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बबलू पन्नू उसी गांव में रहते हैं जहां के सुशील काजल थे. पन्नू ने 45 वर्षीय किसान सुशील काजल के आखिरी दिन को याद करते हुए कहा कि "उसकी (सुशील की) गर्दन के पिछले हिस्से में एक बड़ा घाव था, यह एक गांठ की तरह दिख रहा था. यही नहीं उसकी पीठ और पैरों पर भी चोट के निशान थे. चोटिल होने के बाद उसने जब कहा कि उसे चक्कर आ रहा है, तब मैंने उसे कहा कि हम उसे अस्पताल लेकर चलते हैं, लेकिन उसने कहा कि यह (चोट) इतनी गंभीर नहीं है. फिर हमारे घर पहुंचने के बाद, उसकी मां ने उसे हल्दी वाला दूध पिलाया. उसने कहा कि उसका रात को खाना खाने का मन नहीं है. वह दूध पीकर सोना चाहता था. वह सो गया लेकिन सुबह उठा नहीं."
सुशील काजल करनाल के रायपुर जट्टन गांव के एक किसान थे, जिनकी नींद में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. केंद्र के तीन कृषि कानूनों और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के विरोध में किसानों के साथ संघर्ष में शनिवार, 28 अगस्त को जब हरियाणा पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया था तब सुशील को उस घटना में काफी चोट आई थी.
करनाल के एसपी गंगा राम पुनिया के अनुसार सुशील की मौत का संबंध झड़पों (लाठीचार्ज) में लगी चोटों से नहीं है. जबकि सुशील के दोस्तों, परिवार और भारतीय किसान संघ (BKU) के नेताओं ने का इससे अलग मानना है.
शनिवार की सुबह पन्नू बाइक से सुशील को धरना स्थल पर ले गया था और उसे छोड़कर कुछ समय के लिए अपने निजी काम से चला गया था. कुछ घंटे बाद जब पन्नू लौटा तो उसने सुशील को जख्मी, खून से लथपथ और मिट्टी से सना हुआ पाया.
पन्नू आगे बताते हैं कि "उन्होंने (सुशील) ने हॉस्पिटल जाने से इनकार कर दिया था, उन्होंने कहा था कि चोटें इतनी गंभीर नहीं हैं, इसके अलावा उन्होंने कहा कि वे बस कुछ दर्द कम होने की दवा लेंगे."
इसके बाद पन्नू ने सुशील को अपनी बाइक से वापस घर लाकर छोड़ दिया और अगले दिन जब उन्हें सुशील की मौत की खबर मिली तो वे इसे सुनकर चौंक गए.
सुशील के साथ जब यह घटना हुई तो उन्हीं के गांव के एक साथी प्रदर्शनकारी परमजीत सिंह उस दौरान घटना स्थल पर ही मौजूद थे.
परमजीत ने क्विंट को बताया कि "संघर्ष शुरू होने के बाद प्रदर्शन कर रहे किसानों में से कुछ किसान पास के मैदान (फील्ड) की तरफ भाग गए थे, सुशील उनमें से एक थे. तब पुलिस ने वहां उनका पीछा किया और उन्हें लाठियों से पीटा. उसके बाद मुझे बताया गया कि वह घर गया और वह बहुत परेशान था."
परमजीत सिंह ने आगे कहा कि उन्हें (सुशील) पुलिस ने कुछ समय के लिए हिरासत में लिया था और वे शाम को ही गांव लौटे थे.
सुशील के जाने के बाद अब उनके घर में उनकी मां, पत्नी सुदेश देवी, बेटा साहिल और बेटी अन्नू बचे हैं. सुशील नौ महीने पहले शुरु हुए कृषि विरोधी कानून के खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शनों में सक्रियता से हिस्सा लेते थे. उनके दोनों बच्चों की शादी हो चुकी है. सुशील के आकस्मिक निधन से परिवार अभी भी सदमे में है और उन्होंने अब तक मीडिया से बात करने से इनकार किया है.
सुशील के घर के बगल में रहने वाले और उनके परिवार को दशकों से जानने वाले रविंदर काजल ने बताया कि "हम एक-दूसरे को बचपन से जानते थे. हम एक साथ बड़े हुए, हमने साथ में खेला था. किसी के साथ सुशील की बुराई नहीं थी, वह एक अच्छे इंसान थे. उनके गुजरने के बाद परिवार अभी भी सदमे में है."
रविंदर ने यह भी कहा कि किसानों के आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर सुशील चिंतित रहते थे.
रविंदर के मुताबिक सुशील कुछ आर्थिक दिक्कतों का भी सामना कर रहे थे.
रविंदर ने कहा कि "उनके (सुशील के) पास 1.5 एकड़ जमीन थी, आपको क्या लगता है कि उनकी आय कितनी थी? उन्होंने मुश्किल से 20,000 रुपये प्रति वर्ष कमाए. उनके पास भुगतान करने के लिए ऋण थे; बैंक ऋण, साहूकारों का ऋण. उन पर लगभग 8-10 लाख रुपये तक का कर्ज है. उनका बेटा केवल 21-22 साल का है और वह अभी भी बेरोजगार है."
क्विंट से बात करते हुए, बीकेयू (BKU) नेता जगदीप सिंह औलख ने कहा कि सुशील काजल का अंतिम संस्कार करने से पहले पोस्टमार्टम नहीं करना सबसे बड़ी “त्रासदी” थी.
औलख ने दावे से कहा कि "उनके (सुशील) शरीर पर कई चोट के निशान थे. उसके पेट का हिस्सा सूज गया था. हो सकता है उनको आंतरिक रक्तस्राव यानी इंटरनल ब्लीडिंग हुई हो. उसके सिर के पिछले हिस्से में चोट के साथ-साथ सूजन भी थी."
औलख ने कहा कि "गांव के लोग भोले-भाले होते हैं. जब वह (सुशील) सुबह नहीं उठे और गांव वालों को पता चला कि उनका निधन हो गया है, तो उन्होंने अंतिम संस्कार किया. इन स्थितियों में लोग आमतौर पर जल्द से जल्द अंतिम संस्कार करने में विश्वास करते हैं. इस मामले पर कोई चर्चा नहीं हो सकी क्योंकि कई लोग घायल हो गए थे. हर कोई इसके बारे में नहीं जानता था या इस पर बात करने के लिए समय पर इकट्ठा नहीं हो पाया था. यहां सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि अंतिम संस्कार से पहले हम पोस्टमार्टम नहीं कर सके. लेकिन उनकी मौत लाठीचार्ज के कारण हुई. नहीं तो वो एक स्वस्थ व्यक्ति थे और उन्हें कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं थी. उन्हें जो चोटें आईं, वे गंभीर थीं."
आगे आरोप लगाते हुए औलख ने कहा कि "कई घायलों को पुलिस ने शनिवार को अस्पताल ले जाने की अनुमति नहीं दी और जो लोग जाने में किसी तरह से कामयाब रहे, उनकी मेडिको-लीगल रिपोर्ट (एमएलआर) जारी नहीं की गई."
औलख ने कहा कि "उस दिन लोगों को एमएलआर जारी किए बिना छुट्टी दे दी गई थी. अगले दिन एमएलआर जारी किए गए जब हम घायलों को अस्पताल ले गए. इससे पहले, सुशील का निधन हो गया था और वे नहीं रहे."
रिपोर्ट्स के अनुसार कम से कम 40 किसानों ने सिविल अस्पताल से अपनी मेडिको-लीगल रिपोर्ट (एमएलआर) तैयार कराई. वहीं इसी दौरान 28 अगस्त को हुई झड़प को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों के खिलाफ दो प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गईं.
करनाल के एसपी गंगा राम पुनिया ने रविवार को एएनआई (ANI) को बताया, "वह (सुशील) किसी अस्पताल नहीं गए. वह स्थिर हालत में घर गए और उनकी नींद में ही मौत हो गई. कुछ लोग कह रहे हैं कि दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हुई है. जिन रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए गए बल के दौरान चोट लगने से उनकी मौत हुई वे रिपोर्ट्स झूठी हैं."
पुनिया की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, औलख ने कहा कि पुलिस और सरकार अपना बचाव करेगी, भले ही वे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां ही क्यों न चलाएं.
30 अगस्त सोमवार को हुई संयुक्त बैठक में कई किसान संघों ने सुशील काजल के परिवार को 25 लाख रुपये मुआवजा और उनके बेटे को सरकारी नौकरी देने की मांग की है.
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