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आजादी से 5 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1942 में विद्रोह करते हुए बलिया में तिरंगा लहरा दिया गया था. दमन के खिलाफ हमेशा आवाज उठाने वाले मंगल पांडे की धरती बलिया ने एक बार फिर बागी होने का परिचय दे दिया.
यूपी बोर्ड पेपर लीक मामले में जेल गए बलिया जिले के तीन पत्रकार- दिग्विजय सिंह अजीत ओझा और मनीष गुप्ता- को आखिरकार जमानत मिल गई और वह जमानत पर बाहर आ गए हैं. गिरफ्तारी से लेकर जमानत तक, पत्रकारों का रुख स्थानीय प्रशासन को लेकर काफी तल्ख रहा.
आजमगढ़ जेल से रिहा होने के बाद जिले में आयोजित एक सम्मान समारोह में बोलते हुए अमर उजाला के पत्रकार दिग्विजय सिंह ने कहा," बलिया की जनता व्यापारी और मीडिया साथियों ने 1942 के अभियान की यादें ताजा कर दी जिसकी बदौलत आज हम यहां पहुंचे हैं. जिला प्रशासन ने हमें कहीं का नही छोड़ा था."
घटना के बाद से ही प्रशासन के षड्यंत्र का शिकार होने का आरोप लगा रहे पत्रकारों की बात को बल तब मिला जब जांच में इन पत्रकारों के खिलाफ लगाए गए कई आरोप निराधार पाए गए. पत्रकारों के तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील मानवेंद्र सिंह की मानें तो विवेचना के दौरान ही मुकदमे में शामिल धारा 420 हटा ली गई है.
यूपी में बोर्ड की परीक्षा चल रही थी. इस बीच बलिया में प्रश्नपत्र लीक होने की खबर आई. बलिया से अमर उजाला के पत्रकार अजीत ओझा और दिग्विजय सिंह की इस खबर को अखबार ने प्रकाशित किया. खबर में बताया गया कि 10वीं का संस्कृत का प्रश्नपत्र 29 मार्च मंलगवार को था, लेकिन पेपर और उत्तर पुस्तिका दोनों सोमवार रात को ही सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं. लीक हुए पेपर का परीक्षा पत्र से हूबहू मिलान के बावजूद जिला प्रशासन ने प्रश्नपत्र आउट मानने से इंकार कर दिया.
वहीं 12वीं कक्षा का प्रश्नपत्र 30 मार्च को था, जो 29 मार्च की शाम से ही वायरल होने लगा. यह खबर अखबार में 30 मार्च को छपी जिसके बाद आनन-फानन में प्रदेश सरकार ने पेपर लीक होने की बात को माना और बलिया समेत 24 जिलों में परीक्षा को रद्द कर दिया. इस लापरवाही की जांच के लिए एसआईटी का गठन करने की बात कही गई.
गिरफ्तार पत्रकारों की माने तो प्रश्न पत्र लीक होने की घटना सार्वजनिक होने के बाद जिलाधिकारी इंद्र विक्रम सिंह में इनसे लीक हुए पेपर की प्रति अपने व्हाट्सएप पर मंगवाई थी. पत्रकारों को प्रशासन द्वारा किए गए विश्वासघात का पता तब चला जब जिले के तीन पत्रकारों को पर चली कराने और उसके षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद प्रशासन के रवैया से नाराज स्थानीय पत्रकारों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया. अनशन, पैदल मार्च और भूख हड़ताल से आंदोलन कर रहे पत्रकारों का गुस्सा प्रशासन पर फूट पड़ा. स्थानीय जनता और व्यापारियों का भी सहयोग पत्रकारों को मिला. इसी क्रम में एक दिन बलिया बंद का आह्वान भी किया गया. गिरफ्तार पत्रकारों के खिलाफ क्या साक्ष्य मिले हैं इस बात पर भी पुलिस प्रशासन चुप्पी साधे हुए थी. धीरे धीरे पूरे प्रदेश में बलिया पुलिस और प्रशासन के मनमाने रवैये के खिलाफ रोष पनपने लगा.
गिरफ्तारी के 25 दिन बाद पत्रकारों के लिए राहत की खबर आई. न्यायालय से बेल मिलने के बाद तीनों पत्रकार अप्रैल 26 को आजमगढ़ जेल से बाहर निकले. इन पत्रकारों की पैरवी कर रहे हैं वकील मानवेन्द्र सिंह की मानें विवेचना के दौरान ही साक्ष्य न मिलने के कारण 420 समेत कई धाराएं हटा ली गई. वकील का कहना है कि आप इन पत्रकारों के खिलाफ सिर्फ परीक्षा अधिनियम और आईटी एक्ट में ही मुकदमा है.
योगी सरकार ने पहले भी पत्रकारों पर खबर को लेकर मुक़दमे कराए है. अपनी आलोचना से नाराज सरकार ने पत्रकारों के कलम को रोकने की कई बार कोशिश की है लेकिन शायद यह पहली बार ऐसा हो रहा होगा जहां पत्रकारों को घेरने का दाव प्रशासन पर उल्टा पड़ता हुआ नजर आ रहा है. इतना ही नहीं बलिया में पत्रकारों को स्थानीय लोगों और व्यापारियों का भी सहयोग मिला जिससे प्रशासन बैकफुट पर नजर आया. यह लड़ाई अभी कैसा रुख लेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन अपने अधिकारों के हनन को लेकर जो विरोध के स्वर बलिया से उठे हैं उसकी गूंज लखनऊ तक पहुंची है.
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