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सुपरटेक (Supertech) के चेयरमैन राम किशोर अरोड़ा (RK Arora Arrested) को ईडी ने 27 जून को पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया है, आरेक अरोड़ा पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत केस दर्ज किया गया है और उन्हें 10 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में रखा जाएगा.
लेकिन आरके आरोड़ा पर क्या-क्या आरोप लगे हैं, सुपरटेक के कितने ग्राहक (Home Buyers) अपने घर के पजेशन का इंतजार कर रहे हैं, इन ग्राहकों का आगे क्या होगा और घर खरीदने वाले के लिए सबसे बड़ी सलाह क्या है? आइए समझते हैं.
सुपटेक के चेयरमैन अरोड़ा पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामला दर्ज हुआ है. दरअसल दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की पुलिस ने अरोड़ा पर कुल 26 एफआईआर दर्ज की थी. इसमें अरोड़ा पर 670 घर खरीदारों से 164 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप लगाया था.
सुपटेक ने लोगों से करोड़ों रुपये लिए थे लेकिन समय पर उन्हें उनके घरों का मालिकाना हक नहीं दिया.
दावा किया गया है कि, सुपरटेक समूह ने 2013-14 में गुरुग्राम में जमीन खरीदने के लिए ग्राहकों और घर खरीदारों से 440 करोड़ रुपये लिए जबकि नोएडा में उनके प्रोजेक्ट्स चल ही रहे थे. लोगों से घर बनाने के लिए उन्होंने जो पैसे लिए थे उससे जमीनें खरीद ली. फिर उसी जमीन को बैंकों के पास गिरवी रख कर और कर्ज उठा लिया.
ईडी ने बताया कि, सुपरटेक समूह ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिए कर्ज को नहीं लौटाया, उन्होंने लोन "डिफॉल्ट" कर दिया. सुपरटेक के ऐसे लगभग 1,500 करोड़ रुपये के कर्ज अब एनपीए बन गए हैं और बैंकों ने उन्हें फ्रॉड की श्रेणी नें डाल दिया है.
ईडी ने कहा कि, "इसी तरह, सुपरटेक ने उसी समय पर एक अन्य शेल कंपनी के नाम पर जमीन हासिल करने के लिए 154 करोड़ रुपये का दुरुपयोग किया था. इसके अलावा, 40 करोड़ रुपये एक अन्य शेल कंपनी को दिए गए और दिल्ली में उसके नाम पर जमीन खरीदी गई."
ईडी ने कहा कि, कंपनी और उसके प्रमोटरों ने अपने प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के बजाय फंड को शेल कंपनियों में भेज दिया. ये प्रोजेक्ट आज तक अधूरे ही पड़े हैं.
इसके वैसे तो कई कारण हो सकते हैं लेकिन एक कारण जो बताया जा रहा है वह ये है कि पिछले साल अगस्त में जब नोएडा में सुपटेक के ट्विन टावर को गिराने का आदेश आया उसके बाद से कंपनी को बुरी तरह से झटका लगा हुआ है. अदालत ने कहा था कि टावर को गिराने का खर्च भी सुपरटेक को ही देना होगा.
उस समय कंपनी को 500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. इसके अलावा नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की दिल्ली बेंच ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की याचिका पर सुपरटेक के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही का आदेश दिया था क्योंकि सुपरटेक ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के लगभग 432 करोड़ रुपये के कर्ज को नहीं चुकाया था. हालांकि बाद में एनसीएलटी ने सुपरटेक की एक ही कंपनी को दिवालिया घोषित किया था.
रियल एस्टेट सेक्टर पहले से ही संकट के दौर से गुजर रहा है, उसके बाद पिछले साल से सुपरटेक भी बड़े संकट में फंसता दिख रहा है. 1988 में स्थापित सुपरटेक लिमिटेड ने दिल्ली-एनसीआर में अब तक लगभग 80,000 अपार्टमेंट बनाकर दिए हैं.
बैंगलुरु के मंत्री सेरेनिटी होम बायर्स फोरम के प्रिंसपल सेक्रेटरी और कर्नाटक होम बायर्स फोरम के संचालक धनंजय पद्मानाभाचार ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा है कि, "घर खरीदारों का हित कंज्यूमर कोर्ट और रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA) के तहत सुरक्षित है. ग्राहकों को रेरा के पास जाकर शिकायत करनी चाहिए ताकी उन्हें न्याय मिल सके."
घर खरीदारों के लिए लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट चंद्रचूड़ भट्टाचार्य ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा:
धनंजय पद्मानाभाचार ने क्विंट हिंदी से बातचीत में जोर दे कर कहा कि, "किसी भी घर खरीदार को एडवांस पेमेंट देकर घर खरीदने के बारे में विचार नहीं करना चाहिए, जब तक कि बिल्डर घर बना कर न दे दे जिसे रेडी टू मूव इन कहा जाता है, मतलब जब तक घर पूरा न तैयार हो जाए तब तक पेमेंट ना करें, बिल्डर को सारे अप्रूवल मिलने के बाद और घर पूरी तरीके से, सारी सुविधाओं के साथ तैयार होने के बाद ही खरीदें."
घर खरीदारों के लिए लड़ रहे धनंजय पद्मानाभाचार ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि, सुपरटेक जैसा ही मामला बैंगलुरु में पहले आ चुका है. यहां के मंत्री डेवलपर्स ने 2010 में घर खरीदारों से एग्रीमेंट किया था और 2015 तक कब्जा देने का वादा किया था लेकिन सालों से घर का कब्जा नहीं दिया.
धनंजय पद्मानाभाचार ने आगे बताया कि, "हमने 2020 में केस दर्ज किया, इसके बाद कमिश्नर से सिफारिश लगवाकर केस ईडी के पास गया, ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया और मंत्री डेवलपर्स के हेड को गिरफ्तार किया, 10 दिन वह अंदर रहा और फिर रिहा हो गया. हाई कोर्ट ने कहा कि, जब तक घर खरीदारों का मसला हल नहीं हो जाता तब तक ईडी कोई कार्रवाई नहीं कर सकता. इस फैसले की गाज हम पर ही गिरी है और परेशान भी हम ही हो रहे हैं."
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