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हाल ही में रिलीज हुई सुदिप्तो सेन की फिल्म द केरला स्टोरी विवादों में है, साथ ही फिल्म को बंगाल में बैन भी कर दिया गया है. लेकिन आपको बता दें, केरला स्टोरी पहली फिल्म नहीं है, जिस पर केंद्र या राज्य सरकार ने पाबंदी लगाई हो. इससे पहली भी ऐसी कई फिल्में आईं, जिन्हें बैन कर दिया गया. चलिए जानते हैं ऐसी फिल्मों के बारे में और उनके बैन होने की वजह.
नीलम वेंकटेश कुमार द्वारा निर्देशित एक तमिल फिल्म है. इस फिल्म में श्रीलंकन सिविल वॉर को दर्शाया गया है और तमिल टाइगर्स सहित तमिल विद्रोही ग्रुप के उदय पर आधारित है. इस फिल्म को मंजूरी देने से इस आधार पर इनकार कर दिया गया कि यह भारत और श्रीलंका के संबंधों को नुकसान पहुंचाएगा. यही वजह रही कि सेंसर बोर्ड ने इसको रिलीज होने से पहले ही बैन कर दिया. बता दें, फिल्म में एम.एस. विश्वनाथन का गीत 'आलय ओ अलाय' है, जो उनके निधन से पहले उनका आखिरी गीत था.
साल 2017 में बनी पंजाबी फिल्म तूफान सिंह जो कि खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के सदस्य जुगराज सिंह तूफान पर आधारित थी. इसको सेंसर बोर्ड ने रिलीज से पहले ही बैन कर दिया. तूफान सिंह को फिल्म में शहीद का दर्जा दिया गया और भगत सिंह से तुलना की गई. जबकि सेंसर बोर्ड से जुड़े सूत्रों का कहना है कि फिल्म में तूफान सिंह एक आतंकवादी का रोल अदा करता है, वो नेताओं और पुलिसवालों की निर्मम हत्या करता है. हालांकि, सिख समुदाय के कुछ लोग आज भी जुगराज को शहीद मानते हैं. लेकिन पुलिस की नजर में वो आतंकी है. हालांकि सेंसर बोर्ड का कहना है कि फिल्म के वॉयलेंट कंटेंट को देखते हुए फिल्म को सेंसर बोर्ड ने बैन कर दिया. बता दें, इस फिल्म को बघेल सिंह ने निर्देशित किया है, इसमें रंजीत बावा, शिफाली शर्मा और यशपाल शर्मा ने मुख्य भूमिका निभाई है. इसके निर्माता दिलबाग सिंह हैं.
1984 के सिख नरसंहार पर बनी इस फिल्म को दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा और पंजाब में बैन कर दिया गया था. अम्तोजे मान द्वारा निर्देशित, यह फिल्म 1984 के नरसंहार के बाद के समय, वास्तविक जीवन की घटनाओं को दर्शाती है और यह दावा किया जाता है कि दिखाए गई अधिकांश सीन "सरबजीत" के आंखों देखें प्रमाणिक है.
राहुल ढोलकिया द्वारा निर्देशित, परजानिया एक और ऐसी फिल्म है, जो गुजरात में कभी रिलीज नहीं हुई. यह फिल्म 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में गायब हुए एक पारसी लड़के की सच्ची कहानी पर आधारित है. कई संगठनों ने इसे सिनेमा हॉल में रिलीज न करने की धमकी दी थी.
नंदिता दास की 2008 में बनी फिल्म फिराक को गुजरात में बैन कर दिया गया, इस फिल्म में दर्शाया गया है कि साल 2002 में हुई गुजरात हिंसा का वहां के लोगों के रोजमर्रा के जीवन पर क्या असर पड़ा. बता दें, यह फिल्म "एक हजार सच्ची कहानियों" पर आधारित होने का दावा करती है. इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह, दीप्ति नवल, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, इनामुलहक, नासर, परेश रावल, संजय सूरी, रघुबीर यादव, शाहाना गोस्वामी, अमृता सुभाष और टिस्का चोपड़ा जैसे कलाकार हैं.
अनुराग कश्यप की फिल्म जो कि 1997 में जोशी-अभ्यंकर सिलसिलेवार हत्याओं पर आधारित थी. पांच को बैन कर दिया गया. भद्दी भाषा और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण भारत में इस थ्रिलर फिल्म को रिलीज नहीं किया गया.
शेखर कपूर की इस फिल्म को 'आपत्तिजनक', 'अश्लील' और 'अशोभनीय' का टैग दिया गया था, फिल्म को इसके सेक्शुयल कंटेंट और आपत्तिजनक भाषा के चलते बैन कर दिया गया, और भारतीय सेंसर बोर्ड ने भी फिल्म को मंजूरी नहीं दी. वहीं फिल्म की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाए गए थे.
महिलाओं पर आधारित इस फिल्म ने काफी चर्चा बटोरी थी और रिलीज से पहले दर्जनों सीन फिल्म से कांटे गए थे. फिल्म पर रोक इसलिए लगा दी गई थी, क्योंकि फिल्म में कुछ अडल्ट सीन थे साथ ही फिल्म के कुछ कंटेंट को देख इसे रिलीज होने से रोक दिया गया था. यह फिल्म अलग-अलग उम्र की चार महिलाओं की कहानी बताती है.
यह फिल्म श्रीधर रंगायन द्वारा निर्मित और निर्देशित है, इस फिल्म को भारतीय पारलैंगिक (transsexual) लोगों पर व्यापक रूप से ध्यान केंद्रित करने वाली पहली भारतीय फिल्म कहा जाता है, जिसमें पूरी कहानी दो पारलैंगिकों और एक समलैंगिक किशोर के इर्द-गिर्द घूमती है. 2003 में, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) भारतीय सेंसर बोर्ड ने भारतीय ट्रांससेक्शुअल पर आधारित रंगायन की फिल्म पर रोक लगा दी थी. सेंसर बोर्ड ने कहा कि फिल्म 'अश्लील और आपत्तिजनक' हैं.
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