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22 अप्रैल को हम वर्ल्ड अर्थ डे मनाते हैं. अमेरिका में इसे ट्री डे कहा जाता है. अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने ही 1970 में अर्थ डे मनाने की परंपरा शुरू की थी. अब 192 से अधिक देश इसे मनाते हैं. और दुनिया तभी है जब पानी है. लेकिन पानी को लेकर क्या घमासान मचा हुआ है और पानी की समस्या को लेकर दुनियाभर के तमाम संगठन क्या कहते हैं.पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी से घिरा है, लेकिन इसमें से 97 फीसदी पानी खास किसी काम का नहीं है.
अब काम के बचे 3 फीसदी पानी में, दो प्रतिशत पानी भूमि में है यानी ज़मीन के अंदर है और एक प्रतिशत पानी ही आसानी से उपलब्ध है. एक समस्या यह भी है कि पृथ्वी पर बचे एक प्रतिशत पानी में से भी 70 प्रतिशत पानी, पीने लायक ही नहीं है. लेकिन इंसान है कि फिर भी पानी की कद्र नहीं करता. पानी के स्रोतों से खिलवाड़ करता है. इसके भयावह नतीजे दिखने लगे हैं.मैक्सिको सिटी में खूब बाढ़ आती है लेकिन ये शहर भयंकर बाढ़ के साथ ही भयंकर सूखे और बहुत तेज़ गर्मी भी झेलता है. इसकी वजह क्लाइमेट चेंज बताई जा रही है.केपटाउन में पानी के लिए कोहराम आपको याद होगा. 2018 में यहां जीरो डे लागू करना पड़ा यानी जिस दिन पानी मिलना बिल्कुल बंद हो जाएगा. ऐसा नियम बनाना पड़ा कि यदि किसी घर में एक महीने में 6,000 लीटर से ज्यादा पानी का इस्तेमाल हुआ, तो उसे दंड भरना होगा.
हमारा देश पहली बार 2011 में जल की कमी वाले देशों की सूची में शामिल हुआ था.यूनिसेफ द्वारा 18 मार्च 2021 को जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 9.14 करोड़ बच्चे गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं.
बच्चों के जल संकट के लिए अतिसंवेदनशील माने जाने वाले 37 देशों में से एक देश भारत भी है. यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2050 तक भारत में वर्तमान में मौजूद जल का 40 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो चुका होगा.
दिल्ली की पॉश कॉलोनियों में पानी के झगड़े अब आम हो रहे हैं.चेन्नई में पानी के लिए हाहाकार हम देख चुके हैं.हमारा लगभग हर शहर पानी की कमी झेल रहा है.साल 2018 में शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में पानी की कमी को लेकर हाहाकार मचा था और पर्यटकों से शिमला नहीं आने को कहा जा रहा था.
भारत में पानी को बचाना इसिलए भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि यहां दुनिया की 16 फीसदी आबादी रहती है लेकिन पीने लायक पानी का सिर्फ 4 प्रतिशत यहां है.सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड रिपोर्ट 2017 के मुताबिक देश के 700 जिलों में से 40% में भूजल स्तर क्रिटिकल लेवल पर पहुंच गया है.
इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर (IGRC) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में 270 करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरे एक साल में 30 दिन तक पानी के संकट से जूझते हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अगले तीन दशक में पानी का उपभोग एक फीसदी की दर से भी बढ़ता है तो दुनिया को बड़े जल संकट से गुजरना होगा. इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन, नदी, झील और जलाशयों का खत्म होना होगा.पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी (डब्ल्यूएमओ) ने "द स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज 2021: वॉटर" नाम की अपनी नई रिपोर्ट में कहा कि 2018 में विश्व स्तर पर 3.6 अरब लोगों को पानी की कमी थी. 2050 तक यह संख्या पांच अरब से अधिक होने की आशंका है.
"संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस का कहना है कि धरती का तापमान जिस तेजी के साथ बढ़ रहा है उसकी बदौलत जल की सुलभता में भी बदलाव आ रहा है. जलवायु परिवर्तन का सीधा असर बारिश के पूर्वानुमान और खेती के मौसम पर भी पड़ रहा है. उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई है कि इसका असर खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर भी हो सकता है.
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान यानी International Food Policy Research Institute के एक अध्ययन में पाया गया कि दुनिया की आधी से अधिक आबादी और वैश्विक अनाज उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा 2050 तक पानी की कमी के कारण जोखिम में होगा.
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