीजा क्या यह होगा कि 7 प्रतिशत की हमारी वृद्धि क्षमता 5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगी? ऐसा नहीं है.

नायनन लिखते हैं कि अब तक किसी ने यह नहीं कहा है कि भारत की आर्थिक वृद्धि क्षमता 1980 या 1990 के दशक वाले दौर में पहुंच जाएगी जब यह 5.5 से 6 प्रतिशत हुआ करती थी. मगर, कहा यह जा रहा है कि आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट न तो ‘यू’ की तरह होगी, न ‘डब्ल्यू’ या ‘एल’ की तरह.

एक नयी अवधारणा ‘के’ की तरह होगी. नायनन लिखते हैं कि 2008 की मंदी के बाद से विभिन्न देशों, आर्थिक क्षेत्रों, कंपनियों और आम लोगों के बीच भी जीतने और हारने वालों के बीच की खाई चौड़ी होती चली जा रही है. चीन दुनिया भर में खरीददारी में जुटा है. कहीं बंदरगाह खरीद रहा है तो कहीं वित्तीय सहायता दे रहा है. वहीं भारत में निवेशक परेशान हैं और रोजगार छिन गया है. अंबानी और अडानी का एकाधिकार बढ़ रहा है. बड़ी मछलियां मोटी होती जा रही हैं. जाहिर है कि महामारी सिर्फ इसकी वजह नहीं है.

रसातल में अर्थव्यवस्था

पी चिदंबरम द इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (CSO) ने आखिरकार सरकार की ओर से कही जा रही कहानी का भंडाफोड़ कर दिया है. पहली तिमाही की जीडीपी में 23.9 फीसदी की भारी गिरावट का मतलब यह है कि जून 2019 में जितनी जीडीपी थी उसे बीते एक साल में नष्ट कर दिया गया है. उत्पादन गंवाने का मतलब है नौकरियां खत्म, आय के साधन खत्म और निर्भर लोगों की परेशानियां अधिकतम. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकॉनोमी (सीएमआईई) का आकलन है कि महामारी के दौरान 12 करोड़ 10 लाख नौकरियां खत्म हो गयी हैं.

चिदंबरम लिखते हैं कि ईश्वर को दोष न दें. कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी की विकास दर के लिए किसानों और भगवान का शुक्रिया अदा करें.

आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के हवाले से चिदंबरम ने लिखा है कि इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि प्राय: सभी इंडीकेटर आर्थिक गतिविधियों में गिरावट का संकेत दे रहे हैं. असामान्य आर्थिक स्थिति, रोजगार, मुद्रास्फीति और आमदनी को लेकर आरबीआई के एक सर्वे में भारी निराशा का भी उल्लेख लेखक ने किया है.

चिदंबरम बताते हैं कि भारत में आर्थिक क्षेत्र में गिरावट का दौर महामारी से पहले से जारी है. नोटबंदी के बाद से ही अर्थव्यवस्था 8.2 से गिरती हुई 3.2 के स्तर पर आ चुकी थी. अर्थव्यवस्था में बेहतरी के लिए लेखक विभिन्न उपलब्ध स्रोतों से धन इकट्ठा कर तीन उपाय सुझाते हैं- गरीबों में नकद का हस्तांतरण, पूंजीगत खर्च और जीएसटी का घाटा पाटने की कोशिश. वे खाद्यान्न के अतिरिक्त भंडार को गरीबों तक पहुंचाने और राज्यों तक शक्तियों का विकेंद्रीकरण करने की जरूरत भी बताते हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

बरखा शर्मिंदा हैं कि उनका अतीत है टीवी मीडिया

बरखा दत्त आउटलुक इंडिया में लिखती हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की त्रासदी की कवरेज बताती है कि भारत में टेलीविजन पत्रकारिता कितनी खतरनाक हो गयी है. भीड़ का उन्माद पैदा किया गया है. हर रात भेड़ियों का एक दल इसी मकसद से टेलीविजन स्टूडियो से शिकार के लिए निकलता है. टीवी के प्राइम टाइम पर यह छाया हुआ है. यह बात और भी शर्मनाक इसलिए है क्योंकि कोविड-19, लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध, बेरोजगारी, बंद स्कूल, जीएसटी की कमी जैसे मुद्दे प्राइम टाइम से गायब हैं.

