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जिम्मेदार पत्रकारिता कभी भी आसान नहीं रहीः हरीश खरे

आधार डेटा लीक रिपोर्ट मामले में FIR दर्ज होने पर बोले ट्रिब्यून के संपादक 

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आधार डेटा लीक रिपोर्ट मामले में FIR दर्ज होने पर बोले ट्रिब्यून के संपादक 
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आधार डेटा लीक रिपोर्ट मामले में FIR दर्ज होने पर बोले ट्रिब्यून के संपादक 
फोटो: AP

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यूआईडीएआई ने हाल में द ट्रिब्यून की एक रिपोर्टर और इसके प्रमुख संपादक हरीश खरे के खिलाफ आधार नंबर की हैकिंग से जुड़ी एक स्टोरी करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी. स्टोरी में बताया गया था कि कैसे कोई गिरोह चंद रुपयों की खातिर लाखों लोगों के आधार कार्ड की सूचनाएं बेच सकता है.

10 जनवरी को हरीश खरे ने खोजी पत्रकारिता के अधिकार से जुड़े एक आयोजन में मीडिया की आजादी और खोजी पत्रकारिता की अहमियत पर बात की. पेश है इस मौके पर उनके भाषण का पूरा पाठ-

मैं यहां आए उन तमाम दोस्तों का आभारी हूं जो आज यहां एक ऐसे विषय पर बातचीत के लिए मौजूद हैं, जो हम सबके लिए बड़ी चिंता का सबब होना चाहिए.

द ट्रिब्यून और अपनी सहकर्मी सुश्री रचना खैरा के खिलाफ क्रिमिनल केस दायर करने पर नाराज होने के बजाय मैं सरकार और इसके ताकतवर औजार यूआईएडीआई और पुलिस का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा.

पूरी गंभीरता और यथासंभव जिम्मेदारी के साथ मैं एक बार फिर कहना चाहता हूं कि सुश्री खैरा ने जो कुछ किया वह एक पेशेवर पत्रकार की ड्यूटी थी. इससे ज्यादा कुछ भी नहीं. और द ट्रिब्यून में भी हमने वही किया, जो दूसरे अखबारों के संपादक करते. हमने दूसरे संपादकों से ज्यादा कुछ भी नहीं किया.

हमें मालूम है कि हम द ट्रिब्यून में बैरिकेड खड़ा करने में विश्वास नहीं करते हैं. हम हमेशा बागी तेवर में भी नहीं रहते. हम कोई क्रांति भी नहीं कर रहे हैं. हम देश के संविधान और उसके मूल्यों में विश्वास करते हैं. हम असहमति की आवाजों को जगह देने में पूरा जोर लगाते हैं.

लेकिन इसके बावजूद एक ईमानदार, वाजिब खोजी रिपोर्टिंग के लिए हमें परेशान किया जा रहा है. पत्रकारिता के पुराने मानदंडों का पालन करने की राह में रोड़े अटकाए जा रहे हैं. अगर इस देश के अहंकारी शासक यह चाहते हैं कि ट्रिब्यून की रिपोर्टर और इसके संपादक को गिरफ्तार किया जाए तो फिर यहां कौन पत्रकार सुरक्षित महसूस करेगा. कोई सच्ची स्टोरी करने का साहस फिर कौन करेगा. कौन सुरक्षित रहते हुए ऐसी स्टोरी कर सकेगा?

हमें अधिकारियों को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए. उन्होंने हमारे ऊपर इतने कड़े कानूनी प्रावधान लगाए कि अचानक सबको लगने लगा कि पुलिस कभी उन तक भी पहुंच सकती है. चाहे वे पूरी तरह सरकार का पक्ष लेने वाले मीडिया घराने या फिर बिल्कुल पेशेवर अंदाज में निरपेक्ष रह कर काम करने वाले मीडिया घराने.

चाहे वे किसी भी पाले में क्यों न खड़े हों उन्हें लगने लगा कि पुलिस का दारोगा उनके दरवाजे पर भी आकर खड़ा हो सकता है.

हमें अधिकारियों का शुक्रिया इसलिए भी अदा करना चाहिए कि उसने हममें से हर किसी को याद दिलाया कि हमारे पास हर दिन ताकत के खिलाफ खड़े होने का मौका है. हम ब्यूरोक्रेसी के शास्त्र पर सवाल खड़े कर सकते हैं और रुढ़िगत चीजों से असमहत हो सकते हैं.

हमें अधिकारियों का इसलिए भी शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने एक बार फिर हमें याद दिलाया कि क्षमता पर राज्य का अधिकार नहीं है. राज्य अपने उन काम करने वाले लोगों पर भरोसा करते हैं जो भगवान नहीं है और न हो सकते हैं. और कई बार सरकार के ये लोग अनाड़ी,अपर्याप्त क्षमता वाले हो सकते हैं. हमारे हित के संरक्षण में वे नाकाम साबित हो सकते हैं.

हमें अधिकारियों का इस बात के लिए धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने हमारे अंदर फिर से एक जूनून, ऊर्जा पैदा की है. हर न्यूज रूम मौजूद हर रचना खैरा के दिल में आग पैदा की है.

हमें अधिकारियों का इस बात के लिए आभारी रहना चाहिए उन्होंने अपने अनाड़ीपन, नौकरशाही के तौर-तरीकों और अपने अहंकार से हमारी पत्रकारिता को खुशगवार बना दिया.

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