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"मुझे राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं रही. यह मेरा क्षेत्र नहीं है. मेरे आसपास कई लोग हैं, जो (राजनीति में शामिल होने पर) जोर देते हैं लेकिन मैंने उस दिशा में कभी नहीं सोचा."
फरवरी 2023 में एक मराठी अखबार से बात करते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से जब पूछा गया कि वह इतने सालों तक सक्रिय राजनीति में क्यों नहीं शामिल हुईं तो उनका यही जवाब था.
ठीक एक साल बाद पार्टी इकाई के कई लोगों के मुताबिक, अब उन्हें "बारामती में सुप्रिया सुले को चुनौती देने के लिए एकमात्र योग्य उम्मीदवार" माना जा रहा है.
सुप्रिया (ताई) के खिलाफ सुनेत्रा वहिनी (भाभी) को खड़ा करने की अटकलें पिछले कुछ महीनों से चल रही हैं लेकिन अब पिछले कुछ हफ्तों से अजित पवार के कंट्रोल वाली एनसीपी के कई वर्गों की ओर से उन्हें मैदान में उतारने की आधिकारिक मांग तेज हो गई है.
बारामती एनसीपी प्रमुख संभाजी ने कहा, "बारामती की पूरी पार्टी इकाई जिसमें मैं भी शामिल हूं, चाहते हैं कि वहिनी चुनाव लड़ें. वह वर्षों से सामाजिक कार्यों में लगी हुईं हैं. हालांकि महायुति द्वारा तय किया गया कोई भी उम्मीदवार हमें स्वीकार्य होगा लेकिन हम चाहते हैं कि वहिनी को चुनाव लड़ना चाहिए." बारामती एनसीपी प्रमुख संभाजी होल्कर ने क्विंट से वही बात दोहराई है जो पिछले हफ्ते राज्य एनसीपी प्रमुख सुनील तटकरे ने कही थी.
सुले ने अब तक की रिपोर्टों को खारिज करते हुए कहा, "लोकतंत्र में किसी को भी चुनाव लड़ने का अधिकार है."
चलिए आपको बताते हैं कि सुनेत्रा के आसपास बन रहे राजनीतिक मूड के चार अहम फैक्टर क्या हैं:
अजीत पवार के खेमे से बारामती के एक और पदाधिकारी ने कहा, "ऐसा कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं है, जिसके पास सुप्रिया ताई के खिलाफ जीतने की कोई संभावना हो."
हालांकि, जून 2023 में पार्टी के विभाजन के बाद से बारामती सहित अधिकांश पदाधिकारियों ने अजीत पवार का पक्ष लिया है लेकिन वह सुले के खिलाफ 'गैर-पवार' को मैदान में नहीं उतारना चाहते.
चार दशकों से यह निर्वाचन क्षेत्र पवार परिवार का गढ़ रहा है.
इस कोशिश को कई लोग 'पवार परिवार के मतदाताओं' को अपने साथ जोड़ने के अंतिम प्रयास के रूप में देख रहे हैं जो भले ही अजित के साथ हैं लेकिन फिर भी लोकसभा चेहरे के रूप में सुले के साथ होंगे.
अजित पवार का ये बयान 'मेरे साथ अन्याय हुआ है और बहुत लंबे समय तक दरकिनार किया गया है' जैसे कई बयानों में से एक है. बारामती में अजित का जीतना परसेप्शन गेम के लिए बड़ी जीत होगी कि उन्होंने 'पार्टी को चुरा लिया और शरद पवार को धोखा दिया'.
पूरे निर्वाचन क्षेत्र में अपने व्यक्तिगत जुड़ाव और समर्थन का फायदा उठाने के लिए, उन्होंने यहां तक कह दिया- "अगर लोकसभा में उनका उतारा गया उम्मीदवार नहीं जीतता है तो वह बारामती में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे."
बारामती के लिए सुनेत्रा वहिनी अजित पवार की पत्नी से भी बढ़कर हैं. पार्टी के कई स्थानीय और राज्य नेता सुनेत्रा पवार के सक्रिय रूप से वर्षों के सामाजिक कार्यों की ओर इशारा कर रहे हैं जो उन्हें सुप्रिया सुले जैसी तेज तर्रार सांसद के खिलाफ एक योग्य उम्मीदवार बनाते हैं.
धाराशिव (पूर्व में उस्मानाबाद) में जन्मी सुनेत्रा पूर्व कैबिनेट मंत्री और सांसद पद्मसिंह पाटिल की बहन हैं जो एनसीपी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. 2000 से सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल सुनेत्रा ने 2010 में एनवायर्नमेंटल फोरम ऑफ इंडिया नामक एक एनजीओ की स्थापना की, जो इको विलेज विकसित करने की दिशा में काम करता है.
उनकी कोशिशों की वजह से पिछले कुछ सालों में उन्हें राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली. साल 2006 से, वह बारामती हाई-टेक टेक्सटाइल पार्क की अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं जिसमें 15,000 से अधिक महिलाएं काम करती हैं.
बारामती के मतदाता, सुनेत्रा पवार को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते हैं जो अजित पवार के साथ दृढ़ता से खड़ी हैं और कभी-कभी, उनकी अनुपस्थिति में कार्यक्रमों और बैठकों में उनका प्रतिनिधित्व करती हैं. वह असल में कभी भी मीडिया से बात करने से नहीं कतराती हैं - चाहे वह पार्टी के विचारों का प्रतिनिधित्व करना हो या अपनी सामाजिक कामों को बढ़ावा देना हो.
