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अगले 4 महीने अरविंद केजरीवाल और आतिशी के लिए सबसे चुनौती भरे

अगले 4 महीनों में अरविंद केजरीवाल और आतिशी कैसे काम करते हैं, यह AAP के भविष्य को आकार देगा

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>अरविंद केजरीवाल और आतिशी के लिए अगले 4 महीने अवसर भी-चुनौती भी</p></div>
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अरविंद केजरीवाल और आतिशी के लिए अगले 4 महीने अवसर भी-चुनौती भी

(फोटो- विभूषिता सिंह/द क्विंट)

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आतिशी का दिल्ली की मुख्यमंत्री (Delhi CM Atishi) के रूप में शपथ लेना आम आदमी पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण क्षण है. अगले चार से पांच महीनों में दिल्ली चुनाव तक क्या कुछ होगा, यह एक पार्टी के रूप में AAP के भविष्य को आकार दे सकता है.

जब से AAP पहली बार 2013 की सर्दियों में दिल्ली में सत्ता में आई और उससे भी अधिक 2015 की जीत के बाद, अरविंद केजरीवाल पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा होने के साथ-साथ दिल्ली सरकार के प्रमुख भी रहे हैं.

अब, पहली बार पोजिशन बदली है और अब केजरीवाल की जगह आतिशी सरकार की कमान संभाल रही हैं.

यह आम आदमी पार्टी के लिए चुनौती भी है और अवसर भी.

अस्थायी उत्तराधिकारी वाली दुविधा

किसी भी राजनीतिक नेता के लिए अस्थायी उत्तराधिकारी नियुक्त करना कभी आसान नहीं होता है. इस पद के लिए आदर्श उम्मीदवार वह व्यक्ति है जो काम करे, सरकार की लोकप्रियता बरकरार रखे लेकिन साथ ही असली नेता को चुनौती भी न दे.

पिछले लगभग एक दशक से ऐसे प्रयास सफल नहीं हुए हैं. 2014 में, नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी जगह जीतन राम मांझी को नियुक्त किया. उन्हें यह उम्मीद थी कि बिहार को एक महादलित सीएम देना राजनीतिक रूप से फायदेमंद होगा. हालांकि, यह एक्सपेरिमेंट उल्टा पड़ गया क्योंकि मांझी ने नीतीश कुमार की कीमत पर ही खुद को स्थापित करने की कोशिश की.

अभी हाल ही में जब हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया तो उन्होंने चंपई सोरेन को झारखंड का सीएम नियुक्त किया. लेकिन हेमंत सोरेन की वापसी के तुरंत बाद दोनों के बीच मतभेद हो गए और चंपई सोरेन अब बीजेपी में हैं.

एक अधिक सफल प्रयोग यह था कि जयललिता ने अपनी गिरफ्तारी के दौरान तीन बार ओ पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री नियुक्त किया, हर बार बमुश्किल कुछ महीनों के लिए. इन सबके बीच ओपीएस आखिरी समय तक जयललिता के प्रति वफादार रहे.

अब, आतिशी AAP में केजरीवाल की सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक हैं.

2015 में, उन्होंने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ संघर्ष में केजरीवाल का समर्थन करते हुए एक सार्वजनिक बयान दिया था. उन्होंने शिक्षा नीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसे AAP अपने शासन मॉडल के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में प्रदर्शित कर रही है.

आतिशी ने 21 सितंबर को दिल्ली की नई मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

सूत्रों का कहना है कि आतिशी को सीएम बनाकर केजरीवाल यह संदेश देना चाहते हैं कि AAP एक ऐसी पार्टी है जो 'शिक्षित और अच्छा प्रदर्शन करने वाले नेताओं' को बढ़ावा देती है.

ऐसे समय में जब दिल्ली में कई लोग महसूस कर रहे हैं कि AAP-केंद्र के झगड़े के कारण शासन पिछड़ रहा है, केजरीवाल यह बयान देने की उम्मीद कर रहे हैं कि शासन ही उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है.

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सीएम आतिशी के सामने चुनौती

आतिशी एक दिलचस्प स्थिति में हैं क्योंकि वह एक ऐसे कैबिनेट की अध्यक्षता करेंगी जिसमें हर मंत्री उम्र में उनसे बड़ा है (खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन का जन्म आतिशी के समान वर्ष में हुआ था लेकिन वह एक महीने बड़े हैं).

