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एक सर्वे में सामने आया है कि आया है 85 फीसदी से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को अपनी घर वापसी के लिए पैसे देने पड़े. कोरोना वायरस लॉकडाउन के बाद हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर पैदल ही घर निकलने को मजबूर हो गए थे, जिसके बाद से सरकारों ने बसों और ट्रेन का इंतजाम किया था. वॉलंटियर ग्रुप स्ट्रैंडड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (SWAN) ने ये सर्वे किया है.
सर्वे में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश काफी देर से आया, क्योंकि मजदूरों को वापस लौटाने का मूवमेंट पहले ही शुरू हो गया था.द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 1963 प्रवासियों पर हुए इस ऑटोमेटेड फोन सर्वे में सामने आया कि 33 फीसदी मजदूर अपने घर लौटने के लिए कामयाब रहे, वहीं 67% अभी भी नहीं लौट पाए हैं. ये सर्वे मई के आखिरी और जून के पहले हफ्ते में किया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग घर जाने में कामयाब रहे, उसमें से 62 फीसदी ने घर लौटने के लिए 1500 से ज्यादा रुपये दिए.
रिपोर्ट में बताया कि मजदूरों की घर वापसी के पीछे केवल घर की याद ही कारण नहीं था, बल्कि नौकरी जाना एक बड़ी वजह थी. रिपोर्ट के मुताबिक, अभी शहरों में फंसे 75% लोगों के सामने काम न मिलना एक चुनौती है.
SWAN की रिसर्चर अनिंदिता अधिकारी ने कहा, "हमने पाया कि बीमारी को लेकर डर और परिवार के साथ होने की इच्छा ही उनकी घर वापसी की वजह नहीं थी. नौकरी, पैसे और खाने की कमी भी बड़ कारण था."
कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए 25 मार्च को लगाए गए पहले लॉकडाउन के बाद, हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने घर लौटना शुरू कर दिया था. देश के अलग-अलग हिस्सों से मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल गए थे. प्रवासियों के लिए सरकार ने 1 मई से स्पेशल श्रमिक ट्रेनें चलाने का ऐलान किया था.
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