सुले के लिए मतदाता और कैडर दोनों के आंकड़े निस्संदेह अस्थिर हैं. बारामती लोकसभा की छह विधानसभा सीटों में से एनसीपी, कांग्रेस और बीजेपी के पास दो-दो सीटें हैं - बारामती (एनसीपी), इंदापुर (एनसीपी), पुरंदर (कांग्रेस), भोर (कांग्रेस), दौंड (बीजेपी), और खड़कवासला ( बीजेपी).
2009 के बाद से पिछले तीन लोकसभा चुनावों में, सुले ने आरामदायक जीत का अंतर बनाए रखा है. हालांकि, बीजेपी एक दशक में अपना वोट शेयर दोगुना करने में कामयाब रही है. 2019 में सुले को 52.63% वोट मिले जबकि बीजेपी के उपविजेता कंचन कुल को 40.69% वोट मिले. 2009 में बीजेपी की हिस्सेदारी 20.57% थी.
2022 में, बीजेपी ने 'मिशन बारामती' शुरू किया था, जिसके बाद निर्मला सीतारमण सहित कई केंद्रीय मंत्रियों ने कैडर का मनोबल बढ़ाने के लिए निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया था.
अगर बीजेपी का वोट शेयर उसके प्रचार और कैडर की वजह से सुनेत्रा को शिफ्ट होता है, और वोटों का बंटवारा होता है तो सुले के लिए लड़ाई उम्मीद से अधिक कठिन हो सकती है.
हालांकि, अब तक कोई महत्वपूर्ण चुनाव नहीं हुआ है, इसलिए यह देखना बाकी है कि एनसीपी और सेना दोनों के वोट किस तरफ शिफ्ट होते हैं.
सबसे बड़ा फैक्टर जो सुले के पक्ष में चीजों को मोड़ने की क्षमता रखता है, वह है पार्टी में टूट के बाद से उनके और शरद पवार के लिए लोगों की सहानुभूति. एनसीपी के कई पुराने मतदाता जिन्होंने शरद पवार का शासनकाल देखा है, उनको अजित पवार का शरद पवार से 'पार्टी छीनने' का कदम अच्छा नहीं लगा है.
सुले भी 'संयुक्त परिवार' की कहानी पर भरोसा कर रही हैं. पिछले हफ्ते विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा अजित पवार के गुट को 'असली एनसीपी' बताने के बाद, सुप्रिया सुले ने मीडिया में कहा, "आप उस घर में रहते हैं जो आपके पिता के नाम पर है. क्या आप उन्हें घर से बाहर निकाल देंगे? ये भगवान राम के मूल्य हैं. अपने पिता की खातिर, वह 14 साल तक वनवास में रहें."
पिछले हफ्ते विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा अजित पवार के गुट को 'असली एनसीपी' बताने के बाद, सुप्रिया सुले ने मीडिया में कहा, "आप उस घर में रहते हैं जो आपके पिता के नाम पर है. क्या आप उन्हें घर से बाहर निकाल देंगे? ये भगवान राम के मूल्य हैं. अपने पिता की खातिर, वह 14 साल तक वनवास में रहें."
एक और फैक्टर जो हवा को आगे बढ़ा सकता है वह है जब शरद पवार खुद सुले के लिए प्रचार करना शुरू करते हैं. 11 फरवरी को पुणे में एक रैली को संबोधित करते हुए शरद पवार ने कहा था कि बारामती के लोग जानते हैं कि असल में उनके लिए किसने काम किया.
इसके अलावा, सुले का मतदाताओं से जमीनी जुड़ाव, पिछले तीन कार्यकाल में निर्वाचन क्षेत्र में किए गए विकास कार्य और इसके आसपास की पारदर्शिता जैसे फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
विकास को लेकर बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी दोनों के लगातार हमलों के बीच, सुले ने सोमवार को छह विधानसभा सीटों में किए गए कामों के ब्योरे के साथ अपना 'रिपोर्ट कार्ड' लॉन्च किया.
हालांकि काफी हद तक सहानुभूति फैक्टर साथ हैं लेकिन सुले के सामने असली चुनौती संगठनात्मक ताकत का दोबारा खड़ा करना है जो उनके पक्ष में नैरेटिव सेट करने और आखिर में सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं को बूथ तक लाने में मददगार होगी.
इस बीच,अब सभी की निगाहें सुनेत्रा पवार की उम्मीदवारी के संबंध में अजीत पवार की पार्टी के आधिकारिक फैसले पर हैं.
पवार परिवार के करीबी सूत्रों का कहना है कि सुले और सुनेत्रा के बीच हमेशा सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं जो कि जब भी उन्होंने सार्वजनिक मंच साझा किया है तब साफ तौर पर दिखा है. जब शरद पवार ने पिछले साल सुले को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया, जिसे अजित पवार की उपेक्षा के रूप में देखा गया तब सुनेत्रा ने इस फैसले का स्वागत किया था.
हालांकि यह बयान सुले के सामान्य 'शांत स्वभाव' के दायरे में आने वाला लगता है लेकिन सुनेत्रा को उनके खिलाफ मैदान में उतारने की संभावना चार दशकों में बारामती के लिए पवार परिवार की सबसे कठिन लड़ाई हो सकती है.
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