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राजस्थान (Rajasthan) पिछले पांच सालों से कांग्रेस के लिए सियासत का केंद्र बना रहा. अशोक गहलोत की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी के बाद से आये दिन, राजस्थान के सियासी घमासान ने देशभर की सुर्खियां बटोरी हैं और अब जब विधानसभा चुनाव में पांच से छह महीने का वक्त बाकी है तो, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक और बयान ने जयपुर से लेकर दिल्ली तक सियासतदानों को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
7 मई को राजस्थान के धौलपुर की एक जनसभा के दौरान अशोक गहलोत ने तीन साल पहले (2020) अमित शाह, धर्मेंद्र प्रधान और गजेंद्र सिंह शेखावत पर सरकार को गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि वसुंधरा राजे, कैलाश मेघवाल और शोभारानी कुशवाहा ने संकट के दौरान सरकार को बचाने में उनकी (गहलोत) की मदद की थी.
अशोक गहलोत के बयान के बाद जयपुर से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया और अब सीएम के बयान पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
अशोक गहलोत ने शिकायत क्यों नहीं दर्ज करायी?
अशोक गहलोत ने इस वक्त ऐसा बयान क्यों दिया?
वसुंधरा राजे के लिए 'फायदा' या 'नुकसान'?
सचिन पायलट कितने होंगे मजबूत?
बीजेपी के पास क्या विकल्प?
राजस्थान की पॉलिटिक्स पर कितना होगा असर?
अमित शाह: गुजरात में मंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार में देश के गृहमंत्री हैं.
धर्मेंद्र प्रधान: बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं और उड़ीसा से आते हैं. वर्तमान की केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्री हैं.
गजेंद्र सिंह शेखावत: राजस्थान से आते हैं. 2014 से लगातार केंद्र में मंत्री हैं. वसुंधरा विरोधी गुट का माना जाता है.
वसुंधरा राजे: राजस्थान की तीन बार सीएम रह चुकी हैं और मौजूदा समय में सीएम पद की प्रमुख दावेदार हैं.
कैलाश मेघवाल: 2018 में छठवीं बार विधायक (शाहपुरा) चुने गये हैं. वह राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष, केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. साथ ही, उन्हें वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है.
शोभारानी कुशवाहा: राजस्थान के धौलापुर से विधायक हैं. बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रमोद तिवारी के पक्ष में वोट करने पर निष्कासित कर दिया है. अशोक गहलोत की तारीफ कर चुकी हैं और वसुंधरा राजे की करीबी मानी जाती हैं.
11 जुलाई, 2020 को तत्कालीन डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दिया था. वो कांग्रेस के 19 विधायकों के साथ गुरुग्राम (हरियाणा) के मानेसर स्थित रिजॉर्ट में पहुंच गए. 12 जुलाई को पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आ जाने का ऐलान कर दिया और सरकार को गिराने के संकेत देने लगे.
इसके बाद महीने भर तक सियासी ड्रामा चलता रहा और अंत में गहलोत ने सदन में बहुमत हासिल कर सरकार बचा ली. कांग्रेस ने कार्रवाई करते हुए सचिन पायलट को पीसीसी चीफ और डिप्टी सीएम के पद से हटा दिया था. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान राजे एक्टिव नहीं दिखी और चुप्पी साधे रखी.
अशोक गहलोत के बयान के बाद पहला सवाल यही उठा रहा है कि जब सीएम के पास इतनी बड़ी सूचना थी और उन्हें पैसे के आदान-प्रदान की जानकारी थी, तो अब तक चुप क्यों थे? उन्होंने शिकायत क्यों नहीं दर्ज करायी? चुनाव के कुछ महीने उन्हें ये सब क्यों याद आ रहा है? इसका जिक्र गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी किया और कहा कि वो (गहलोत) झूठ बोल रहे हैं. अगर ऐसा था तो उन्होंने पैसा लेना वालों पर केस दर्ज क्यों नहीं कराया?
क्या गहलोत ने कांग्रेस हाईकमान या पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को इस बारे में बताया और अगर हां, तो अब तक उन विधायकों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, सियासत के 'जादूगार' कभी कोई भी बात, बिना सोचे-समझें नहीं बोलते हैं. गहलोत ने एक तरीके से एक तीर से कई निशाने किये. पहला, राजे को लेकर बीजेपी और जनता दोनों के मन में संदेह पैदा करने की कोशिश की, जिसका नुकसान राजे को ज्यादा हो सकता है और उनका पत्ता कट सकता (सीएम चेहरे के रूप में) है.
दूसरा, राजे सियासी तौर पर एक्टिव (कांग्रेस के खिलाफ) होंगी तो सचिन पायलट को लेकर जारी संग्राम भी थम सकता है (कुछ समय के लिए) और इससे ध्यान डायवर्ट होगा.
