उत्तर प्रदेश में कोविड मैनेजमेंट और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ सरकार को शर्मिंदा करने वाली टिप्पणी की है. गांवों और छोटे शहरों में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर बात करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि 'राज्य का पूरा मेडिकल सिस्टम ही राम भरोसे है.'
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की बेंच ने उत्तर प्रदेश में कोविड मरीजों की बेहतर देखभाल की मांग करती याचिका पर सुनवाई की है. मेरठ शहर के जिला अस्पताल में एक मरीज का शव अज्ञात मानकर मामला खत्म किया गया था. इस केस का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा,
“अगर ये हाल मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज का है, तो छोटे शहरों और गांवों में राज्य का पूरा मेडिकल सिस्टम राम भरोसे ही समझा जा सकता है.”इलाहबाद हाई कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि मेरठ के अस्पताल में मरीज संतोष कुमार को भर्ती किया गया था और वो बाथरूम में गिर गया था. कोर्ट ने कहा, "उसे स्ट्रेचर पर लेटाया गया और जिंदा रखने की कोशिश की गई, लेकिन उसकी मौत हो गई."
हालांकि, कोर्ट ने माना कि संतोष का शव डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ ने अज्ञात मानकर मामला खत्म कर दिया.
“ये मामला उस दिन रात की ड्यूटी पर रहे डॉक्टरों की बड़ी लापरवाही का है.”इलाहबाद हाई कोर्ट
'मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत कमजोर है'
इलाहबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में मेडिकल सुविधाओं पर भी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में हमने महसूस किया है कि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूदा समय में बहुत 'नाजुक और कमजोर' है.
कोर्ट ने कहा, "जब ये सिस्टम सामान्य समय में हमारे लोगों की मेडिकल जरूरत को पूरा नहीं कर पता तो इसे मौजूदा महामारी के दौरान ढहना ही था."
“अगर हम ग्रामीण इलाकों की जनसंख्या 32 लाख मानें, और क्योंकि सिर्फ 10 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC), तो एक स्वास्थ्य केंद्र पर 3 लाख लोगों का बोझ है और 3 लाख लोगों के लिए सिर्फ 30 बेड हैं. मतलब कि एक CHC सिर्फ 0.01 फीसदी आबादी की स्वास्थ्य जरूरत का ध्यान रख सकते हैं और कोई BIPAP मशीन या हाई फ्लो नेसल कैनुला नहीं है.”इलाहबाद हाई कोर्ट
कोर्ट ने ग्रामीण इलाकों में कोविड टेस्टिंग की स्थिति पर भी नाराजगी जाहिर की और गांवों-छोटे शहरों में इसे बढ़ाने को कहा.
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