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संडे व्यू: J&K में त्रासदी का अंत नहीं, नायक पूजा से देश को नुकसान

“भारत के लिए बेहतर नीति है ‘सारे जहां से अच्छा…’ ”

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भारत
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संडे व्यू में पढ़ें देश के बड़े अखबारों के सबसे जरूरी लेख 
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संडे व्यू में पढ़ें देश के बड़े अखबारों के सबसे जरूरी लेख 
(फोटो: Altered by Quint)

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जनता को चाहिए इंग्लिश मीडियम स्कूल

शेखर गुप्ता बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखते हैं कि मोदी सरकार की नयी शिक्षा नीति के तहत 5वीं या फिर 8वीं तक की पढ़ाई मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा और घरेलू भाषा में कराए जाने की जो योजना है वह जमीनी स्तर पर आम लोगों की आकांक्षाओं से मेल नहीं खाती. प्रस्तावित शिक्षा नीति में त्रिभाषा फॉर्मूले में दो भारतीय भाषा होना जरूरी है. अंग्रेजी विदेशी भाषा है. लेखक का मानना है कि अंग्रेजी अब विदेशी नहीं अंतरराष्ट्रीय भाषा बन चुकी है जो अलग-अलग देशों में अलग-अलग रूपों में मौजूद है. उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम यह किंग्स इंग्लिश से सिंह्स इंग्लिश के तौर पर मौजूद है.

शेखर गुप्ता लिखते हैं कि देश की जनता इंग्लिश मीडियम चाहती है. इसलिए संभव है कि सार्वजनिक रूप से जो कहा जाए, वास्तविकता में उसका उल्टा हो. वे बिहार और बंगाल के उन चुनावों का जिक्र करते हैं जब लालू प्रसाद और वामपंथी सरकारों को उखाड़ फेंका गया था.

2005 में लालू का नारा था- “फिर से समय आ गया है अपनी लाठी को तेल पिलाओ.” जवाब में नीतीश ने नारा दिया- “लाठी में तेल पिलाकर राज करने का समय गया, अब अपनी कलम में स्याही भरकर राज करने का समय है.” 2011 में ममता बनर्जी ने नारा उछाला- “ऑए अजगह आश्चे तेरे”. जनता ने जवाब दिया- “आ, आमटी खाबो पेरे.“ मतलब ये कि अब तक सारे आम चूसते रहे लोगों को खाने के लिए अजगर यानी जनता आ रही है. ममता ने कहा उनके बच्चे ट्विंकल-ट्विंकल पढ़ें और बैरिस्टर बनें और आपके बच्चे पिउन की नौकरी के लिए भी भीख मांगें, ऐसा नहीं होगा. शेखर गुप्ता ने यूपी में योगी आदित्यनाथ को जमीन से जुड़ा नेता बताते हैं जिन्होंने खुद भगवाधारी होकर भी अपने प्रदेश में 5 हजार प्राथमिक विद्यालयों को इंग्लिश मीडियम में बदल दिया है.

जैसा कल चाहिए वैसी तैयारी आज करने की जरूरत

जूलिया स्टैम्म और जेनिफर शिरार ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि लंबे समय से हमने सामूहिक रूप से असमानता, पर्यावरण संकट, भूख, गरीबी, दमन जैसी व्यवस्थागत समस्याओं को नजरअंदाज किया है. कोविड-19 ने इन समस्याओं से जूझने के लिए हमें विवश कर दिया है. तकनीक के इस युग में हम यह सोचते हैं कि ये समस्याएं भी टेक्नोलॉजी दूर कर देंगी, तो यह बात साफ है कि अकेले टेक्नोलॉजी हमें नहीं बचाएगी. हमें यह कल्पना रखनी होगी कि कल को हम कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं. तभी टेक्नोलॉजी वर्तमान से भविष्य की दुनिया के बीच सेतु का काम करेगी.

जूलिया स्टैम्म और जेनिफर शिरार का कहना है कि ‘द फ्यूचर प्रॉजेक्ट’ इस बदलाव को महसूस कर रहा है. दुनिया भर में इनोवेटर आत्मनिरीक्षण कर रहे हैं और वह एक्शन में दिख रहा है. भारत में शिक्षा, सूचना और गरिमापूर्ण जीवन सबको मयस्सर हो, इसके लिए सोचा जा रहा है.

