Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Literature Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019"बोलते हैं हम खूब ज़बानी..." युवाओं को किताब वाली हिंदी से कैसे जोड़ा जा सकता है?

"बोलते हैं हम खूब ज़बानी..." युवाओं को किताब वाली हिंदी से कैसे जोड़ा जा सकता है?

Hindi Diwas 2023: क्या मौजूदा वक्त में हिंदी के लेखक ज्यादा होते जा रहे हैं और अच्छी किताबें कम आ रही हैं?

मोहम्मद साक़िब मज़ीद
साहित्य
Published:
<div class="paragraphs"><p>Hindi Diwas पर&nbsp;सम्यक ललित से बातचीत&nbsp;</p></div>
i

Hindi Diwas पर सम्यक ललित से बातचीत 

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

बोलते हैं हम खूब ज़बानी,

हिंद के हिंदी हिंदुस्तानी.

हिंद, हिंदुस्तान और हिंदी (Hindi)...भाषा से इतर इस हिंदी से हमारा अलग ही रिश्ता है. 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस (Hindi Diwas) मनाया जाता है. इस दिन का काफी लंबा इतिहास रहा है. इस मौके क्विंट हिंदी ने 'कविता कोश' वेबसाइट के संस्थापक सम्यक ललित (Lalit Kumar) से बातचीत की है. आइए जानते हैं कि उन्होंने इस खास बातचीत में हिंदी को लेकर क्या बातें कही हैं.

हिंदी दिवस के मौके पर लोग सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के ज़रिए बधाई संदेश देते हैं. आज के युवाओं को आप हिंदी से कितना जुड़ा हुआ देखते हैं? 

यकीनन जुड़ाव तो है...हिंदी बहुत बडे़ तबके की भाषा है और हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग हिंदी समझते और बोलते भी हैं. ये प्रश्न उठाना कि युवा हिंदी से कितना जुड़ाव रखते हैं...मुझे लगता है कि ये बेमानी चीज है. ये जरूर है कि व्यवसाय के कारण हिंदी अभी तक अंग्रेजी के उतना प्रतियोगिता नहीं कर पाई है.

आपने एक हिंदी केंद्रित वेबसाइट शुरू की 'कविता कोश', इसको शुरू करने के पीछे सोच क्या थी और इसे युवाओं की कैसी प्रतिक्रिया मिली?

इसके पीछे की सोच बहुत ही साधारण थी क्योंकि इस तरह की कोई वेबसाइट हिंदी भाषियों के लिए उपलब्ध नहीं थी. इसलिए मुझे लगा कि वो ऐसी जरूरत है, जिसे पूरा करना चाहिए. इसीलिए मैंने साल 2006 में इस परियोजना की शुरुआत की.

इस पर युवाओं की प्रतिक्रिया बहुत ही अच्छी रही, विशेष रूप से युवाओं की तरफ से हमें बहुत समर्थन मिला. एक वजह बताई जाती थी कि हम पढ़ना चाहते हैं लेकिन किताबें उपलब्ध नही हैं. तो कविता कोश ने इस समस्या का निराकरण किया. हमने देखा कि युवा मेट्रो ट्रेन में सफर करते हुए अपने मोबाइल फोन में हिंदी कविता पढ़ते थे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आधुनिक युवा पीढ़ी का दौर स्मार्टफोन का दौर है, यूट्यूब वीडियोज और रील्स का दौर है...लोग किताबों से दूर जा रहे हैं. ऐसे में युवा पीढ़ी और आने वाली नस्लों को किताब वाली हिंदी से कैसे जोड़ा सकता है?

मेरे ख्याल से ये एक वाजिब चिंता है. आज के दौर में युवाओं का किताबों से ध्यान हटकर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की तरफ जा रहा है. इस समस्या को हल करने का एकमात्र तरीका ये है कि बचपन से ही माता-पिता और प्राइमरी स्तर के शिक्षकों को किताबें पढ़ने का जज्बा पैदा करना चाहिए.

जब तक हम इसको प्राथमिक स्कूल के स्तर पर सुनिश्चित नहीं कर पाएंगे, यह बहुत मुश्किल होगा. क्योंकि जो नया माध्यम है, इंटरनेट और मोबाइल का...वहां से आने वाली सूचनाओं के लिए हमें कम कोशिश करनी पड़ती है और पुस्तक को पढ़ने के लिए हमें ज्यादा प्रयास करना पड़ता है. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि युवा पीढ़ी का रुझान इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की तरफ ज्यादा है, पर इसे उलटना बहुत जरूरी है और इसके लिए मैंने जो तरीका बताया, उस पर काम करना बहुत जरूरी है.

आज के वक्त में किताबों को छपवाना पहले जैसा कोई मुश्किल काम नहीं रहा. पहले प्रकाशन से लेकर कई तरह की और भी चुनौतियां हुआ करती थीं. अब लोग ऑनलाइन संस्करण में भी किताबें छपवा देते हैं. लेकिन अब ये आसानी क्या किताबों की गुणवत्ता या यूं कहें कि किताबों की सामग्री पर असर डाल रही है? क्या लेखक ज़्यादा होते जा रहे हैं और अच्छी किताबें कम आ रही हैं?

मेरे व्यक्तिगत विचार है कि इसमें कोई शक नहीं कि गुणवत्ता के ऊपर असर पड़ रहा है. वजह वही है, जो आपने बताया कि प्रकाशन बहुत आसान होता जा रहा है. पहले हर किताब के ऊपर एक रचनाकार भी एक बेट लगाता था कि ये एक बहुत मेहनत का काम है, इस किताब को इस फॉर्म में लेकर आना मेहनत का काम है.

लेखक की उसमें अच्छी गुणवत्ता लेकर आएगा और प्रकाशक भी उसमें अच्छे तरीके से काम करेगा लेकिन आजकल वो प्रतिरोध खत्म हो गया है.

इसके पीछ की वजह ये है कि आप बहुत आसानी से किताबे प्रकाशित कर ले रहे हैं. लोगों को इस बारे में चिंता कम हो गई है कि उसकी गुणवत्ता है या नहीं. किताबें और रचनाकार ज्यादा होते जा रहे हैं लेकिन गुणवत्ता पर असर पड़ा रहा है.

इंटरनेट पर हिंदी भाषा में अगर कोई काम करना चाहता है या पैसे कमाना चाहता है, तो उसके लिए किस तरह के मौके हैं?

बहुत सारे हैं...पहला तो ये है कि आप लेखन कर सकते हैं. बहुत सारी वेबसाइट्स हैं जहां हिंदी में लिखे हुए कंटेंट की बहुत मांग है. लेकिन सिर्फ लेखन तक सीमित नहीं है. आप देखेंगे कि यूट्यूब ने भी एक बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा दिया है, जहां पर हिंदी भाषा में बहुत सारे कंटेंट कंज्यूम किया जा रहा है, उसकी मांग भी है.

हमारे देश में लोग ऐसे बोल जरूर देते हैं कि अंग्रेजी का वर्चस्व है लेकिन जो हिंदी बेल्ट है उसके अंदर ज्यादातर लोग हिंदी में कम्फर्टेबल हैं.

हिंदी बोलने वाला तबका, अंग्रेजी बोलने वाले तबके से कहीं ज्यादा बड़ा है. वीडियो और वायस ओवर में बहुत ज्यादा मांग है. वायस ओवर को अगर आप देखेंगे तो फिल्मों और विज्ञापनों में भी हिंदी की बहुत मांग है. इस तरह के हर क्षेत्र में हिंदी के जरिए व्यवसाय किया जा सकता है.

"भाषा का कोई क्षेत्र और धर्म नहीं होता"

क्विंट हिंदी से बातचीत में हिंदी के बारे में बात करते हुए सम्यक ललित आगे कहते हैं कि हिंदी एक बहुत ही खूबसूरत भाषा है. यह बहुत सारी भाषाओं का मेल है, इसमें उर्दू भी शामिल है. हमारी तमाम बोलियां शामिल हैं. हिंदी बेल्ट के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग प्रकार की हिंदी बोली जाती है.

हिंदी बहुत ही सुंदर और समृद्ध भाषा है...इसका इस्तेमाल करें. भाषा उसी की होती है, जो बोलता है. हमारे देश में इस तरह की बहुत चीजें चलती हैं कि भाषा का एक खास क्षेत्र और धर्म से संबंध है या जाति से संबंध है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. भाषा उसी की होती है, जो बोलता है.
सम्यक ललित, कविताकोश और गद्यकोश के संस्थापक

हिंदी भाषा की उतनी ही वेल्यू है, जितनी चाइनीज, रशियन, स्पैनिश और अंग्रेजी की है. अच्छा बोलें, अच्छा लिखें, अपनी भाषा के ऊपर कमांड हो और ज्यादा बेहतर बनें.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT