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(वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह के सहयोगी पापलप्रीत सिंह को पंजाब पुलिस ने 10 अप्रैल को पंजाब के होशियारपुर से गिरफ्तार किया है. यह पापलप्रीत सिंह का प्रोफाइल है, जो मूल रूप से 7 अप्रैल को प्रकाशित हुआ था.)
'वारिस पंजाब दे' का प्रमुख अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) कहां है? हमें पता नहीं. उसका क्या होगा? यह तो केवल समय बताएगा.
लेकिन इन सवालों के बीच एक और अहम सवाल है - वो यहां तक कैसे पहुंचा?
अक्टूबर 2022 की अपनी रिपोर्ट में, हमने इन तीन चीजों के बारे में आपको बताया था- अमृतपाल सिंह की ऑनलाइन सक्रियता के शुरुआती दिन कैसे थे, 2022 में दुबई से लौटने के बाद वो अचानक कैसे उभरने लगा और पंजाब में मौजूद किस खालीपन ने उसको उभरने में मदद की. मीडिया में अमृतपाल सिंह की यह पहली प्रोफाइल थी.
हालांकि, पूरी पहेली में एक लापता टुकड़ा है- वह है पापलप्रीत सिंह, अमृतपाल सिंह का वो सहयोगी जो उसके साथ-साथ पुलिस से बच निकला और वर्तमान में फरार है.
अब तक मेनस्ट्रीम मीडिया में पापलप्रीत सिंह के बारे में जो कुछ भी सामने आया है, वह अमृतपाल सिंह के 'हैंडलर', 'ISI लिंक वाले स्वयंभू पत्रकार' जैसे अनाम 'सूत्रों' के हवाले से दिया गया है.
हम इन अफवाहों की पुष्टि या खंडन करने की स्थिति में नहीं हैं और यह इस आर्टिकल का उद्देश्य भी नहीं है. हम पापलप्रीत सिंह के अबतक 'सफर' को एक साथ देखने की कोशिश करेंगे. साथ ही यह समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे या 'सफर' सरकार के साथ अमृतपाल सिंह के वर्तमान 'जंग' को एक्सप्लेन कर सकती है.
40 की उम्र की ओर रुख करता पापलप्रीत सिंह किसान के परिवार से है. उसने एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई की और कथित तौर पर पीजी डिप्लोमा पूरा किया. पापलप्रीत सिंह 20 की उम्र पार करते-करते एक एक्टिविस्ट बन गया. वर्ष 2007 था जब दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं.
पहले मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना को मौत की सजा दी गई थी.
दूसरा, अकाल तख्त ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को बेअदबी के एक मामले में माफी दे दी.
पापलप्रीत 'सिख यूथ फ्रंट' के पीछे की सबसे बड़ी शक्ति बन गया और वह सिख यूथ फेडरेशन भिंडरावाला से भी जुड़ा था. खालिस्तान के समर्थन के अलावा, एक प्रमुख मुद्दा जिसके लिए पापलप्रीत ने आंदोलन किया, वह उन सिख कैदियों की रिहाई थी जो 1990 के दशक की शुरुआत से जेल में हैं.
पापलप्रीत सिंह 2015 के सरबत खालसा में प्रमुखता से उभरा. इस सरबत खालसा में पापलप्रीत ने तत्कालीन प्रकाश सिंह बादल सरकार के खिलाफ जेल में बंद आतंकवादी नारायण सिंह चौरा की 'चार्जशीट' पढ़ी. अपने भाषण के अंत में पापलप्रीत ने यह भी कहा कि ''खालिस्तान ही एकमात्र समाधान है.''
2015 के इस सरबत खालसा का आयोजन मुख्य रूप से उस वर्ष की शुरुआत में बेअदबी के मामलों और बेअदबी की घटनाओं के विरोध में शामिल दो सिख युवकों की पुलिस द्वारा हत्या पर गुस्से की अभिव्यक्ति के रूप में किया गया था.
न्यायमूर्ति मेहताब सिंह गिल आयोग की सिफारिशों के बाद केस बाद में 2018 में हटा दिया गया था.
