advertisement
उर्दू (Urdu) एक बार फिर देश में चर्चा का विषय बनी है और लेफ्ट-राइट के बिल्कुल सेंटर में आकर खड़ी हो गई है. जिसका कारण इस बार बने हैं सुदर्शन चैनल (Sudarshan Channel) और उसके एडिटर सुरेश चव्हाणके (suresh chavhanke). दरअसल सुदर्शन चैनल ने हल्दीराम (Haldiram) के फलाहारी प्रोडक्ट के पैकेट पर उर्दू में कुछ लिखने पर आपत्ति जताई है. दिल्ली में एक हल्दीराम के आउटलेट पर जाकर सुदर्शन चैनल की एक रिपोर्टर ने माइक लेकर खूब हल्ला मचाया.
ये पहली बार नहीं है जब उर्दू पर विवाद छिड़ा है. पिछले साल दीपावली पर भी उर्दू को लेकर बवाल खड़ा हो गया था. उस वक्त फैबइंडिया ने दिवाली पर एक विज्ञापन ट्वीट किया था, जिसमें दिवाली के लिए जश्न-ए-रिवाज शब्द का इस्तेमाल किया गया था. कुछ लोग जश्न-ए-रिवाज शब्द देखकर ऐसे भड़क गए, देखते ही देखते फैबइंडिया को बायकॉट का ट्रेंड चलने लगा. इतना विरोध हुआ कि फैबइंडिया को अपना जश्न-ए-रिवाज वाला पोस्ट हटाना पड़ा.
बहरहाल बैक टू प्रजेंट स्टोरी...अब फिर से उर्दू पर बवाल खड़ा हो गया है. लेकिन क्या उर्दू को हमारी सोसायटी और कल्चर से निकालना संभव है, ये मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा काम है. क्योंकि उर्दू जुबान हमारे बीच इतनी रच-बस गई है कि हमें पता भी नहीं चलता कब हमने उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया.
जिस सुदर्शन चैनल और उसके मालिक सुरेश चव्हाणके ने ये मुद्दा उठाया है उन्हें खुद भी नहीं पता कि वो कितने उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल रोज करते हैं. हमने उनके भी एक इंटरव्यू को निकाला और देखा कि उसमें कितने उर्दू-अरबी या फारसी के शब्दों का इस्तेमाल हुआ है. लेकिन शुरुआत दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई से करते हैं.
अटल बिहारी वाजपेई (Atal bihari Vajpayee) के भाषण जब हमने ढूंढे तो यूट्यूब पर राज्यसभा टीवी द्वारा पब्लिश किये उनके कुछ भाषणों का संग्रह हमें मिला, जिसे आप यहां देख सकते हैं. इस भाषण की शुरुआत में ही अटल बिहारी वाजपेई ने दरबार शब्द(07.59) का इस्तेमाल किया, जो फारसी भाषा का शब्द है और उस जगह के लिए इस्तेमाल होता है जहां राजा बैठता हो.
इसके थोड़ा आगे अटल बिहारी वाजपेई ने खेमों (09.30) शब्द का इस्तेमाल किया था. ये खेमा शब्द से निकला है जो मूलत: तुर्की भाषा का शब्द है और वहीं से उर्दू में आया. फिर अटल बिहारी वाजपेई ने बुलबुल(11.27) शब्द का इस्तेमाल किया, जो फारसी भाषा का शब्द है और एक छोटी चिड़िया के लिए इस्तेमाल होता है. फिर वाजपेई ने हल(11.56), दावत(12.02), जम्हूरियत(13.08), दीन(13.29), वजीर-ए-आजम(19.16), मुआयना(19.27), अमन(19.43) और बे-ऐतबारी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जो सभी अरबी भाषा के शब्द हैं.
इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेई ने अपने भाषण में फर्ज(12.29), दिल(12.49), रौशनी(13.41), रिश्तों(20.31) और नरमी(20-46) जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था, ये सभी शब्द फारसी भाषा से आये हैं. लेकिन ये हमारी आम भाषा में इस तरह घुले-मिले हैं कि हमें कभी एहसास ही नहीं होता.
