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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तरह काम किया, उस वजह से उन्हें आने वाले वक्त में हमेशा याद किया जाएगा. विदेश मंत्री रहते हुए 5 साल में सुषमा स्वराज ने दुनिया भर के 186 देशों में मौजूद 90,000 से ज्यादा भारतीयों की मदद की. लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहा यमन और सूडान में फंसे भारतीयों को बचाने के लिए चलाया गया रेस्क्यू ऑपरेशन, जिनके तहत 5000 से ज्यादा भारतीयों की सकुशल वतन वापसी कराई.
साल 2015 में युद्धग्रस्त यमन में जब विद्रोहियों और यमन सरकार के बीच जंग छिड़ी तो वहां काम कर रहे हजारों भारतीय इस जंग के बीच में फंस गए. जंग लगातार बढ़ती जा रही थी और सऊदी अरब की सेना लगातार यमन में बम गिरा रही थी. इसी बीच यमन में फंसे भारतीयों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद की गुहार लगाई. भारत के लोगों को निकालने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने सउदी अरब के प्रिंस से बात की थी. उन्होंने उनसे आग्रह किया कि भारत के फंसे लोगों को निकालने के लिए थोड़े समय के लिए हमला रोक दें तो भारतीयों को सुरक्षित निकाला जा सकता है. मोदी के साथ अच्छे संबंधों के चलते सऊदी शाह 1 हफ्ते तक सुबह 9 बजे से 11 बजे के बीच बमबारी रोकने पर राजी हो गए.
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फिर भारत सरकार ने वायुसेना के जरिए यमन में 'ऑपरेशन राहत' चलाकर इस अभियान में न सिर्फ अपने 4640 देशवासियों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला, बल्कि 2000 के लगभग 48 अन्य देशों के लोगों को भी बचाने में कामयाबी हासिल की. 1 अप्रैल से 9 अप्रैल 2015 तक चले इस ऑपरेशन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह की अहम भूमिका रही. इन्होंने पूरे तालमेल के साथ इस मुश्किल और चुनौती भरे काम को सही तरीके से अंजाम दिया. जनरल सिंह तो इस ऑपरेशन के दौरान पूरे समय यमन में ही मौजूद रहे थे.
अप्रैल 2016 में दक्षिण सूडान में छिड़े सिविल वॉर में फंसे भारतीयों को सुरक्षित देश वापस लाने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 'ऑपरेशन संकटमोचन' की शुरुआत की थी. इस ऑपरेशन के तहत दक्षिण सूडान में फंसे 500 से ज्यादा भारतीयों को बाहर निकाला गया और देश वापस लाया गया. सुषमा स्वराज की निगरानी में इस ऑपरेशन का नेतृत्व जनरल वीके सिंह ने किया.
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