2016 में, पापलप्रीत सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) में शामिल हो गया. उसने 2017 के विधानसभा चुनाव में बरनाला में सिमरनजीत सिंह मान के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया था. हालांकि इस चुनाव में मान ने खराब प्रदर्शन किया और सीट पर चार प्रतिशत से कम वोट हासिल किए.
बाद में उसी साल पापलप्रीत ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
एक पत्रकार जिन्होंने पापलप्रीत सिंह के साथ निकटता से बातचीत की है और उनके उभार को फॉलो किया है, कहते हैं कि "वह अकेले काम करने वाला ऐसा ऑपरेटर हैं जो शिफ्ट होता रहता हैं. वह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो किसी विशेष संगठन के लिए खुद को प्रतिबद्ध करता है".
पत्रकार ने आगे कहा, "उसके पास कोई फॉलोवर्स की कोई भीड़ नहीं है."
पापलप्रीत सिंह के साथ काम कर चुके कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि वह खुद को एक "नेता" या "चेहरे" के रूप में नहीं देखता है, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जो पर्दे के पीछे काम करता है.
यह पापलप्रीत के सोशल मीडिया प्रोफाइल से भी स्पष्ट होता है, जो अब भारत में बैन है. उसके YouTube चैनल में कुछ ही वीडियो ऐसे हैं जिसमें वो खुद बोल रहा है. ज्यादातर वीडियो मारे गए मिलिटेंट, खालिस्तान समर्थक बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं के परिवारों के साथ इंटरव्यू पर था.
पिछले एक साल से उनकी इंस्टाग्राम प्रोफाइल लगभग पूरी तरह से अमृतपाल सिंह को समर्पित थी.
पंजाब में खालिस्तान समर्थक क्षेत्र के भीतर अलग-अलग गुट हैं. एक सिमरनजीत मान और उनके एसएडी-अमृतसर जैसों का गुट है जो खालिस्तान समर्थक तो है, लेकिन इसे लोकतांत्रिक तरीकों से हासिल करना चाहता है. वे भारतीय संविधान के भीतर चुनाव लड़ते हैं. साथ ही दल खालसा जैसे संगठन भी खालिस्तान समर्थक हैं और विरोध के शांतिपूर्ण तरीकों के लिए खड़े हैं.
ऐसे कई कार्यकर्ता भी हैं जो खालिस्तान चाहते हैं लेकिन उसके लिए एक-एक चरण पार करने पर ध्यान केंद्रित करना पसंद करते हैं. उनका मानना है कि पहला लक्ष्य राजनीतिक कैदियों की रिहाई होनी चाहिए.
एक वर्ग ऐसा भी है जो भारतीय संघ के भीतर रहने के लिए तैयार है, बशर्ते वह पंजाब के लिए अधिक संघीय स्वायत्तता दे, पानी के बंटवारे और चंडीगढ़ जैसे मुद्दों को संबोधित करे, और 'मानवाधिकारों के हनन' के पीड़ितों को न्याय दे.
कार्यकर्ता ने कहा, "उसका दृष्टिकोण भारत के भीतर ऐसे अन्य समूहों के साथ गठजोड़ करना मुश्किल बनाता है जो राज्य की नीतियों के शिकार हैं."
सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी में शामिल होते समय भी पापलप्रीत सिंह ने कहा था कि उनका मान से अलग दृष्टिकोण है.
2016 के एक रेडियो इंटरव्यू में, पापलप्रीत सिंह ने कहा था है कि उनकी मुख्य प्रेरणा खालिस्तान के भिंडरावाले टाइगर फोर्स का संस्थापक गुरबचन सिंह मनोचहल है. भिंडरावाले टाइगर फोर्स एक आतंकवादी समूह है जो उग्रवाद के दौरान तरनतारन में शक्तिशाली था.
पापलप्रीत का कहना है कि उसने अपने एक ऐसे रिश्तेदार से मनोचहल की कहानियां सुनीं, जो इस उग्रवादी नेता को जानता था.
