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कांग्रेस, टीएमसी और आम आदमी पार्टी से मोह भंग होने के बाद अब हरियाणा के रहने वाले अशोक तंवर (Ashok Tanwar) भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हुए हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और हरियाणा (Haryana) के सीएम मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal Khatar) की मौजूदगी में अशोक तंवर ने बीजेपी का गमछा गले में डाला और सदस्यता की पर्ची कटाई. मतलब पांच साल में अशोक तंवर पांच पार्टी बदल चुके हैं.
18 जनवरी को अशोक तंवर (Ashok Tanwar) ने आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. तंवर AAP हरियाणा चुनाव समिति के अध्यक्ष पद पर थे. ये इस्तीफा AAP के लिए आम चुनाव और फिर हरियाणा (Haryana) विधानसभा चुनाव से पहले झटके के रूप में माना जा रहा. लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब तंवर ने पार्टी और विचारधारा में बदलाव किया है.
तो चलिए बताते हैं कौन हैं अशोक तंवर और इनके पार्टी बदलने से कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बीजेपी को क्या फर्क पड़ेगा? बीजेपी को और तंवर को कैसे इस फैसले का मिलेगा फायदा?
अशोक तंवर ने अपने पत्र में इंडिया गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन को इस्तीफे का कारण बताया है. पत्र में उन्होंने लिखा:
दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अशोक तंवर लंबे समय से कांग्रेस पार्टी में थे. वे हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी रह चुके हैं लेकिन टिकट बंटवारे से नाराज और भूपेंद्र सिंह हुड्डा से विवाद के चलते उन्होंने अक्टूबर 2019 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था.
बीजेपी ने अशोक तंवर को अपनी पार्टी में शामिल कर के दलित वोटों को बटोरने का दांव चल दिया है. ऐसे कयास भी लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी अशोक तंवर को सिरसा या अंबाला सीट से टिकट दे सकती है, क्योंकि कांग्रेस में रहते हुए तंवर सिरसा से सांसद रह चुके हैं और ये दोनों सीटें आरक्षित भी हैं. अशोक तंवर हरियाणा के दिग्गज और बड़े दलित चेहरा हैं.
राज्य में 19% दलित आबादी है. माना जा रहा है कि तंवर पर दांव चलकर बीजेपी को फायदा हो सकता है. साथ ही नए चेहरों को शामिल कर पार्टी को एंटी इंकंबेंसी को काटने में भी मदद मिल सकती है.
हालांकि बीजेपी के पास पहले ही कई दलित चेहरे हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए भी तंवर को एडजस्ट करना आसान भी नहीं है. खबरें ये भी हैं कि सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल ने पार्टी प्रभारी बिप्लब देब से मुलाकात की थी और कयास हैं कि उन्होंने तंवर की एंट्री का विरोध दर्ज किया है.
2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी का वोट शेयर महज 0.4% था जिससे राज्य में उनकी स्थिति को आंका जा सकता है.
द क्विंट हिंदी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों का कहना है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में जगह छोड़ने के लिए तैयार है, जहां उसकी राज्य सरकारें हैं, बशर्ते कांग्रेस उसे हरियाणा, गुजरात और गोवा में जगह दे.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्हें गुजरात में आम आदमी पार्टी को एक सीट देने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन गोवा और हरियाणा में उसे एडजस्ट करना मुश्किल होगा.
कुल मिलाकर कांग्रेस को लगता है कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह अपने दम पर हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को उखाड़ फेंकेगी और वह नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी प्रतिस्पर्धी बनकर उभरे.
हरियाणा में लोकसभा की कुल 10 सीटें हैं. दसों सीटों पर 2019 में बीजेपी ने जीत हासिल की थी. 9 सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही थी. वहीं वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी को 58.2% वोट मिला था और कांग्रेस को 28.5% वोट, जेजेपी का 4.9%, बीएसपी 3.6% और INLD का 1.9% वोट मिला था.
हाल ही में आम आदमी पार्टी की लोकसभा चुनाव को लेकर तैयारियां तेज हुईं थीं, इस दौरान इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सीट शेयरिंग की बात भी चल रही है. ऐसे में अशोक तंवर का इस्तीफा देना पार्टी के लिए हरियाणा में एक बड़े झटके के रूप में माना जा रहा है.
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