अंग्रेजी की एक कहावत है- डोंट शूट द मैसेंजर. यानी संदेश लाने-लेजाने वाले शख्स को मत मारो. जानते हैं ये कहावत कहां से आई. पुराने जमाने में युद्ध और लड़ाइयों के दौरान एक बिन कहा, बिन लिखा कानून था. कानून ये कि दुश्मन का संदेश लाने वाले या ले जाने वाले दूत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था. संदेश चाहे जैसा हो. लेकिन, UIDAI यानी देश में आधार से जुड़े सभी काम देखने वाली संस्था ठीक यही कर रही है- शूटिंग द मैसेंजर. एक पत्रकार अपनी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग से ये संदेश लाया कि आधार पोर्टल में खामी है...जो चाहे वो इसमें सेंध लगा सकता है. लेकिन आपने मैसेंजर यानी ये संदेश लाने वाली ट्रिब्यून अखबार की हिम्मती रिपोर्टर रचना खेड़ा को ही शूट कर दिया.
गलती भी उजागर करे और ‘गोली’ भी खाए!
कैसे? उनके खिलाफ FIR दर्ज कराके. और मजे की बात ये कि आधार अथॉरिटी, FIR दर्ज कराने के पीछे दलीलें देते वक्त ये भी कहता रहा कि जी नहीं, हम मैसेंजर को शूट नहीं कर रहे. आधार अथॉरिटी ने तर्क दिया कि बायोमेट्रिक डेटाबेस में सेंध नहीं लगी लेकिन नामजद FIR, अनअथॉराइज्ड एक्सेस की वजह से दर्ज की जा रही है. जब हर जगह से लानत-मलामत हुई तो कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कह दिया कि FIR अज्ञात लोगों के खिलाफ है पर दरअसल ऐसा है नहीं.
वैसे रचना खेड़ा का कुसूर क्या था?
यही न कि उन्होंने एक व्हॉट्सएप ग्रुप पर संपर्क किया. वो ग्रुप जो आधार में सेंध लगाने का काम करता था. वहां उनकी पहचान तीन लोगों से हुई. महज 500 रुपये पेमेंट वॉलेट से ट्रांसफर किए. और इतने भर से रचना को 100 करोड़ लोगों के आधार में दर्ज जानकारियों तक पहुंचने का गेटवे मिल गया. बात सिर्फ यहीं नहीं रुकी. 300 रुपये और देकर उन्हें आधार कार्ड प्रिंट करने का एक्सेस भी मुहैया करा दिया गया. यानी 800 रुपये के बदले 100 करोड़ लोगों का निजी डेटा बिकाऊ हो गया.
ये बात पढ़कर दिमाग में क्या आता है?
यही न कि इतनी बड़ी बात कैसे हो गई? हम खुद को आईटी सुपरपावर कहते हैं. फिर, देश के करोड़ों लोगों की निजी जानकारियां समेटे रखने वाले पोर्टल पर ये हमला कैसे हो गया?
इन सवालों के ठीक बाद लगता है कि ट्रिब्यून की रिपोर्ट रचना खेड़ा को शाबाशी मिली होगी. इस बात के लिए कि उन्होंने पोर्टल की इतनी बड़ी खामी की ओर ध्यान दिलाया. लेकिन नहीं जनाब. उन्हें शाबाशी नहीं FIR मिली. उन पर आधार एक्ट, IPC और आईटी एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया.
इन हालात में UIDAI को क्या करना चाहिए था?
सीखना चाहे तो दुनिया भर की टेक कंपनियों से UIDAI कुछ सबक सीख सकता है. फेसबुक से लेकर गूगल और माइक्रोसॉफ्ट तक क्या करते हैं जब कोई उनके पोर्टल में सेंध लगाने का या उसकी किसी खामी की ओर ध्यान दिलाते हैं.
FIR? जी, नहीं. कतई नहीं. ये कंपनियां इनकी खामी बताने वालों को इनाम-इकराम से नवाजती हैं. बल्कि ये तो बाकायदा ऐलान करती हैं कि आओ, हमारी कमियां बताओ और इनाम पाओ. जैसे 2013 में बेंगलुरु के आनंद प्रकाश ने फेसबुक में एक कमी या तकनीकी भाषा में कहें तो एक बग का पता लगाया और फेसबुक ने उसे 10 लाख रुपये दिए. ऐसे ही कई युवा हैं जो इन टेक कंपनियों की कमियां रिपोर्ट करते हैं और बदले में अच्छा पैसा और नाम पाते हैं और कुछ केस में नौकरी भी.
अब UIDAI से इतना क्रांतिकारी होने की उम्मीद तो नहीं की जा सकती लेकिन इतनी अपील जरूर की जा सकती है कि वो ऐसे मामलों को सख्ती की बजाय सबक के नजरिए से देखे.
क्योंकि, संदेश भले कड़वा क्यों न हो आप संदेश लाने वाले को नहीं मारते. ये आज भी बिनकहा, बिन लिखा कानून है.
वीडियो एडिटर- संदीप सुमन
कैमरामैन- अभय शर्मा
एंकर- नीरज गुप्ता
प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)