Festival of colors: रंगों के त्योहार होली को लेकर देश के अलग-अलग कोने में अलग-अलग परंपरा प्रचलित है. भारत के अलावा पूरी दुनिया से लोग यहां की होली का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं. वैसे तो पूरे भारत (India) में होली Holi धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन बरसाने की होली की बात ही कुछ और है. इसके अलावा और भी कई ऐसी जगहें हैं, जहां की होली बहुत प्रसिद्ध हैं. आइए आज हम कुछ ऐसी होली के बारे में आपको बताते हैं जिनके बारे में जानकर आपको भी आनंद मिलेगा.
बरसाने की लट्ठमार होली
होली Holi की बात हो तो सबसे पहले बरसाने की होली याद आती है. श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के पास बरसाने की लट्ठमार होली देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. बरसाने की होली इतनी प्रसिद्ध है कि देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग बरसाने की होली देखने के लिए और उसमें शामिल होने के लिए आते हैं. बरसाने में रंगों के साथ-साथ लट्ठ से भी होली खेली जाती है. लट्ठमार होली की शुरुआत एक हफ्ते पहले ही हो जाती है.
आखिर क्यों रंगों के त्योहार होली को लट्ठ से मनाया जाता है
बरसाने में लट्ठमार होली की प्रथा सदियों से चली आ रही है. रंगों के साथ लट्ठ से होली मनाया जाना महिला सशक्तिकरण को उजागर करता है. पता हो कि भगवान कृष्ण हमेशा महिलाओं की रक्षा के लिए तत्पर रहते थे, इसलिए महिलाओं द्वारा पुरुषों पर लट्ठ बरसाना उनकी शक्ति और आत्मबल को दर्शाता है.
मंजुल कुली होली
केरल अपनी सुंदरता और सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है लेकिन अगर होली की बात की जाये तो केरल भी इसे मनाने में पीछे नहीं हटता. जिस प्रकार केरल की खूबसूरती लोगों का दिल मोह लेती है और अपनी ओर आकर्षित करती है उसी प्रकार केरल में होली जो 'मंजुला कुली' या 'उक्कुली' के नाम से प्रसिद्ध है अपने आप में बहुत ही धूमधाम से एक अलग अंदाज में मनाई जाती है.
दोल जात्रा होली
असम व पश्चिम बंगाल में होली को दोल जात्रा के नाम से जाना जाता है. जिस प्रकार पूरे उत्तर भारत में होली मनाई जाती है उसी प्रकार असम में भी दो दिन की होली मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं पारम्परिक लाल किनारी वाली सफेद साड़ी पहन कर शंखनाद करते हुए राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं और प्रभात फेरी निकालती हैं, प्रभात फेरी में पुरुषो और महिलाओं के लिए खास वेशभूषा निर्धारित होती है. महिलाएं लाल किनारी वाली पीली साड़ी पहनती हैं और पुरुष कुर्ता पायजामा पहन कर प्रभात फेरी में शामिल होते हैं. दोल जात्रा में दोल शब्द का अर्थ झूला होता है. महिलाएं झूले पर राधा-कृष्ण की मूर्ति रखकर भक्ति गीत गाती हैं और होली के रंगों में सराबोर हो जाती हैं. एक दिन पहले यानि होलिका दहन वाले दिन मिट्टी की झोपड़ी को आग में जलाते हैं और दूसरे दिन रंग-गुलाल और पानी से धमाचौकड़ी मचाते हुए होली खेलते हैं.
कुमाऊनी अंदाज में होली के रंग
विश्व प्रसिद्ध बरसाने की होली की तरह देव भूमि उतराखंड (Uttrakhand) की होली भी बहुत ही मोहक अंदाज में मनाई जाती है. कुमाऊं में होली को लेकर एक विशेष प्रेम देखने को मिलता है यहां की होली में फाग और राग की अलग ही बात है.
कुमाऊं में है खड़ी होली, बैठकी होली का विशेष ट्रेंड है.
खड़ी होली
खड़ी होली मुख्य रूप से पंटागड़ (गांंव के मुखिया का आंगन) में होती है. खड़ी होली अर्ध- शास्त्रीय परंपरा से गाई जाती है जिसमें मुख्य होल्यार होली के मुखड़े को गाते हैं और अन्य होल्यार मुख्य होल्यार के चारोंं ओर एक घेरे में उस मुखड़े को दोहराते हैं और कदमों को मिलाकर पारंपरिक नृत्य करते हैं.
बैठकी होली
बसंत पंचमी वाले दिन से ही बैठकी होली की शुरुआत हो जाती है. बैठकी होली में रंग-गुलाल के अलावा संगीत और नृत्य से होली के रंग में चार चांद लग जाते हैं. बैठकी होली में राग आह्वान से होली की शुरुआत की जाती है और समापन राग भैरवी से किया जाता है. बैठकी होली कुमाउंनी संगीत के रंग में रंगी होती है.
होला मोहल्ला
सिख धर्म में होली के अगले दिन से होला मोहल्ला महोत्सव मनाया जाता है जो तीन दिनों तक चलता है. सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा होला मोहल्ला की शुरुआत की गई थी. होला मोहल्ला दुनिया भर के सिखों के लिए बहुत बड़ा उत्सव होता है दरअसल होला मोहल्ला की शुरुआत सैन्य अभ्यास करने के लिए हुई थी. इसमें सिख लड़ाके शस्त्रों के साथ अपने हुनर दिखाते हैं.
होला मोहल्ला शब्द की उत्पति पंजाबी शब्द 'मोहल्ला' से हुई है.
होली के होला मोहल्ला में बदल जाने के बाद से गुरु जी ने होली खेले जाने के अंदाज को बदलने पर जोर दिया, जो बुराइयां व्याप्त हो गई थींं, जैसे होली के नाम पर कीचड़ फेकना, गंदा पानी डालना, ये सब खत्म हुईं और होली को एक नए अंदाज में खेला जाने लगा.
योसंग (होली) मणिपुर
मणिपुर में होली को 'योसंग' के नाम से मनाया जाता है. योसंग पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है. योसंग के दौरान पारंपरिक व्यंजन बनाये जाते हैं और सभी लोग इनका भरपूर आनंद लेते हैं. मणिपुर में योसंग को वहां के स्थानीय लमता महीने (फरवरी-मार्च) की पूर्णिमा को मनाया जाता है इस दिन होने वाले समारोह में विभिन्न समुदाय के लोग एक साथ हिस्सा लेने आते हैं. आमतौर पर यह 5 दिन तक मनाया जाता है.
रंग पंचमी महाराष्ट्र
महाराष्ट्र् में होली से ठीक 5 दिन बाद रंगपंचमी को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है. जिस प्रकार होली को रंगों के साथ मनाया जाता है उसी प्रकार रंगपंचमी को भी रंग-गुलाल के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ताकि तमोगुण और रजोगुण का नाश हो जाये और शांति-खुशहाली बनी रहे.
महाराष्ट्र में रंगपंचमी के दिन रंगों से खेला जाता है और बड़ी धूमधाम होती है. इस दिन वहां मछुआरों का विशेष महत्व माना जाता है सभी मछुआरें इस दिन गीत गाकर और नाच गाना करके रंगपंचमी मनाते हैं. जगह-जगह दही हांडी का कार्यक्रम होता है और महिलाएं मटकी फोड़ने से पुरुषों का ध्यान भटकाने के लिए उन पर रंग और पानी डालती हैं.
शिग्मो उत्सव गोवा
होली के रंग की छटा गोवा में बड़ी ही अनोखी होती है होली को गोवा में शिग्मो के रूप में मनाया जाता है. गोवा में शिग्मो वसंत ऋतु का सबसे बड़ा त्योहार होता है अगर इस उत्सव के महत्व की बात की जाये तो यह उत्सव आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए दशहरे के अंत में अपने परिवारों को छोड़कर जंग में जाने वाले योद्धाओं की घर वापसी की खुशी में मनाया जाता है.
इस दिन गोवा के आसमान में रंगों की अनूठी छटा बिखरी होती है, शिग्मो उत्सव पर राज्य में परेड के साथ पारम्परिक लोक नृत्य और पौराणिक चित्रण का अनूठा संगम दिखाई देता है. उत्सव के दौरान लोग रंग-बिरंगी पोशाक पहनते हैं और रंगीन झंडे फहराते हुए ढोल-ताशे बजाकर उत्सव को मनाते हैं जो बहुत ही मोहक होता है.
काशी की अनोखी होली
जब बात भोले की नगरी काशी की आती है तो बात कुछ और ही हो जाती है. काशी की होली बड़ी ही अद्भुत और अनोखी होती है. काशी के मणिकर्णिका घाट पर भोले के भक्त महाश्मशान की भस्म से होली खेलते हैं. काशी की होली सबसे अलग अंदाज में मनाई जाती है. इस दिन भोले बाबा और गौरा की रेशमी धोती दुप्पटा डालकर पालकी निकाली जाती है और सभी लोग दर्शन करने के लिए आतुर होते हैं उन सभी के हाथों में अबीर-गुलाल भरा होता है और आसमान में रंग-बिरंगी छटा बिखरी होती है जो बहुत ही आकर्षक होती है.
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