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होली (Holi) रंगों का वो त्योहार (Festival Of Colours) है, जिसमेंं सभी लोग रंग-बिरंगे रंगों में सराबोर हो उत्साह के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. भारत (India) अनेकता में एकता रखने वाला वह देश है जहां होली पर सभी रंग मानो जीवित हो उठते हैं. लेकिन क्या आपको पता है की होली क्यों मनाई जाती है? हम बचपन से होली की कई कहानियां Stories सुनते और पढ़ते आये हैं. आइये आज होली के अवसर पर बचपन की उन्हींं कहानियों को याद करते हैं कि जो होली मनाने के कारण को बताती हैं.
होली की सबसे प्रचलित कथा प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप (Prahlad and Hiranyakashipu)) की है जिसे हर व्यक्ति जानता है.
पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय पर राजा हिरण्यकश्यप नामक एक बलशाली राक्षस हुआ करता था जो अपने आप को भगवान मानता था और अपने राज्य में सभी को अपनी पूजा-अर्चना करने के लिए बाध्य करता था, लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद उसे भगवान नहीं मानता था और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करता था. लाख समझाने पर भी जब प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप को भगवान मानने से इंकार कर दिया तो इस बात से नाराज हो हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को कई प्रकार की यातनाएं दींं, लेकिन उसे किसी से फर्क नहीं पड़ा. अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर अपने ही पुत्र को मारने का षडयंत्र रचा. होलिका को वरदान था कि उसे आग से कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के आगे होलिका का वरदान धरा का धरा रह गया और वो आग में भस्म हो गई . प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ. इसलिए उस दिन से होली को बुराई के मिटने और अच्छाई के बचने के रूप में मनाया जाता है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब मथुरा के राजा कंस (Kansa) को पता चला कि उसकी बहन का पुत्र ही उसका काल है और वह गोकुल में जीवित है, तो उसने श्रीकृष्ण (Sri Krishna) को मारने के लिए कई हथकंडे अपनाए. उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल के सभी बच्चों को मारने का आदेश दिया. पूतना रूप बदलने में माहिर राक्षसी थी. उसने योजना बनाई कि सुंदर स्त्री का रूप धारण कर गोकुल में जाकर सभी बच्चों को स्तनपान कराएगी और इस बहाने विषपान कराकर उनका वध कर देगी. पूतना (Pootna) की इस योजना का गोकुल के कई मासूम बच्चे शिकार बन गए. लेकिन जब पूतना कृष्ण के पास आई तो वो उसकी सच्चाई जान चुके थे और जब पूतना ने श्रीकृष्ण को स्तनपान कराया तो श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते करते ही उसके प्राण भी गटक लिए. पौराणिक कथा के अनुसार उस दिन से पूतना के वध और कृष्ण की जीत की खुशी में होली का त्योहार मनाया जाता है.
दक्षिण भारत (South India) में राक्षसी धुंडी और राजा पृथु की कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि राजा पृथु के राज्य में धुंडी नामक एक राक्षसी रहती थी. धुंडी ने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उनसे वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु न देवताओं द्वारा हो न किसी हथियार से.. वो न गर्मी, सर्दी, बरसात में मरे. भगवान शिव ने उसे वरदान देते हुए कहा कि जहां बच्चों का शोरगुल, हुडदंग, और हल्ला होगा, वहां पर तेरी विद्या काम नहीं करेगी, इसलिए तुझे बच्चों के शोरगुल और उनके झुंड से सावधान रहना होगा. धुंडी इस वरदान को पाकर अपने आप को अजेय मानने लगी थी, लेकिन बच्चों से उसे खतरा महसूस होता था. इसी वजह से वह राज्य में पैदा होने वाले सभी बच्चों को खा जाती थी. उसके इस अत्याचार से राजा पृथु और राज्य के सभी लोग त्रस्त हो गए. धुंडी से छुटकारा पाने के लिए राजा पृथु और राज्य के लोगों ने राजपुरोहित से उपाय पूछा. राजपुरोहित ने फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन का चयन किया क्योंकि उस दिन न गर्मी होती है न सर्दी और न बरसात. पुरोहित ने बताया कि इस दिन राज्य के सभी बच्चे एकत्रित हों और अपने साथ एक-एक लकड़ी लेकर आयें. उन लकड़ियों और घास-फूस को इकट्ठा कर आग जलाई जाये. फिर बच्चे जोर-जोर से शोर मचाएं और गाना गाएं तथा शोरगुल करें. इस तरह उत्पन्न होने वाले शोरगुल से उसकी मृत्यु हो जाएगी. राजपुरोहित के कहे अनुसार राज्य के लोगों ने ऐसा ही किया और बच्चों ने मिलकर खूब धमाचौकड़ी मचाई और धुंडी के अत्याचारों से राज्य को मुक्ति दिलाई.
उस दिन से आज के दिन बच्चों द्वारा होली पर शोरगुल, ढोल-नगाड़े और गाने-बजाने का प्रचलन हो गया. उन्हें कोई ऐसा करने से रोकता भी नहीं है.
होली (Holi)को प्रेम का पर्व कहा जाता है और जब प्रेम की बात हो तो राधा-कृष्ण (Radha-Krishna) का नाम न लिया जाये ये असंभव है. उत्तर भारत में होली पर राधा-कृष्ण के प्रेम की कथा भी प्रचलित है. जैसा कि सबको पता है कि कृष्ण श्यामवर्ण के थे और राधा गोरी थी. कृष्ण ने एक दिन मैया यशोदा से पूछा कि राधा इतनी गोरी क्यों है और वो सांवले क्यों हैं? तब मैया यशोदा ने कृष्ण से कहा कि राधा के गोर चेहरे पर रंग लगाकर उसे भी अपने रंग में रंग दो. मैया की इसी बात पर कृष्ण रंग लेकर निकल पड़े और राधारानी के गोर चेहरे पर श्याम रंग लगाकर उन्हें भी अपने श्याम रंग में रंग लिया. तब से मथुरा, वृन्दावन, बरसाने, व नंदगांव की होली प्रेम के रंग में सराबोर होती है.
होली की कई पौराणिक कथाएं में कामदेव (Kamaadev) की कथा भी बहुत प्रचलित है.
इसके अनुसार पार्वतीजी शिव (Parvati Shiva) से विवाह करना चाहती थींं, लेकिन अपनी तपस्या में लीन शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया ही नहीं.. तब प्रेम के देवता कहे जाने वाले कामदेव आगे आये और शिव का ध्यान पार्वती की ओर करने के लिए तपस्या में लीन शिव पर पुष्प बाण चला दिया. बाण से शिव की तपस्या भंग हो गई इससे गुस्से में आये शिव ने अपने तीसरे नेत्र को खोल दिया जिसके तेज से कामदेव भस्म हो गए. तब कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोते हुए शिव के पास आई और उनसे अपने पति को पुनर्जीवित करने की गुहार लगाने लगीं. अगले दिन जब शिव का गुस्सा शांत हो गया तो रति के अनुरोध पर उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया.
तब से कहा जाता है कि कामदेव के भस्म होने वाले दिन होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन कामदेव के पुनर्जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है और घरों में तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं.
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