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उत्तर प्रदेश में हाल में हुए लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी हार से उबरने के लिए सांप्रदायिक कार्ड खेलने के मूड में आती दिख रही है. जिसको देखते हुए कैराना लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासन काल में हुए हिंदुओं का पलायन याद आने लगा है.
राज्य के गृह विभाग की तरफ से डीजीपी और डिवीजनल कमीशनर को पत्र लिखकर सांप्रदायिक पलायन के संबंध में जानकारी मांगी गयी है. शासन द्वारा जारी पत्र में अधिकारियों से इस संबंध में कोई कार्रवाई न करने पर भी सवाल पूछा गया है.
गृह विभाग ने 28 फरवरी 2017 तक राज्य में हुए सांप्रदायिक पलायन को लेकर सूचना मांगी है. पत्र में किसी खास धर्म का जिक्र नहीं, बल्कि सांप्रदायिक दंगों के कारण हुए पलायन पर सवाल किए गए हैं.
प्रदेश के शामली जिले के कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है. यहां से सांसद रहे बाबू हुकूम सिंह का कुछ महीने पूर्व बीमारी के चलते निधन हो गया था.
विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने में कैराना पलायन मुद्दा भी अहम रहा था. खुद को हिंदुत्व का मसीहा और बीजेपी के फायरब्रांड नेता कहलाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह समेत बीजेपी कई बड़े नेता विधानसभा चुनाव 2017 में सांप्रदायिक दंगों के कारण हुए पलायन पर खुल कर बोले थे. इतना ही नहीं बल्कि राजनाथ सिंह कैराना में परिवर्तन रैली के दौरान सांप्रदायिक मुद्दे पर खूब गरजे थे.
केंद्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने भी सांप्रदायिक पलायन की जांच करने कैराना पहुंची थी. टीम ने तत्कालीन डीएम और एसपी से मामले की जांच कर रिपोर्ट मांगी थी. प्रशासन की जांच ने सांसद हुकूम सिंह की सूची को झूठला दिया था, लेकिन केंद्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने भी कैराना में दहशत का माहौल होने की पुष्टि की थी.
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दरअसल, कैराना से बीजेपी सांसद रहे हुकूम सिंह का आरोप था कि मुसलमानों के डर से कैराना से बड़ी संख्या में हिंदू पलायन कर रहे हैं. बीजेपी सांसद ने एक सूची जारी की थी जिसके मुताबिक, कैराना से 346 हिंदू परिवारों ने सांप्रदायिक दंगों के कारण दूसरे राज्यों में पलायन किया था. हालांकि यूपी के तत्कालीन डीजीपी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था.
दरअसल, कैराना संसदीय सीट पर उपचुनाव उत्तर प्रदेश का सियासी गठबंधन की गांठों की मजबूती भी तय करने वाला है. ऐसे में बीजेपी ‘कैराना’ कार्ड के सहारे इस गठबंधन की गांठें कमजोर करने में जुट गई है. लिहाजा कैराना सिर्फ उपचुनाव नहीं होगा बल्कि राज्य की आगामी सियासी सतरंज के मोहरे भी तय करेगा.
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