कई प्रॉजेक्ट में शिक्षा और स्किल ट्रेनिंग के जरिए सशक्तिकरण की बात है. वहीं यूरोप में क्लाइमेट क्राइसिस से निबटने की चिंता दिख रही है. इनोवेटर प्राकृतिक संसाधनों के लाइफ-साइकल के बारे में सोचने लगे हैं और इसमें वैज्ञानिक सोच का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, अफ्रीका के इनोवेटर सभी बच्चों के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा, सबके लिए पोषक आहार, स्वास्थ्य चिंता

और स्वच्छ पानी को लेकर गंभीर हैं. इन प्रयासों को देखते हुए दो बातें साफ हैं. एक यह कि हमें सामूहिक रूप से कुछ अलग और गंभीर विश्लेषण और दर्शन के साथ आना होगा. और, दूसरी बात यह है कि स्थानीय और क्षेत्रीय प्राथमिकताएं अलग रहने के बावजूद हमारी समस्याएं वैश्विक तौर पर एक-दूसरे से जुड़ी हैं. इसलिए यह जरूरी है कि स्थानीय ज्ञान का विश्वव्यापी प्रॉजेक्ट में इस्तेमाल हो.

भारत के लिए बेहतर नीति है ‘सारे जहां से अच्छा…’

द टाइम्स ऑफ इंडिया में एसए अय्यर ने अपने नियमित कॉलम स्वामीनॉमिक्स में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के बजाए ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ को देश के लिए जरूरी रास्ता बताया है. अय्यर लिखते हैं कि अमेरिकी विदेश सचिव माइक पॉम्पियो ने कहा है कि चीन के अधिनायकवाद का सामना करने के लिए लोकतांत्रिक देशों को एकजुट होने की जरूरत है. मगर, अमेरिका ने खुद यूरोप से लेकर भारत तक के साथ अपने संबंध खराब कर लिए हैं.

वास्तव में यह लड़ाई उच्च तकनीकी स्तर पर लड़ी जाने वाली है. चीन ने इस दिशा में बढ़त ले ली है जबकि अमेरिका अपनी लय खोता जा रहा है. भारत इस रास्ते पर जुटा हुआ है और नेहरू के ‘संतुष्ट भारत’ से आगे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के रास्ते पर है. भारतीय उद्योदपतियों का चीन पर यह आरोप निराधार है कि वह सस्ते श्रम और सब्सिडी का इस्तेमाल कर सस्ता निर्यात कर रहा है. सच यह है कि चीन तकनीक के मामले में काफी आगे बढ़ चुका है. उसकी 5जी तकनीक बढ़त ले चुकी है.

अय्यर लिखते हैं कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2025 तक चीन को 10 क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुंचाने का प्लान तैयार कर लिया है. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और स्पेस टेक्नोलॉजी शामिल हैं.

वे लिखते हैं कि अमेरिका ने शीत युद्ध इसलिए जीता था क्योंकि सोवियत संघ को उसने तकनीक में पीछे छोड़ दिया. भारत भी चीन का मुकाबला तभी कर सकता है जब वह तकनीक के क्षेत्र में विश्वस्तर पर सहयोग व सहभागिता के साथ सर्वश्रेष्ठ वस्तु का उत्पादन करे. भारत के पास ऊंचे स्तर की दक्षता है जिसकी दुनिया अनदेखी नहीं कर सकती. ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ की नीति ही सही नीति होगी. भारी-भरकम टैक्स नियमों में महंगे उत्पाद पैदा कर आत्मनिर्भर भारत से चीन का मुकाबला नहीं किया जा सकता.

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जम्मू-कश्मीर में त्रासद कथा का अंत नहीं

पी चिदंबरम द इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि जम्मू-कश्मीर में त्रासद कथा का अंत नजर नहीं आता. एक स्थानीय नेता के हवाले से वे लिखते हैं कि “जम्मू कश्मीर एक बड़ी जेल है.” तथ्यों के हवाले से पी चिदंबरम लिखते हैं कि 2001 से 2013 के बीच आतंकी घटनाओं से लेकर सीज फायर उल्लंघन और घुसपैठ की घटनाओं में भारी कम आ चुकी थी. मगर 2014 से, और खासकर 2017 के बाद से कठोरता और बाहुबल की नीति से हिंसा में जोरदार बढ़ोतरी हुई.

बीते साल 5 अगस्त के बाद से, जब प्रदेश में धारा 370 खत्म किया गया और राज्य को दो हिस्सों में बांट कर केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया, इलाके में मरघट सी शांति है. सभी प्रमुख मौलिक अधिकार निलंबित हैं और जनसुरक्षा कानून व गैर कानूनी गतिविधियां निरोधक कानून का बोलबाला है. जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के लिए कोई जगह नहीं है और अघोषित सेंसरशिप लागू है.

लेखक बताते हैं कि पर्यटकों की संख्या 2017 में 6 लाख 11 हजार थी, जो 2019 में मात्र 43 हजार रह गयी है. सुप्रीम कोर्ट को अभी जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन कानून की संवैधानिकता, 4 जी सेवाओं की बहाली और गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून समेत कई जनहित याचिकाओँ की सुनवाई करनी है. शेष भारत से तुलना करें तो पूर्ण लॉकडाउन के दौरान भी लोगों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत तमाम स्वतंत्रता हैं.

मगर, जम्मू-कश्मीर में इसका अभाव है. लॉकडाउन ने स्थिति और बदतर कर दी है. 5 अगस्त को नया कश्मीर बनाने निकले थे हम, लेकिन आज की स्थिति हमें बताती है कि हम पूरी तरह से नाकाम रहे हैं.

नायक पूजा से देश को नुकसान

रामचंद्र गुहाद टेलीग्राफ में याद दिलाते हैं कि दुनिया मे पहली बार ‘कल्ट ऑफ पर्सनालिटी’ यानी ‘व्यक्तित्व का पंथ’ का इस्तेमाल स्टालिन के लिए उनकी मौत के तीन साल बाद 1953 में निकिता ख्रुश्चेव ने किया था. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ सोवियत संघ की 20वीं कांग्रेस को संबोधित करते हुए ख्रुश्चेव ने व्यक्ति पूजा को मार्क्सवाद-लेनिवाद के खिलाफ बताया था.

हालांकि इससे पहले इटली में मुसोलनी, जर्मनी में हिटलर जैसे नेता हो चुके थे जिनके गिर्द ‘कल्ट ऑफ पर्सनालिटी’ का विकास हो चुका था. इसके बाद क्यूबा में फिडेल कास्ट्रो, वियतनाम में होची मिन्ह, वेनेजुएला में ह्यूगो शावेज और चीन में माओ त्से तुंग ने सत्ता का भरपूर इस्तेमाल किया. 13 अगस्त 1967 को डेली लिबरेशन आर्मी ने माओत्से तुंग को दुनिया में सबसे बड़ा जीनियस करार दिया था.

गुहा लिखते हैं कि ख्रुश्चेव से 7 साल पहले ही डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भारतीयों को ‘नायक पूजा’ को लेकर आगाह कर दिया था. उन्होंने कहा था कि ऐसा करने पर देश पतन की ओर बढ़ेगा और तानाशाही मजबूत होगी. 1970 के दशक में इंदिरा गांधी के गिर्द ऐसी ही नायक पूजा विकसित हुई. इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया के तौर पर इंदिरा भक्ति परवान चढ़ी थी.

लेखक ने बताया कि उन्होंने 2007 में ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ नामक किताब लिखी थी. उसके ठीक 7 साल बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. इनके शासनकाल में भी प्रेस को दबाने, सिविल सोसायटी को डराने जैसी स्थितियां मजबूत हुईं. आज देश में मोदी इज इंडिया और इंडिया इज मोदी का भाव है. कोविड-19 प्रभावित भारत में नायक पूजा और तेज होती दिख रही है. पीएम केयर्स फंड इसका उदाहरण है. सुपरवुमन इंदिरा की ही तरह नरेंद्र मोदी सुपरमैन हैं. भक्ति चरम पर है. नायक पूजा का इतिहास बताता है कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान देश का ही होता आया है.

कांग्रेस सेकुलर होती तो अयोध्या आंदोलन नहीं होता

तवलीन सिंह द इंडियन एक्सप्रेस में लिखती हैं कि अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद एक विवाद का अंत हो जाएगा. एक ऐसा विवाद जो होना नहीं चाहिए था. वोट बटोरने की सियासत ने इस विवाद को बनाए रखा और

यह बढ़ता चला गया. 1989 में राजीव गांधी ने राम मंदिर से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की थी और रामराज्य का वादा किया था. मगर, उनका सेकुलरिज्म झूठा था. राजीव ने कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने के लिए शरीअत पर आधारित कानून पास करवाया. तब से ‘एक विधान, एक संविधान’ का नारा देश में अधिक मजबूती से बुलंद हुआ. कांग्रेस सेकुलर होती, तो अयोध्या आंदोलन नहीं होता.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि हिन्दुत्व के उभार और नरेंद्र मोदी के शासनकाल तक वास्तव में दोष कांग्रेस का है. वह लिखती हैं कि कहने को मोदी ‘सबका विश्वास’ की बात करते हैं लेकिन उनके समर्थकों का व्यवहार बिल्कुल अलग होता है. लेखिका मुस्लिम कट्टरपंथियों को भी बाबरी विध्वंस और बाद की नफरत भरी सियासत का जिम्मेदार बताती हैं.

शिलान्यास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जाने का उल्लेख करते हुए इसका विरोध करने पर वह असदुद्दीन ओवैसी को कोसती हैं. वह कहती हैं कि सेकुलरिज्म के नाम पर ऐसा किया जा रहा है लेकिन यह सेकुलरिज्म नहीं है. आस्था सिर्फ मुसलमानों की नहीं होती, हिन्दुओं की आस्था का सम्मान भी जरूरी है. जम्मू-कश्मीर में धारा 370, सीएए-एनआरसी का विरोध जैसी राजनीतिक पृष्ठभूमि में यह शिलान्यास हो रहा है. लेखिका का मानना है कि बेवजह राम मंदिर के शिलान्यास का विरोध बंद होना चाहिए.

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Published: 02 Aug 2020,09:07 AM IST

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