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कई ऐतिहासिक फैसले सुनाने वाले जस्टिस आरएफ नरीमन (Rohinton Fali Nariman) सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो गए हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में फ्री स्पीच, प्राइवेसी और निजी स्वतंत्रता का समर्थन किया. भारत के चीफ जस्टिस, एनवी रमना ने जस्टिस नरीमन के कार्यकाल के आखिरी दिन कहा, "मुझे लगता है कि मैं न्यायिक संस्थान की रक्षा करने वाले शेरों में से एक को खो रहा हूं."
चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "श्रेया सिंघल फैसले, पुट्टस्वामी में उनकी राय के साथ, उन्होंने इस देश के न्यायशास्त्र पर एक अमिट छाप छोड़ी है."
भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल रह चुके जस्टिस नरीमन ने 7 जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली थी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के रूप में उन्होंने लगभग 13565 मामलों का निपटारा किया.
2014 में उनकी नियुक्ति के बाद, उनका पहला सबसे बड़ा फैसला 2015 में श्रेया सिंघल का मामला था. जस्टिस नरीमन की दो जजों की बेंच ने आईटी एक्ट की धारा 66A को रद्द कर दिया था. ये धारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कथित 'आक्रामक सामग्री' पोस्ट करने जैसे आरोप में पुलिस को किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है.
फैसले में कहा गया कि विवादास्पद धारा ने न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ज्यादा अधिकार दिए, बल्कि व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन भी किया.
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने जब तीन तलाक पर 3:2 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, तो जस्टिस नरीमन उन जजों में शामिल थे जिनका मानना था कि तीन तलाक खत्म होना चाहिए. जस्टिस नरीमन ने तीन तलाक की प्रैक्टिस को 'असंवैधानिक' तक बताया था.
एक और ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में कहा था कि निजता का अधिकार, संविधान के तहत मौलिक अधिकार है.
जस्टिस नरीमन ने फैसला सुनाया कि "निजता का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 और पूरे भाग III के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है. 9 जजों की बेंच ने ने सर्वसम्मति से सुप्रीम कोर्ट के पहले के दो फैसलों को खारिज कर दिया कि निजता का अधिकार संविधान के तहत संरक्षित नहीं है.
दिसंबर 2020 में, उनकी अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए सीबीआई और एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दफ्तरों और सभी पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी लगाने का निर्देश दिया.
जस्टिस नरीमन ने हाल ही में कांवड़ यात्रा को लेकर यूपी सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को भी कहा था. जस्टिस आरएफ नरीमन और बीआर गवई की बेंच ने कहा था, "हम पहली नजर में मानते हैं कि यह हर नागरिक से जुड़ा मामला है और धार्मिक सहित अन्य सभी भावनाएं नागरिकों के जीवन के अधिकार के अधीन हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को आदेश दिया कि राजनीतिक पार्टियों को उनके उम्मीदवारों के चुनाव के 48 घंटों के अंदर उनके आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजानिक करने होंगे. जस्टिस नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने ये निर्देश दिया था.
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