तीसरा, गहलोत ने ये भी संदेश दे दिया कि वो राजे के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे.
वसुंधरा राजे के लिए गहलोत का बयान फायदा कम और नुकसान ज्यादा साबित हो सकता है. बीजेपी हाईकमान से राजे का गतिरोध अभी थमा नहीं है. ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री का बयान, राजे की दावेदारी को बहुत हद तक नुकसान पहुंचा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव कहते हैं, "2020 में जब गहलोत सदन में बहुमत साबित कर रहे थे तो उस वक्त राजे गुट के चार विधायक मौजूद नहीं थे. वहीं, जब बीजेपी विधायकों को ले जाने के लिए गुजरात से चार्टड प्लेन आया था, उसमें भी राजे समर्थक कुछ विधायक नहीं गये थे, जिससे उस समय राजे को लेकर सवाल उठा था. हालांकि, उस समय कुछ अधिकृत पुष्टि नहीं हुई थी."
बीजेपी से जुड़े एक नेता ने नाम न छपने की शर्त में कहा, "इसमें कोई शक नहीं है कि राजे का मौजूदा बीजेपी हाईकमान से बहुत अच्छे संबंध नहीं है. उस वक्त (2020) पूरे मोर्चे को गजेंद्र सिंह शेखावत लीड कर रहे थे और वो राजे के विरोधी गुट के माने जाते हैं. उस दौरान राजे की चुप्पी ने कई सवाल खड़े किये थे, जिसकी चर्चा पार्टी के भीतर भी हुई थी."
हालांकि, राजे गहलोत के बयान के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटी हैं और उन पर निशाना भी साध है. उन्होंने कहा, "जीवन में मेरा जितना अपमान गहलोत ने किया और कोई कर ही नहीं सकता."
सचिन पायलट लंबे समय से गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. वो लगातार राजे पर कार्रवाई के नाम पर गहलोत पर दबाव बना रहे हैं. लेकिन सीएम कोई कार्रवाई राजे पर नहीं कर रहे हैं. ऐसे में गहलोत का ये बयान सचिन पायलट को जनता के बीच और मजबूत करेगा. वो अपनी बात अब और प्रमुखता से उठाएंगे, जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिलने की उम्मीद है. गहलोत का बयान कांग्रेस पार्टी के लिए भी मुश्किल पैदा कर सकता है और पायलट के लिए उम्मीद की किरण साबित बन सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज कहते हैं कि बीजेपी की टॉप लीडरशिप नए चेहरों पर दांव लगा रही है. वो अब राज्यों में नए चेहरों को आगे कर रह ही, जिसका परिणाम कई राज्यों में देखने को मिला है. सूत्रों की मानें तो, बीजेपी राजस्थान में पीएम मोदी के चहरे पर ही चुनाव लड़ेगी यानी किसी को सीएम फेस नहीं बनाएंगी.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, बीजेपी राज्य के जातीय समीकरण को साधने और वसुंधरा के विकल्प के लिए भी मास्टर प्लान बना चुकी है. इस रणनीति पर पिछले कुछ महीनों में कई बड़े कदम उठाये गये हैं. साथ ही, पीएम और गृहमंत्री खुद राजस्थान की मॉनिटरिंग कर रहे हैं.
राजस्थान में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में राजनीतिक बयानबाजी हर दिन माहौल को बदल रही हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो, अशोक गहलोत एक मझे हुए राजनेता हैं. वो अच्छी तरह से जानते हैं कि कब क्या और कैसे करना है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि गहलोत राजनीतिक के अंतिम पड़ाव पर हैं. ऐसे में वो हर कदम को बहुच सोच-समझ कर रख रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा ने कहा, "गहलोत अगर आगे ऐसे कुछ और खुलासे करते हैं तो इसका प्रभाव बड़ा हो सकता है. लेकिन इस वक्त उनके बयान का कितना नफा-नुकसान होगा, ये कहना जल्दबाजी होगी."
हालाकि, अरविंद केजरीवाल ने भी राजस्थान दौरे पर गहलोत और वसुंधरा पर निशाना साधा था. उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि दोनों मिले हुए हैं और हर पांच साल बाद सत्ता में वापसी कर लेते हैं. ऐसे में AAP भी इस मुद्दे को और जोर से उठाएगी और अपने लिए संभावनाएं तलाशेगी.
कांग्रेस से जुड़े एक सूत्र ने कहा, "AAP दिल्ली, पंजाब, गुजरात, गोवा में कांग्रेस के वोटबैंक में सेंधमारी कर चुकी है. वो एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी नुकसान पहुंचा सकती है."
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