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लोकसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा है. इंडिया ब्लॉक (INDIA Bloc) में सीटों की शेयरिंग को लेकर बैठकों का दौर जारी है. इस बीच उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच सियासी नूरा-कुश्ती चल रही है. दोनों के मुखिया एक-दूसरे पर हमलावर हैं. ऐसे में समझते हैं कि आखिर हाल के दिनों में दोनों के बीच क्या विवाद हुआ और इसका सियासत पर क्या असर पड़ेगा?
दरअसल, अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और मायावती की बीएसपी के बीच का विवाद तो 90 के दशक का है, लेकिन ताजा विवाद की शुरुआत अखिलेश यादव के बयान से शुरू हुआ और अब तक जारी है.
अखिलेश यादव रविवार (7 जनवरी) को बलिया दौरे पर थे. यहां जब उनसे इंडिया ब्लॉक में मायावती को शामिल करने के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने तंज भरे लहजे में पूछा, "उसके बाद का (2024 लोकसभा चुनाव) भरोसा आप दिलाओगे. बात भरोसे की है. अगर वह आती हैं तो आप में से कौन भरोसा दिलाएगा?'.
अखिलेश के तंज पर मायावती ने सोमवार (8 जनवरी) को 'X' पोस्ट कर समाजवादी पार्टी को अति पिछड़ा और दलित विरोधी पार्टी करार दिया. साथ ही, उन्होंने एक बार फिर से 2 जून 1995, को हुए गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाई और कहा कि उन्हें समाजवादी पार्टी के नेताओं से खतरा है.
नीचे दी गई तस्वीर में देखें मायावती ने क्या पोस्ट किया-
मायावती के पोस्ट पर अखिलेश यादव ने भी जवाब दिया और कहा कि उन्होंने कुछ लोगों का 'X' पढ़ना बंद कर दिया है.
इस मामले में यूपी के डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता केशव प्रसाद मौर्य का भी बयान सामने आया और उन्होंने मायावती का समर्थन किया.
डिप्टी सीएम ने कहा, "प्रदेश में बीजेपी की सरकार है, बहनजी समेत राज्य के हर नागरिक की सुरक्षा के प्रति सरकार कृत संकल्प है."
केशव मौर्य ने कहा कि मैंने उनका ट्वीट भी देखा है. साल 2019 में जब इन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया था, कांग्रेस और आरएलडी से समझौता किया था, तब भी हमने कहा था कि एसपी गुंडों, माफियाओं की पार्टी है. इस पार्टी से बचकर रहें, इससे राज्य का भी भला है राष्ट्र का भी भला है. वैसे भी एसपी समाप्तवादी पार्टी बनने वाली है, 2024 में यूपी की सभी 80 सीटें बीजेपी गठबंधन ही जीतेगा.
अखिलेश यादव, मायावती और केशव मौर्या के बयानों के मायने समझें तो साफ है कि एसपी चाहती है कि बीएसपी 'INDIA' ब्लॉक में शामिल न हो, तो वहीं मायावती भी चाहती है कि अगर कांग्रेस उसके साथ गठबंधन करना चाहती है तो वो बिना समाजवादी पार्टी के आए, जबकि बीजेपी की कोशिश है कि बीएसपी-एसपी अलग-अलग लड़ें, जिससे पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो और पार्टी लोकसभा चुनाव में यूपी से भारी सफलता हासिल कर सके.
दरअसल, मोटे तौर पर अखिलेश और मायावती पिछले पांच साल से ये आरोप लगाते आ रहे हैं कि जब 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी का गठबंधन हुआ था, तो उस वक्त दोनों ही दल एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर नहीं कर सके. अखिलेश का आरोप है कि एसपी के साथ आने से मायावती को फायदा हुआ और शून्य सांसद वाली पार्टी 10 पर पहुंच गई, जबकि एसपी पहले की तरह पांच सीटों पर ही रह गई, और उसके परिवार के ही कई सदस्य चुनाव हार गये. पार्टी ने 2019 में कन्नौज, बदायूं और फिरोज़ाबाद जैसे यादव बहुल गढ़ भी गंवा दिये.
हालांकि, जानकार मायावती के दावों से सहमत नहीं दिखते हैं. उनका तर्क है कि मायावती को गठबंधन से फायदा हुआ था, जबकि एसपी का नुकसान. मायावती ने सीटों के चयन में भी बुद्धिमानी दिखाई थी और जहां-जहां एसपी मजबूत हैं, वहां से अपने प्रत्याशी घोषित किये थे, जबकि एसपी के खाते में कई कमजोर सीट गई थी जिसमें लखनऊ, कानपुर, झांसी, इलाहाबाद और वाराणसी आदि शामिल है.
लेकिन क्या वजह सिर्फ इतनी है या इसके पीछे कुछ और कहानी है. दरअसल, अभी के हालात देखकर लगता है कि कांग्रेस पार्टी चाहती है कि 'INDIA' ब्लॉक में मायावती की एंट्री हो. उसके रणनीतिकारों का तर्क है कि बीएसपी के आने से दलित वोट को मजबूत करने में मदद मिलेगी, साथ ही यह सुनिश्चित होगा कि मुस्लिम वोट कई तरह से विभाजित न हो. लेकिन अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी बीएसपी की एंट्री का विरोध कर रहे हैं.