कहा जाता है कि भारत सरकार ने मनोचहल को पकड़ने या उसे सरेंडर कराने के लिए बहुत कोशिश की थी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईबी के वरिष्ठ अधिकारी मलय कृष्ण धर को मनोचहल से बातचीत का काम दिया गया था. पंजाब में लापता हुए लोगों के लिए समन्वय समिति के अनुसार मनोचहल के परिवार के सदस्यों को कथित रूप से हिरासत में लिया गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया, ताकि वह सरेंडर कर दे. मनोचहल कई मौकों पर पुलिस से बच निकला और कहा जाता है कि उसने 12 पुलिस अधिकारियों को मार डाला.
1 मार्च 1993 को एक एनकाउंटर में वह मारा गया.
आश्चर्य नहीं होगा कि वैशाखी पर सरबत खालसा बुलाने के लिए अमृतपाल सिंह की मांग पापलप्रीत सिंह का विचार हो सकता है.
पापलप्रीत सिंह के लिए एक प्रमुख फोकस क्षेत्र जरनैल सिंह भिंडरावाले का प्रारंभिक चरण रहा है - 1978 के बाद पंजाब के धार्मिक-राजनीतिक परिदृश्य में उसका अचानक उदय.
एक वरिष्ठ सिख पत्रकार ने क्विंट को बताया, "अमृतपाल सिंह के चारों ओर एक आभा पैदा करने के लिए, पापलप्रीत ने उसकी तस्वीरों को भिंडरावाले की तस्वीरों से मिलता-जुलता बनाया, जो लोगों के बीच जानी जाती हैं. जिस तरह से अमृतपाल को पत्रकारों के साथ, बच्चों के साथ या महिला अनुयायियों के साथ फोटो खिंचवाया जाता है, वह इन वर्गों के साथ भिंडरावाले की तस्वीरों के समान है"
सिर्फ ये ऑप्टिक्स ही नहीं, अमृतपाल का धर्म प्रचार और नशामुक्ति पर भी ध्यान उसी तरह है जैसे भिंडरावाले ने 1970 के दशक में उपभोक्तावाद, अश्लील साहित्य और नशे की लत जैसी बुराइयों के खिलाफ प्रचार करते हुए पंजाब भर में यात्रा की थी.
सच्चाई यह है कि अमृतपाल सिंह दूर-दूर तक भिंडरावाला नहीं है और उसके पास धार्मिक प्रशिक्षण के साथ-साथ जमीनी समर्थन दोनों का अभाव है. लेकिन ऐसा लगता है कि पापलप्रीत ने ऑप्टिक्स और प्रतीकवाद पर फोकस किया है. भिंडरावाले के शुरुआती चरण में जो हुआ, उसके सामने अमृतपाल को खड़ा कर रहा है.
राज्य सरकार की नीतियों और केंद्र सरकार की नीतियों से पैदा हुई शिकायतों के कारण भी इसमें मदद मिली है.
हालांकि यह पता नहीं है कि अमृतपाल सिंह और पापलप्रीत सिंह ने वास्तव में सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की साजिश रची थी, जैसा कि कई मीडिया हॉउस ने दावा किया है.
आगे क्या होता है यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले हफ्तों में सरकार, अकाल तख्त और खालिस्तान समर्थक संगठन क्या करते हैं. ऐसा लगता है कि अकाल तख्त के जत्थेदार अमृतपाल सिंह के सरबत खालसा बुलाने की मांग को स्वीकार नहीं करेंगे.
ऐसे में क्या अन्य खालिस्तान समर्थक संगठन आगे बढ़ेंगे और एक सरबत खालसा आयोजित करेंगे, जैसा कि 1986 और 2015 में बिना आधिकारिक मंजूरी के हुआ था?
या वे ऐसा नहीं करेंगे? अगर कोई भी सरबत खालसा की मांग स्वीकार नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में अमृतपाल सिंह और पापलप्रीत सिंह का पूरा दांव ही फेल हो जाएगा.
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Published: 08 Apr 2023,03:30 PM IST