इसके बाद हमने संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) का एक भाषण सुना, जिसे आप यहां क्लिक करके सुन सकते हैं. इसमें उन्होंने ताकत(00.09) शब्द का इस्तेमाल किया था, जो अरबी भाषा से निकला है. मोहन भागवत ने आगे दिल(05.07) शब्द का इस्तेमाल किया था, जो फारसी भाषा से आया है, जिसे हिंदी में ह्रदय कहते हैं. उन्होंने जन्नत(04.29) शब्द का भी इस भाषण में इस्तेमाल किया जो फारसी भाषा का शब्द है और ईरान से इसकी उत्पत्ति हुई है.
आगे मोहन भागवत ने तहजीब(08.01) शब्द का इस्तेमाल किया जो अरबी से आया है. इसके अलावा मंजिल और तारीख जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया था, ये दोनों भी अरबी भाषा के ही शब्द हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra modi) का भी एक भाषण हमने सुना, जिसे आप यहां क्लिक करके सुन सकते हैं. इसमें उन्होंने जिम्मेदारी(05.55) शब्द का इस्तेमाल किया था, जो अरबी भाषा का शब्द है. आगे पीएम मोदी ने जम्हूरियत(07.23) शब्द का इस्तेमाल किया था, जो अरबी भाषा से आया है और हिंदी में इसका मतलब होता है लोकतंत्र. इसके आगे पीएम मोदी ने शहादत(07.23) शब्द का इस्तेमाल किया था, जो अरबी भाषा का शब्द है. फिर उन्होंने खिलाफ(20.19) शब्द का इस्तेमाल अपने भाषण में किया था, जो अरबी भाषा का शब्द है.
इसके अलावा पीएम मोदी ने अपने भाषण में ताकत और तस्वीर जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया, जो दोनों ही अरबी भाषा से हैं. साथ ही उहोंने चादर शब्द का भी इस्तेमाल किया जो फारसी भाषा से निकला है.
अब आते हैं सुदर्शन चैनल चलाने वाले सुरेश चव्हाणके के एक इंटरव्यू पर जिसे आप यहां क्लिक कर देख और सुन सकते हैं. इसमें उन्होंने अनेकों ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो उर्दू, अरबी और फारसी से निकले हैं और अब हमारी भाषा का हिस्सा हो गए हैं. जिनमें से कुछ हम आपको काउंटर के साथ बता रहे हैं ताकि आप वीडियो देखते वक्त उन शब्दों तक आसानी से पहुंच सकें. सुरेश चव्हाणके ने वीडियो में ईमानदारी (02.33) शब्द का इस्तेमाल किया है जो अरबी और फारसी के मिश्रण से बना है, दरअसल ईमान अरबी भाषा और दार आया फारसी से, दोनों को मिलाकर बना ईमानदारी जिसकी आजकल देश में बहुत जरूरत है.
इसके अलावा सुरेश चव्हाणके ने मोहब्बत (02.48) शब्द का इस्तेमाल किया, जो अरबी भाषा का शब्द है और हिंदी में उसे प्रेम कहते हैं. उन्होंने सवाल (03.34) शब्द का प्रयोग किया है जो उर्दू का शब्द है और हिंदी में इसे प्रश्न कहते हैं.
इसके अलावा खिलाफ (06.34), इंसानियत (12.33), आदमी (14.59), जैसे अरबी के शब्दों का प्रयोग अपने इंटरव्यू में सुरेश चव्हाणके ने किया है. इतना ही नहीं शेर (12.21), दिल 15.06) और कानून (21.17) जैसे शब्दों का प्रयोग भी उन्होंने किया जो फारसी भाषा से निकले हैं.
इनमें से ज्यादातर शब्द ऐसे हैं जो हम रोजमर्रा की जिंदगी में आमतौर पर बोलते हैं, लेकिन हमें कभी एहसास तक नहीं होता कि ये शब्द आखिर हमारी डिक्शनरी में कहां से आये और इसमें कोई हर्ज भी नहीं है. लेकिन सवाल ये है कि क्या उर्दू का विरोध करने वाले लोग इनका भी विरोध करेंगे, शायद नहीं और करना भी नहीं चाहिए. क्योंकि भाषा का संबंध किसी धर्म से नहीं बल्कि संस्कृति होता है, इसीलिए किसी भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि एक ही धर्म को मानने वाले लोग अलग-अलग भाषाओं को बोलते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)