किसी गैर-वंशवादी राजनेता के लिए यह एक महत्वपूर्ण पद है.

लेकिन AAP में हर कोई जानता है कि आतिशी को केजरीवाल का ठोस समर्थन प्राप्त है और पार्टी के लिए कैबिनेट या अपने दिल्ली यूनिट से असंतोष की सुगबुगाहट की संभावना नहीं है.

आतिशी के लिए बड़ी चुनौती उपराज्यपाल और नौकरशाहों को संभालना होगा.

यह स्पष्ट है कि केंद्र AAP को पैंतरेबाजी के लिए कोई जगह नहीं देने जा रहा है. लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार दिल्ली में 7-0 से जीत हासिल करने के बाद, बीजेपी को दिल्ली सरकार से अपना लगभग 26 साल पुराना वनवास खत्म होने की संभावना दिख रही है.

AAP सरकार पर उपराज्यपाल का रुख किसी से छिपा नहीं है. द इंडियन एक्सप्रेस में एक हालिया लेख में, एलजी वीके सक्सेना ने लिखा, "निर्वाचित सरकार हर अन्य प्रशासनिक एजेंसी के प्रति शत्रुतापूर्ण है...नागरिकों को बंधक बना लिया गया है. यह आत्मनिरीक्षण और सुधार का सही समय है."

क्या है अरविंद केजरीवाल की रणनीति?

कहने की जरूरत नहीं है कि केजरीवाल जमानत पर हैं और अब सीएम की कुर्सी पर नहीं हैं. ऐसे में उनकी पूरी प्राथमिकता दिल्ली में जमीन पर उतरना और 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले AAP की संभावनाओं को बढ़ावा देना होगा.

इसमें कोई संदेह नहीं है, मतदाताओं में कुछ हद तक थकान है और AAP अब 2015 जैसी 'चुनौती' नहीं रही है. यह वह पार्टी है जिसने 2015 से दिल्ली सरकार और 2023 से एमसीडी की बागडोर संभाली है. इसलिए उसे शासन के मोर्चे पर सवालों का जवाब देना होगा.

केजरीवाल के करीबी सूत्रों का कहना है कि वह वास्तव में दिल्ली के सीएम की कुर्सी छोड़ने पर "मुक्त" महसूस कर रहे हैं, खासकर जब उपराज्यपाल ने उनकी गर्दन दबा दी थी और अदालत ने जमानत की कठिन शर्तें रखी थीं, जिससे उनके लिए काम करना मुश्किल हो जाता.

AAP संयोजक यानी केजरीवाल की सर्वोच्च प्राथमिकता अब पार्टी को दिल्ली में चुनावी लड़ाई के लिए तैयार करना और राष्ट्रीय स्तर पर AAP को बढ़ावा देना है.

पार्टी का मानना ​​है कि राष्ट्रीय संदर्भ अब काफी बदल गया है, 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीद से कहीं बेहतर रही है और अब वह हरियाणा में संभावित जीत के करीब है.

दिल्ली में विधानसभा चुनावों में AAP की सफलता काफी हद तक उन वोटरों के एक बड़े समूह को अपने पाले में करने पर निर्भर करती है जो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को चुनते हैं. साथ ही वोटरों के उन लगभग पूरे समूह को जीतने पर भी जो लोकसभा चुनावों में दिल्ली के अंदर कांग्रेस को वोट करते हैं.

ऐसे में आक्रामक बीजेपी और फिर से खड़ी होती कांग्रेस AAP के लिए बुरी खबर है और एकमात्र व्यक्ति जो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी और दिल्ली में कांग्रेस के प्रति झुकाव रखने वाले मतदाताओं को वापस अपने पाले में कर सकता है, वह केजरीवाल हैं.

क्या केजरीवाल दिल्ली सरकार से अपने वनवास का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी को मजबूत करने के लिए कर सकते हैं? और क्या आतिशी दिल्ली सचिवालय में केंद्र के चक्रव्यूह को पार कर सकती हैं?

अगले चार से पांच महीनों में इन सवालों का जवाब देखने लायक होगा.

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