इसके पीछे की मुख्य वजह सीट शेयरिंग हैं. सूत्रों की मानें तो अखिलेश यादव 65 सीट की मांग कर रहे हैं. वो 10 सीटें कांग्रेस और 5 सीटों राष्ट्रीय लोक दल के लिए छोड़ना चाहते हैं. समाजवादी पार्टी प्रमुख 2022 के विधानसभा चुनावों का हवाला दे रहे हैं और कह रहे हैं कि SP ने 111 सीटें जीती थी, तो ऐसे में उसे अधिक सीटों पर लड़ना चाहिए.
इसके अलावा अखिलेश यादव की चाहत ये भी है कि अगर उनकी पार्टी ज्यादा सीटों पर लड़ेगी और पिछले बार से बेहतर प्रदर्शन कर पाई (सीट और वोट प्रतिशत दोनों के लिहाज से) तो 2027 में प्रदेश की जनता को संदेश जाएगा की सिर्फ एसपी ही बीजेपी को मात दे सकती है.
कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि समाजवादी पार्टी अपने ओबीसी आधार को यादवों से आगे बढ़ाने के लिए जातीय-आधारित पार्टियों के साथ गठजोड़ कर रही है, और खुद को राज्य में इंडिया ब्लॉक के नेता के रूप में देखती है.
इंडियन एक्सप्रेस से एसपी के एक नेता ने कहा, "अगर बीएसपी ब्लॉक में शामिल होती है तो वो दूसरी भूमिका निभाकर खुश नहीं होगी. उदाहारण के तौर पर 2019 का चुनाव देख लीजिए. एसपी 37 और बीएसपी 38 सीटों पर चुनाव लड़ी. मायावती पूरे गठबंधन में हावी रही और उन सीटों का चयन किया जहां एसपी मजबूत हैं और बीजेपी कमजोर (ग्रामीण क्षेत्रों में), इसका फायदा बीएसपी को मिला.
वहीं, मायावती के विरोध के पीछे की प्रमुख वजह सीट शेयरिंग के साथ अखिलेश की कास्ट पॉलिटिक्स है. दरअसल, 2019 में बीएसपी से अलग होने के बाद से समाजवादी पारटी दलितों को जोड़ने में लगी हैं.
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के नारे पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने मायावती की पार्टी के कई नेताओं को अपने पाले में कर लिया है. ऐसे में मायावती दलितों को बार-बार समाजवादी पार्टी के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि, मायावती के कोर वोटर्स पर बीजेपी 2014 के चुनावों से ही बड़ी सेंधमारी कर चुकी है. लेकिन बावजूद अब जो वोट बैंक मायावती का बचा है, वो उसे गंवाने नहीं चाहती हैं.
इसके अलावा, मुस्लिम वोट भी है, जो मायावती अपने साथ जोड़े रखना चाहती हैं. साल 2023 में यूपी में हुए निकाय चुनाव में मायावती ने बड़े स्तर पर मुस्लिमों को टिकट दिया था, इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ भी और बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी. मायावती चाहती हैं कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी में जाने के बजाए बीएसपी के पाले में आए.
2022 के बाद से एसपी के कई मुस्लिम नेताओं के खिलाफ हुई सरकार की कार्रवाई पर अखिलेश यादव का खुलकर विरोध न करना भी मायावती को मौका दे रहा है. वो समाजवादी पार्टी को कई बार मुस्लिम विरोधी पार्टी कह चुकी हैं.
यूपी में जातीय समीकरण को देखें तो राज्य में दलितों की लगभग 20 प्रतिशत, यादवों की 10 प्रतिशत और मुस्लिम करीब 19 प्रतिशत हैं. ये किसी भी विपक्षी दल के लिए बीजेपी को हराने में मजबूत वोट हैं.
वहीं, मायावती अपने भतीजे और बीएसपी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद के सियासी भविष्य को भी देख रही हैं. वो नहीं चाहती हैं कि आकाश का पॉलिटिकल करियर पर कोई आंच आए. उनके खिलाफ तमाम केंद्रीय जांचे भी उनका बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ खुलकर विरोध न करने का एक कारण हैं.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मायावती इंडिया ब्लॉक में तभी शामिल होना चाहती हैं, जब उनकी पार्टी को अधिक सीट मिले और उन्हें पीएम पद का चेहरा बनाया जाए, जिससे भविष्य में उनकी और पार्टी की सियासी प्रासंगिकता बनी रहे. क्योंकि 2019 को छोड़ दें तो 2014 के बाद जितने भी चुनाव हुए, उसमें बीएसपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है.
हालांकि, इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि मायावती समाजवादी पार्टी के साथ दोबारा आ सकती है. क्योंकि 2019 में समाजवादी पार्टी से अलग होते समय मायावती ने कहा था कि सपा अपना कोर वोट खो चुकी है. उन्होंने कहा किये एसपी के साथ "स्थायी अलगाव" नहीं है और अगर वह "अपने राजनीतिक कर्तव्यों को पूरा करते हैं" तो वह भविष्य में फिर से अखिलेश के साथ काम कर सकती हैं.
हालांकि, बीजेपी बार-बार कहती रही है कि कोई भी गठबंधन हो जाए, उसे सत्ता में आने से कोई रोक नहीं सकता है. लेकिन 2022 के ताजा आंकड़ों को देखें तो समझ आएगा कि एसपी, बीएसपी, कांग्रेस और आरएलडी का साथ आने का क्या मतलब है.
वहीं, अंकगणित के तौर पर इनका मिलना कितना मुश्किल है, ये वक्त तय करेगा लेकिन इन दलों के साथ आने से उत्तर प्रदेश की सियासी केमिस्ट्री जरूर बदल सकती है, जो बीजेपी के लिए चिंता की बात है.
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Published: 09 Jan 2024,02:39 PM IST