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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल को दिल्ली हाई कोर्ट (High Court) से मिली जमानत के आदेश को बरकरार रखा है. साथ ही ये भी कहा है कि हाईकोर्ट के दिल्ली पुलिस की याचिका पर फैसला होने तक हाईकोर्ट के आदेश खो मिसाल के तौर पर ना लिया जाए. इसी के साथ कोर्ट ने केस के सभी पक्षों को नोटिस भी जारी की है.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी में जहां एक्टिविस्ट के लिए तो राहत की बात है ही लेकिन साथ ही साथ हाईकोर्ट के आदेश पर थोड़ा संशय भी रखा है. आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ और उसके मायने क्या हैं?
दिल्ली पुलिस की तरफ से पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया और कहा कि एडवोकेट इस फैसले को लेकर दूसरे आरोपियों की जमानत के लिए जा रहे हैं.
तुषार मेहता का कहना है कि इस आदेश से तन्हा, नरवाल और कलिता रिहा नहीं हो रहे हैं बल्कि इस आदेश ने उन्हें ‘बरी’ कर दिया है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि ये घटना इसलिए रची गई क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे तब तीनों आरोपियों ने साजिश रची थी, जिसमें कई पुलिस ऑफिस समेत 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 लोग जख्मी हुए थे. हाईकोर्ट ने व्यापक व्याख्य की है और कहा है कि अपराध बनता ही नहीं.
इसके बाद ही कोर्ट ने कहा कि जब तक दिल्ली पुलिस की अपील पर फैसला नहीं होता है तब तक हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए. मतलब ये है कि दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश के आधार पर दूसरे आरोपी जो जेल में बंद हैं उनकी रिहाई की मांग नहीं की जा सकती.
दिल्ली पुलिस की तरफ से कहा गया कि हाईकोर्ट को जमानत पर सुनवाई करनी थी लेकिन कोर्ट ने तीनों आरोपियों को 'बाइज्जत रिहा' कर दिया है. जमानत देने के लिए कोर्ट ने 100 पेज का आदेश पारित किया है जिसमें UAPA जैसे कानून की व्याख्या की गई. दिल्ली पुलिस का कहना है कि कोर्ट को UAPA की व्याख्या करने की जरूरत नहीं थी. जो आदेश पारित हुआ है उससे न सिर्फ तीनों आरोपी रिहा हुए हैं वो बाइज्जत बरी भी हो गए हैं.दिल्ली पुलिस, कोर्ट के इस आदेश से सहमत नहीं थी इसलिए सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई है.
सु्प्रीम कोर्ट का कहना है कि हम इस बात को मानते हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को खुद कार्यवाही करने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट को देखना है कि हाईकोर्ट ने जो अपने आदेश में UAPA की व्याख्या की है, UAPA की धारा-15 की जिस तरीके से हाईकोर्ट के आदेश में व्याख्या की गई है, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ये सब काफी अहम है और इसे सुप्रीम कोर्ट को भी देखना होगा और सुनवाई करनी होगी.
नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते वक्त हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जे. भंभानी की पीठ ने कहा था कि प्रथम दृष्ट्या, UAPA की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई भी अपराध तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर नहीं बनता है. कोर्ट ने कई तथ्यों को ध्यान में रखते हुए माना कि विरोध जताना कोई आतंकी गतिविधि नहीं है.
अपने फैसले में कोर्ट ने ये भी कहा था कि विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया गया है:
हम यह कहने के लिए विवश हैं, कि ऐसा दिखता है कि असंतोष को दबाने की अपनी चिंता में और इस डर में कि मामला हाथ से निकल सकता है, स्टेट ने संवैधानिक रूप से अधिकृत 'विरोध का अधिकार' और 'आतंकवादी गतिविधि' के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है . अगर इस तरह के धुंधलापन बढ़ता है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.
अदालत ने कहा था कि इस तरह के आरोप बिना किसी आधार के यूएपीए जैसे कानून की मंशा और उद्देश्य को कमजोर करते हैं.
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