बरखा लिखती हैं कि टीवी ने लोगों के व्यक्तिगत जीवन पर फैसले करने शुरू कर दिए हैं. व्हाट्सएप की व्यक्तिगत बातचीत तक को प्रसारित किया गया. गपशप को खबर बनाकर पेश किया गया. यहां तक कि कार और डिलीवरी ब्वॉय का पीछा किया गया.

बरखा लिखती हैं कि कभी जिस टीवी मीडिया में वह काम करती थीं, आज उस पर शर्म आती है. वह हैरानी जताती हैं कि जो लोग खुद को अलग दिखाने का दावा करते थे वह भी इस मुद्दे को मसालेदार ढंग से पेश करते नजर आए. लेखिका ने बताया है कि उन्होंने थेरेपिस्ट सुशान वाकर की स्टोरी इसलिए की क्योंकि थेरेपिस्ट मानना था कि रिया ने सुशांत का इलाज कराकर अपने धर्म का पालन किया था जिसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा था. उसके बाद से वह सुशांत प्रकरण से पीछे हट गयीं.

जेटली के GST विजन को बचाने की जरूरत

एसए अय्यर ने द टाइम्स ऑफ इंडिया के स्वामीनॉमिक्स कॉलम में अरुण जेटली के जीएसटी विजन को बचाने की जरूरत बतायी है, जिसमें प्रांतों को भरोसा दिलाया गया था कि औसतन 14 प्रतिशत की दर से राजस्व में बढ़ोतरी होगी. पांच साल तक इसे सुनिश्चित रखा जाएगा. इस भरोसे के साथ ही टैक्स से जुड़े सैकड़ों नियम खत्म किए गये और दीर्घकालिक स्तर पर राजस्व में वृद्धि की कल्पना की गयी. कोविड की महामारी के कारण जीडीपी गिरी है और इस वजह से जीएसटी के राजस्व पर भी फर्क पड़ा है. मगर, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने प्रांतों को जिस तरह से जीएसटी की हिस्सेदारी देने के बदले उधार लेने की सलाह दी है, वह जेटली की भावना के बिल्कुल उलट है.

अय्यर ने लिखा है कि प्रांतों ने वित्तमंत्री की सलाह को ठुकराकर कुछ भी गलत नहीं किया है. जीएसटी पर केंद्र और प्रांतों के बीच कोई कॉरपोरेट समझौता नहीं था, बल्कि राजनीतिक समझौता था. इसका पालन केंद्र सरकार को करना चाहिए. वह खुद रिजर्व बैंक से पूरी रकम उधार ले सकती है. इससे केंद्र का राजस्व घाटा 1.25 प्रतिशत बढ़ जाएगा. इसे बर्दाश्त किया जा सकता है. मगर, वित्तमंत्री साख बचाने के लिए इसे टाल रही हैं. जेटली ने प्रांतों को पांच साल की गारंटी दी थी. ऐसे में लगता है कि केंद्र सरकार को कम से कम दो साल तक यह बोझ और उठाना ही पड़ेगा.

प्यार का क्लोन नहीं हो सकता

विनीता डावरा नांगिया ने द टाइम्स ऑफ इंडिया में इस सवाल का हल ढूंढने की कोशिश की है कि एक आदर्श प्यार को या फिर खोए हुए प्यार को दोबारा हासिल करने की कोशिश क्यों की जाए. प्यार अद्वितीय होता है. यह न तो दोबारा उसी रूप में क्लोन हो सकता है और न ही इसे दोबारा समान रूप से समान परिस्थिति में पैदा किया जा सकता है. आप कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति के साथ समान रूप से उसी शिद्दत के साथ प्यार नहीं कर सकते.

दो लोग जो प्यार साझा करते हैं वो उनकी व्यक्तिगत जरूरतों, आपसी तालमेल और प्यार करने-प्यार पाने की उनकी व्यक्तिगत क्षमता से पैदा होती है. यह हरेक का अपना गुण और अनुभव होता है और परिस्थितियां भी व्यक्तिगत रूप से विशेष होती हैं.

न तो हर किस्म का प्यार और न ही सारे संबंध समान रूप से आपकी जरूरत पूरी करते हैं. शारीरिक जरूरत तो एक पहलू होता है. हमारी भावनात्मक, आध्यात्मिक और बौद्धिक आवश्यकताएं भी होती हैं. यही कारण है कि हम अक्सर दूसरों की ओर आकर्षित होते हैं. सिद्धांत रूप में यह एक साथ कई लोगों के साथ संबंध होता है. इस तरह इस संबंध को आवश्यकता के अनुसार माना जाना चाहिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 06 Sep 2020,08:01 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT