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हिंदुस्तान अपने गणतंत्र का जश्न (Republic Day 2023) मना रहा है. देश को आजाद करवाने से लेकर संविधान लागू होने तक हमारे देश की तमाम अजीम शख्सियतों ने एक साथ मिलकर वतन के हक में खून-पसीना एक किया और उसके बदले में हमें मिला संप्रभु देश- हमारा भारत. कई ऐसे कलमकार गुजरे, जिन्होंने अपने कलाम से देश के लिए लड़ने वालों का हौंसला बुलंद रखा. हम आपको आज ऐसी ही शख्सियतों से मिलवाएंगे.
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है.
उर्दू शायर बिस्मिल अजीमाबादी ने ये शेर भारत देश की आजादी के योद्धाओं के लिए लिखा था. स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल ने यही शेर अंग्रेजों को ललकारते हुए एक अदालत में पढ़ा था.
स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार लालचन्द फलक, दुनिया से चले के बाद भी वतनपरस्ती न भूलने की बात करते हुए लिखते हैं...
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त,
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी.
भारत के ऐ सपूतो हिम्मत दिखाए जाओ
दुनिया के दिल पे अपना सिक्का बिठाए जाओ
- लाल चन्द फ़लक
अगला शेर तो आपने सुना ही होगा, जो हिंदुस्तानी दिलों में बसता है. उर्दू शायर और फलसफी अल्लामा इकबाल ‘तराना-ए-हिंद’ में लिखते हैं.
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा.
फिराक साहब लिखते हैं...
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है,
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी.
जाफर मलीहाबादी...वतन की याद में जमीं को आसमां बनाने की बात करते हुए कहते हैं...
वतन के जाँ-निसार हैं वतन के काम आएँगे,
हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमाँ बनाएँगे.
जाफर मलीहाबादी अपनी दूसरी गजल के शेर में सभी हिंदुस्तानियों को एक रहने की गुहार लगाते हुए कहते हैं...
दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो,
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो.
ऐ अहल-ए-वतन शाम-ओ-सहर जागते रहना
अग़्यार हैं आमादा-ए-शर जागते रहना
- जाफर मलीहाबादी
नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक रखने वाले सिराज लखनवी साहब वतन के लिए लुट गए पुरखों को याद करते हुए लिखते हैं...
कहाँ हैं आज वो शम-ए-वतन के परवाने,
बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़्साने.
उर्दू शायर जफर अली खां लिखते हैं...
नाक़ूस से ग़रज़ है न मतलब अज़ाँ से है,
मुझ को अगर है इश्क़ तो हिन्दोस्ताँ से है.
इंकलाब और हुस्न-ओ-इश्क के शायर अल्ताफ मशहदी आजादी की लड़ाई के दौर में सेनानियों की हौसला अफजाई करते हुए लिखते हैं...
फिर दयार-ए-हिन्द को आबाद करने के लिए,
झूम कर उट्ठो वतन आज़ाद करने के लिए.
शायर जाफर ताहिर शहीदों को याद करते हुए लिखते हैं...
ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला,
देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया.
अफसर मेरठी लिखते हैं...
दुख में सुख में हर हालत में भारत दिल का सहारा है,
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से प्यारा है.
ख़ुदा ऐ काश 'नाज़िश' जीते-जी वो वक़्त भी लाए,
कि जब हिन्दोस्तान कहलाएगा हिन्दोस्तान-ए-आज़ादी.
अमीन सलौनवी आजाद हिंदुस्तान को जन्नत-निशाँ बताते हुए कहते हैं...
ख़ूँ शहीदान-ए-वतन का रंग ला कर ही रहा,
आज ये जन्नत-निशाँ हिन्दोस्ताँ आज़ाद है.
रामायण पर लिखी अपनी नज्म के लिए पहचाने जाने वाले चकबस्त ब्रिज नारायण वतन की मिट्टी से मोहब्बत की बात करते हुए लिखते हैं...
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है,
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में.
शायर वाली आसी लिखते हैं...
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता
शायर जावेद अकरम फारूकी लिखते हैं...
ऐ ख़ाक-ए-वतन अब तो वफ़ाओं का सिला दे
मैं टूटती साँसों की फ़सीलों पे खड़ा हूँ
उर्दू शायर खुर्शीद अकबर लिखते हैं...
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी,
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते.
अपनी शायरी से मुशायरों में जान और दिलों में राहत फूंक देने वाले शायर राहत साहब लिखते हैं...
मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.
शायर और गीतकार जावेद अख्तर लिखते हैं...
इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान,
अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान.
नीचे लिखे कुछ शेर ऐसे हैं जिनको लिखने वालों की पहचान नामालूम है.
बे-ज़ार हैं जो जज़्बा-ए-हुब्ब-उल-वतनी से
वो लोग किसी से भी मोहब्बत नहीं करते
है मोहब्बत इस वतन से अपनी मिट्टी से हमें
इस लिए अपना करेंगे जान-ओ-तन क़ुर्बान हम
वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे,
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा.
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता,
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें.
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