advertisement
संसद के शीतकालीन शत्र के दौरान बुधवार, 20 दिसंबर को दूरसंचार विधेयक, 2023 (Telecom Bill 2023) लोकसभा से पास हो गया. लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यसभा के पास विचार के लिए भेजा जाएगा. चूंकि इसे धन विधेयक के रूप में पेश किया गया है, राज्यसभा को 14 दिनों के अंदर इसे स्वीकृति देनी होगी अन्यथा इसे राज्यसभा द्वारा पारित मान लिया जाएगा है.
यह बिल दूरसंचार विधेयक भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम (1885), भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम (1933) और टेलीग्राफ वायर (गैरकानूनी कब्ज़ा) अधिनियम, 1950 को निरस्त करके उनकी जगह लेगा.
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कुल 144 विपक्षी सांसदों को दोनों सदनों से निलंबित कर दिया गया है. परिणामस्वरूप, विवादास्पद दूरसंचार विधेयक, 2023 पर केवल 63 मिनट की बहस हुई. इसपर चर्चा शाम 4:57 बजे शुरू हुई और शाम 6 बजे तक समाप्त हो गई.
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बिल को पेश किया था. सरकार ने इस बिल को धन विधेयक के रूप में क्यों पेश किया था? आइये आपको बिल और इसके प्रावधान के बारे में विस्तार से बताते हैं.
विधेयक सुरक्षित दूरसंचार नेटवर्क के लिए एक कानूनी और नियामक ढांचा तैयार करने का प्रयास करता है. मसौदे में व्हाट्सएप, टेलीग्राम आदि संचार प्लेटफॉर्म को बिल के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव है. पहले के मसौदे में ऐसा नहीं था.
विधेयक में सरकार को सार्वजनिक आपातकाल या राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में किसी भी दूरसंचार सेवा, नेटवर्क को निलंबित करने, नियंत्रण लेने या प्रबंधित करने की शक्ति देने का प्रावधान है.
बिल में कहा गया है:
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि जो कोई भी अवैध रूप से फोन संचार को बाधित करने का प्रयास करेगा, अनधिकृत डेटा ट्रांसफर करने की कोशिश करेगा या दूरसंचार नेटवर्क तक अवैध पहुंच हासिल करने की कोशिश करेगा, उसे तीन साल तक के लिए जेल भेजा जाएगा. साथ ही, 2 करोड़ रुपये (करीब 249,000 अमेरिकी डॉलर) तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को प्रवेश शुल्क माफी, लाइसेंस शुल्क, जुर्माना आदि जैसे कदम उठाने की शक्ति दी जाए.
विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार दूरसंचार विधेयक के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन का प्रभाव, यदि यह एक अधिनियम बन जाता है, तो भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की कुछ शक्तियों पर प्रतिबंध लग जाएगा.
दूरसंचार विधेयक में किसी कंपनी द्वारा अपना परमिट सरेंडर करने की स्थिति में लाइसेंस शुल्क रिफंड, पंजीकरण शुल्क रिफंड और अधिक से संबंधित कुछ नियमों को आसान बनाने के प्रावधान भी हैं.
विधेयक में रास्ते के अधिकार प्रावधानों और सामान्य पाइपलाइन की स्थापना के माध्यम से दूरसंचार नेटवर्क के लिए रूपरेखा तैयार करने की मांग की गई है.
विधेयक के मसौदे में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि सरकार को प्रशासनिक तौर पर सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए. अब तक टेलीकॉम कंपनियों ने नीलामी में हिस्सा लिया है और स्पेक्ट्रम जीतने के लिए बोलियां पेश की हैं.
सरकारों ने पहले भी शांतिपूर्ण स्थिति कायम होने तक हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने जैसे कदम उठाए हैं. ये कदम अपने आप में बहस का विषय बना हुआ है.
लेकिन अब दूरसंचार विधेयक के मसौदे में सरकार को नेटवर्क पर "अस्थायी कब्जा" करने का अधिकार देने का प्रस्ताव है. मीडिया रिपोर्ट्स में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि 'कब्जा' क्या है और 'अस्थायी' अवधि को कैसे परिभाषित किया जाएगा.
कानून के आलोचकों ने आरोप लगाया है कि इस विधेयक के परिणामस्वरूप ट्राई केवल रबर स्टांप बनकर रह जाएगा, क्योंकि यह विधेयक नियामक की शक्तियों को काफी हद तक कमजोर कर देता है.
मसौदे में कहा गया है कि ऐसे कार्यकारी को नियुक्त किया जा सकता है "यदि ऐसे व्यक्ति के पास कम से कम तीस साल का पेशेवर अनुभव है और उसने निदेशक मंडल के सदस्य या कुछ क्षेत्रों में किसी कंपनी के मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्य किया है".
इस साल जून में ट्राई की परामर्श प्रक्रिया के दौरान एलन मस्क के स्टारलिंक, अमेज़ॅन के प्रोजेक्ट कुइपर, भारत के टाटा समूह ने नीलामी के माध्यम से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के आवंटन का विरोध किया. इस बीच, भारती एयरटेल और रिलायंस जियो ने स्पेक्ट्रम नीलामी का समर्थन किया.
सवाल यह है कि टेलीकॉम बिल 2023 को मनी बिल के तौर पर क्यों पेश किया गया. दरअसल मनी बिल को राज्यसभा में पेश तो किया जाता है लेकिन राज्यसभा सिर्फ इसमें बदलाव की सिफारिश कर सकती है. लोकसभा के लिये यह आवश्यक नहीं कि वह राज्यसभा की सिफारिशों को माने. लोकसभा में पारित होने के उपरांत उसे राज्यसभा के विचारार्थ भेजा जाता है. 14 दिनों के अंदर उसे स्वीकृति देनी होती है अन्यथा इसे राज्यसभा द्वारा पारित माना जाता है.
दूसरी बात यह है कि अगर इस बिल को साधारण बिल के तौर पर पेश किया जाता तो उसे राज्यसभा से भी पारित कराना पड़ता. अगर आप राज्यसभा की गणित को देखें तो यहां पर सत्ता पक्ष बहुमत में नहीं है. ऐसे में किसी भी बिल को पारित कराने के लिए उसे कवायद करनी पड़ती.
अब केंद्र टेलीकॉम बिल को बेहद अहम बता रही है लिहाजा किसी बिल को एक्ट बनने की दिशा में किसी तरह की बाधा ना हो इसके लिए मनी बिल की तरह पेश करना जरूरी था. लोकसभा में सरकार के पास बहुमत का प्रचंड आंकड़ा है और केंद्र ने इस बिल को बिना किसी परेशानी के पारित करा लिया.
सरकार अपनी वित्तीय योजनाओं को पूरा करने के लिए मनी बिल लाती है. ये बिल राजस्व बढ़ाने और व्यय करने के लिए कानूनी ताकत देते हैं. वित्त के प्रबंधन को पुख्ता करने के लिए सरकार के पास विषाधिकार और एक सरल विधायी प्रक्रिया है. धन विधेयक और वित्त विधेयक के बीच मुख्य अंतर यह है कि वित्त विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाता है जबकि धन विधेयक को राज्यसभा में पेश करने की जरूरत नहीं पड़ती. इसके अलावा, एक साधारण विधेयक किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है. जबकि धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined