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7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास (Hamas) के हमले के बाद फिलिस्तीन और इजरायल के बीच दोनों तरफ से मिसाइलें दागी जा रही हैं. दोनों देशों के बीच का विवाद खतरनाक मोड़ ले चुका है और रिपोर्ट के मुताबिक अब तक कम से कम 1600 नागरिकों की मौत हो चुकी है.
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच लेबनान के हिजबुल्लाह (Hezbollah) ग्रुप का नाम भी सामने आया है. रिपोर्ट के मुताबिक हिजबुल्लाह ने 8 अक्टूबर 2023 को एक बयान में कहा कि उसने सीरिया के इजरायली कब्जे वाले गोलान हाइट्स (Golan Heights) की सरहद पर स्थित विवादित शेबा फार्म्स (Shebaa Farms) में इजरायली ठिकानों पर "रॉकेट और गोले" चलाए और फिलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाई है.
ऐसे में आइए जानते हैं कि हिजबुल्लाह क्या है? इसकी शुरुआत कैसे हुई? इसके इरादे क्या हैं? यह किसके इशारों पर काम करता है? इसको कहां से मदद मिलती है? इसकी सेना कितनी ताकतवर है? इजरायल को लेकर इसका क्या रुख है और दुनिया के तमाम देश इसको किस नजर से देखते हैं?
हिजबुल्लाह का मतलब होता है- 'Party of God' यानी अल्लाह/ईश्वर की पार्टी. यह लेबनान का एक 'शिया मुस्लिम' राजनीतिक दल और अर्द्धसैनिक संगठन है. लेबनान में यह राजनीतिक दल के तौर पर काम करता है.
हिजबुल्लाह की शुरुआत क्यों और कैसे हुई, यह जानने के लिए तारीख के पन्नों में जाना पड़ेगा. यहां यह जानना जरूरी होगा कि साल 1943 तक लेबनान में फ्रांस का शासन था और इसका प्रभुत्व खत्म होने के बाद एक समझौते के तहत लेबनान की सत्ता देश के ही कई धार्मिक गुटों में बंट गई.
साल 1943 में लेबनान में एक समझौता हुआ. इसके मुताबिक धार्मिक गुटों की राजनीतिक ताकतों में बंंटवारा हुआ, जो इस तरह था...
एक सुन्नी मुसलमान ही देश का प्रधानमंत्री बनेगा
एक ईसाई राष्ट्रपति बनेगा
संसद का स्पीकर शिया मुसलमान बनेगा
लेबनान में फिलिस्तीन के शरणार्थियों के आने की वजह से देश की सुन्नी मुस्लिम आबादी बढ़ गई और शिया मुसलमान अल्पसंख्यक हो गए. सत्ता ईसाईयों के हाथ में थी, ऐसे में शिया मुसलमानों को हाशिए पर चले जाने का डर सताने लगा.
लेबनान में चल रही अंदरूनी लड़ाई के बीच, इजरायल की सेना ने साल 1978 और 1982 में फिलिस्तीन के गुरिल्ला लड़ाकों को भगाने के लिए दक्षिणी लेबनान पर हमला कर दिया और इलाके पर कब्जा कर लिया. फलीस्तीन के लड़ाके इस इलाके का इस्तेमाल इजरायल के खिलाफ हमले के लिए कर रहे थे.
साल 1979 में ईरान में सरकार बदली और उसने इस वक्त को मध्य पूर्व इलाके में दबदबा बढ़ाने के लिए अच्छे मौके के रूप में देखा. ईरान ने लेबनान और इजरायल के बीच चल रहे तनाव का फायदा उठाना चाहा और शिया मुसलामानों पर अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया और इसी के साथ साल 1982 में हिजबुल्लाह नाम के शिया संगठन की शुरुआत हुई.
Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने अपनी इस्लामी क्रांति को बढ़ाने और लेबनान पर आक्रमण करने वाली इजरायली सेनाओं से लड़ने के लिए हिजबुल्लाह की स्थापना की थी. तेहरान की शिया इस्लामवादी विचारधारा को साझा करते हुए, हिजबुल्लाह ने संगठन में लेबनान के शिया मुसलमानों को भर्ती किया.
हिजबुल्लाह खुद को शिया प्रतिरोध आंदोलन (Shiite Resistance Movement) के रूप में बताता है.
Al Jazeera की रिपोर्ट के मुताबिक हिजुबल्लाह ने 1985 में घोषणापत्र जारी किया, जिसमें खुद की पहचान पर बात करते हुए उसने कहा कि "हम मुस्लिम समुदाय के बेटे हैं और एक होशियार और इंसाफ पसंद नेता के आदेशों का पालन करते हैं."
इस घोषणापत्र के जरिए हिजुबल्लाह ने कुछ और अहम फैसले भी लिए...
लेबनान से पश्चिमी शक्तियों को बाहर निकालने की कसम खाई
इजरायल को खत्म करने का आह्वान किया
ईरान के सबसे बड़े नेता के प्रति वफादारी निभाने का इरादा किया
अमेरिका और सोवियत संघ दोनों को इस्लाम का दुश्मन घोषित किया
हिजबुल्लाह, पश्चिम एशिया में इजरायल और पश्चिमी प्रभाव का विरोध करता है. यह रूस और ईरान के साथ मिलकर, सीरिया में गृह युद्ध के दौरान राष्ट्रपति बशर अल-असद (Bashar al-Assad) के शासन का भी समर्थन कर चुका है.
हिजबुल्लाह, 2000 के दशक के बीच में लेबनान की राजनीति में ज्यादा नजर आने लगा. मौजूदा वक्त में लेबनान की 128 सदस्यीय संसद में से 13 सीटों पर हिजबुल्लाह का कब्जा है.
हिजबुल्लाह, अपने सहयोगियों के साथ यह सत्तारूढ़ सरकार का हिस्सा है लेकिन हाल के वर्षों में देश के अंदर बेरोजगारी, सरकारी लोन और गरीबी जैसे मुद्दों पर इसके काम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
मौजूदा वक्त में हिजबुल्लाह का नेतृत्व हसन नसरल्लाह (Hassan Nasrallah) कर रहे हैं. उन्होंने 1992 में इजरायल द्वारा समूह के सह-संस्थापक और संगठन के पिछले नेता अब्बास अल-मुसावी (Abbas al-Musawi) की हत्या के बाद महासचिव का पद संभाला था.
हिजबुल्लाह, लेबनान के ज्यादातर शिया-बहुल इलाकों को नियंत्रित करता है, जिसमें बेरूत, दक्षिणी लेबनान और पूर्वी बेका घाटी क्षेत्र के कुछ हिस्से शामिल हैं.
Code of Federal Regulations की रिपोर्ट के मुताबिक हिजबुल्लाह को सबसे ज्यादा मदद ईरान से मिलती है. यह हिजबुल्लाह को हथियार और धन मुहैया कराता है.
साल 2020 में US Department of State की एक रिपोर्ट के मुताबिक ईरान, हिजबुल्लाह को हर साल लगभग 700 मिलियन डॉलर की मदद भेजता है. हिजबुल्लाह को कानूनी व्यवसायों, इंटरनेशनल क्रिमिनल इंटरप्राइजेज और लेबनानी प्रवासियों से भी करोड़ों डॉलर की मदद मिलती है.
हिजबुल्लाह ने लेबनान गृह युद्ध के आखिरी में मुख्य रूप से शिया बहुल दक्षिणी इलाके पर कब्जा करने वाली इजरायली सेना से लड़ने के लिए हथियार जुटाए. कई सालों तक के गुरिल्ला युद्ध की वजह से इजरायल को साल 2000 में पीछे हटना पड़ा.
हिजबुल्लाह ने 2006 में इजरायल के साथ पांच हफ्ते की जंग के वक्त अपनी सेना की ताकत का प्रदर्शन किया. इस दौरान हिजबुल्लाह ने इजरायल पर हजारों रॉकेट दागे.
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद की मदद करने के लिए 2012 में सीरिया में तैनाती के बाद हिजबुल्लाह की सैन्य शक्ति बढ़ गई.
Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक हिजबुल्लाह दावा करता है कि उसके पास अच्छे रॉकेट्स हैं, जो इजरायल के सभी हिस्सों पर हमला कर सकते हैं.
साल 2021 में, हिजबुल्लाह नेता सैय्यद हसन नसरल्लाह ने कहा कि संगठन में एक लाख लड़ाके हैं.
इजरायल, हिजबुल्लाह का सबसे बड़ा दुश्मन है. इस दुश्मनी का इतिहास 1978 में दक्षिणी लेबनान पर इजरायल के कब्जे के वक्त से चला आ रहा है. हिजबुल्लाह को विदेशों में यहूदी और इजरायली ठिकानों पर हमलों के लिए दोषी भी ठहराया जा चुका है...
साल 1994 में अर्जेंटीना में एक यहूदी सामुदायिक केंद्र पर कार बम धमाका
लंदन में इजरायल के दूतावास पर बमबारी
साल 2000 में इजरायल के आधिकारिक तौर पर दक्षिणी लेबनान से हटने के बाद भी, उसका हिजबुल्लाह के साथ संघर्ष जारी रहा
हिजबुल्लाह और इजरायल अभी पूरी तरह से जंग के मैदान में नहीं उतरे हैं, लेकिन हिजबुल्लाह ने 2009 के अपने घोषणापत्र में इजरायल के विनाश के लिए अपना संकल्प दोहराया था.
दिसंबर 2018 में, इजरायल ने लेबनान से उत्तरी इजरायल तक जाने वाली कई मील लंबी सुरंगों के खोज का ऐलान किया. इसके बाद दावा किया गया कि इसको हिजबुल्लाह ने बनाया है. इसके एक साल बाद हिजबुल्लाह ने एक इजरायली सैन्य ठिकाने पर हमला किया.
अगस्त 2021 में लेबनान में हुए इजरायली हवाई हमलों के जवाब में हिजबुल्लाह ने एक दर्जन से ज्यादा रॉकेट दागे. 2006 के इजरायल-हिजबुल्लाह जंग के बाद यह पहली बार था, जब ग्रुप ने इजरायल पर दागे गए रॉकेट्स की जिम्मेदारी ली थी.
हिजबुल्लाह ने इजरायल पर कई बार अत्याधुनिक हथियारों से हमला किया है. रिपोर्ट के मुताबिक दावा किया जाता है कि इन हथियारों की सप्लाई ईरान करता है.
अमेरिका हिजबुल्लाह को एक वैश्विक आतंकवादी खतरे के रूप में देखता हैं. अमेरिका ने 1997 में हिजबुल्लाह को एक विदेशी आतंकवादी संगठन करार दिया था और नसरल्लाह सहित इसके कई सदस्यों को वैश्विक आतंकवादी मानता है.
बराक ओबामा के वक्त में अमेरिकी सरकार ने हिजबुल्लाह को कमजोर करने के लिए लेबनान को सैन्य मदद भेजी थी.
साल 2015 में, अमेरिकी कांग्रेस ने हिजबुल्लाह अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण रोकथाम अधिनियम (Hizballah International Financing Prevention Act) पारित किया. अमेरिका का यह एक्ट उन विदेशी संस्थानों पर बैन लगाता है, जो हिजबुल्लाह को वित्तपोषित करने के लिए अमेरिकी बैंक अकाउंट्स का उपयोग करते हैं.
इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने भी संसद में हिजबुल्लाह के कुछ सदस्यों पर प्रतिबंध लगाया.
मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन, हिजबुल्लाह के वित्तपोषण नेटवर्क से जुड़े लोगों पर प्रतिबंध लगाता रहा है. इस लिस्ट में ग्रुप की केंद्रीय वित्त इकाई के प्रमुख इब्राहिम अली डाहर (Ibrahim Ali Daher) का नाम भी शामिल है.
सितंबर 2021 में, अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने हिजबुल्लाह और ईरान को फायदा पहुंचाने के आरोप में इंटरनेशनल फाइनेंसियल नेटवर्क को टारगेट करते हुए प्रतिबंधों का ऐलान किया.
यूरोपीय संघ ने हिजबुल्लाह के लिए थोड़ा कम आक्रामक रुख अपनाया है. दक्षिण-पूर्व यूरोप में स्थित देश बुल्गारिया (Bulgaria) पर हुई बमबारी में शामिल होने और सीरिया पर शासन करने वाले असद (Bashar al-Assad) का समर्थन करने के आरोप में EU ने 2013 में हिजबुल्लाह की सैन्य शाखा को एक आतंकवादी समूह करार दिया.
2014 में यूरोपीय संघ की पुलिस एजेंसी, यूरोपोल (Europol) और अमेरिका ने यूरोप में हिजबुल्लाह की गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए एक ज्वाइंट ग्रुप बनाया.
साल 2019 में ब्रिटेन की संसद और 2020 में जर्मनी की सरकार ने हिजबुल्लाह को एक आतंकवादी संगठन करार दिया.
अप्रैल 2020 में जर्मन सरकार ने हिजबुल्लाह को आतंकवादी संगठन करार देते हुए देश में इसकी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया.
हिजबुल्लाह ने अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों के साथ गठबंधन की वजह से बड़े पैमाने पर सुन्नी खाड़ी अरब देशों को तिरछी निगाह से देखता है.
The Gulf Cooperation Council, हिजबुल्लाह को एक आतंकवादी संगठन मानता है. इस काउंसिल में इराक को छोड़कर बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे फारस की खाड़ी के देश शामिल हैं.
(इनपुट्स- Code of Federal Regulations, Al Jazeera, Reuters)
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