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कोरोना की दूसरी लहर से चरमराए देश के हेल्थ सिस्टम पर अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सरकार को फटकार लगाई थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के सख्त रवैये पर सवाल उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगाते हुए कहा कि हाईकोर्ट्स को ऐसे आदेश देने से बचना चाहिए, जिन्हें लागू करना लगभग मुश्किल है.
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस विनीत सारण और बीआर गवई की बेंच को कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश लागू करना मुश्किल है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सभी गांव में एक महीने के अंदर एंबुलेंस पहुंचाना मुश्किल है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में करीब 97 हजार गांव हैं.
सॉलिसिटर जनरल के सबमिशन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इलाहाबाद हाईकोर्ट और दूसरे हाईकोर्ट्स के कोविड मामलों पर सुनवाई के प्रयासों की सराहना करते हैं. हालांकि, मरीजों और जनरल पब्लिक की परेशानियों को लेकर ऐसे मामलों को डील करते समय, कोर्ट, अनजाने में ऐसे आदेश दे देते हैं जो लागू करना मुश्किल होता है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 मई को यूपी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि “राज्य का पूरा मेडिकल सिस्टम ही राम भरोसे है.” हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि जल्द से जल्द राज्य के सभी नर्सिंग होम में बेडों पर ऑक्सीजन फैसिलिटी होनी चाहिए और सभी गांवों में एक महीने के अंदर कम से कम दो एंबुलेंस ICU फैसिलिटी के साथ होनी चाहिए. इसके अलावा भी हाईकोर्ट ने कई सुझाव दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश पास करते समय कोर्ट को ध्यान रखना चाहिए कि वो लागू किए जा सकते हैं या नहीं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार उसे एडवाइजरी गाइडलाइन की तरह ले और उन्हें लागू करने के लिए हरसंभव प्रयास करे.
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