मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Bhima Koregaon: कैसे मुट्ठीभर Dalit सैनिकों ने पेशवा की विशाल सेना को शिकस्त दी?

Bhima Koregaon: कैसे मुट्ठीभर Dalit सैनिकों ने पेशवा की विशाल सेना को शिकस्त दी?

Bhima Koregaon Battle: महारों की ये लड़ाई मराठाओं के खिलाफ नहीं बल्कि पेशवा ब्राह्मणों के खिलाफ थी.

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Bhima Koregaon: कैसे मुट्ठीभर Dalit सैनिकों ने पेशवा की विशाल सेना को शिकस्त दी?</p></div>
i

Bhima Koregaon: कैसे मुट्ठीभर Dalit सैनिकों ने पेशवा की विशाल सेना को शिकस्त दी?

फोटोः (उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

advertisement

1 जनवरी को जहां पूरी दुनिया नए साल के जश्न में सराबोर रहती है, वहीं दूसरी तरफ दलित समाज अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करते हुए इस दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है. ये दिन दलित समाज के लिए खास इसलिए भी होता है क्योंकि ये दिन उनके लिए ब्राह्मणवादी सोच और समाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए सबसे बड़ी लड़ाई में जीत का दिन भी है. कहा जाता है कि इस दिन दलित समाज के सिर्फ 500 योद्धाओं ने पेशवा के 28000 सैनिकों को मात देकर उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया था. इस दिन को दलित समाज हर वर्ष जश्न मनाता है पुणे के भीमाकोरेगांव में विजय स्तंभ पर. वहां जहां उनके पूर्वजों की वीरता अंकित है.

कई इतिहासकार भी मानते हैं कि पेशवा के खिलाफ महारों की ये लड़ाई अंग्रेजों के लिए नहीं बल्कि उनकी अस्मिता की लड़ाई थी. 'दलितों' के साथ जो व्यवहार प्राचीन भारत में होता था, वही व्यवहार पेशवा शासकों ने महारों के साथ किया.

डॉक्टर अशोक भारती बताते हैं कि "कई जगहों पर दावा किया गया है कि महारों की ये लड़ाई मराठों के खिलाफ थी जो गलत है. उनका दावा है कि महारों ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों को हराया था. ब्राह्मणों ने छुआछूत जबरन दलितों पर थोप दिया था और वो इससे नाराज थे. जब महारों ने ब्राह्मणों से इसे खत्म करने को कहा तो वे नहीं माने और इसी वजह से वो ब्रिटिश फौज से मिल गए. जिसके बाद ब्रिटिश फौज ने महारों को ट्रेनिंग दी और पेशवाई के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी. मराठा शक्ति के नाम पर जो ब्राह्मणों की पेशवाई थी ये लड़ाई दरअसल, उनके खिलाफ थी और महारों ने उन्हें हराया. ये मराठों के खिलाफ लड़ाई तो कतई नहीं थी."

भारती बताते हैं कि "महारों और मराठों के खिलाफ किसी तरह का मतभेद या झगड़ा था, ऐसा इतिहास में कहीं नहीं है. अगर ब्राह्मण छुआछूत खत्म कर देते तो शायद ये लड़ाई नहीं होती. वो कहते हैं कि मराठों का नाम इसमें इसलिए लाया जाता है क्योंकि ब्राह्मणों ने मराठों से पेशवाई छीनी थी. ये आखिरी पेशवा ताकत थी और ब्रिटिश उन्हें हराना चाहते थे. इसीलिए ब्रितानी फौज ने महारों को साथ लिया और पेशवा राज खत्म कर दिया."

महारों की इस विजय की याद में ही पुणे के भीमाकोरेगांव में अंग्रेजों ने 'विजय स्तंभ' की स्थापना की, जहां हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय के लोग, युद्ध में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने और अपने पूर्वजों के शौर्य को याद करने के लिए जुटते हैं. इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में मारे गए महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इसी दिन साल 2018 में भीमाकोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने पर दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. जिस दौरान हिंसा भड़क गई थी. इस हिंसा के पीछे महाराष्ट्र पुलिस ने 31 दिसंबर 2017 को हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों को बताया था. इसके बाद जून 2018 में महाराष्ट्र पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार कर लिया था.

इसके अलावा अगस्त 2018 में ही महाराष्ट्र पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच लोगों को गिरफ्तार किया था. ये थे सामाजिक कार्यकर्ता कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंजाल्विस. महाराष्ट्र पुलिस का आरोप था कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं और उनके गैजेट्स से कुछ आपराधिक चिट्टियां पाई गईं हैं, जो उन्हें आरोपी बनाने के लिए पर्याप्त हैं.

लेकिन, अमेरिका के मैसाच्युसेट्स की डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट में उन चिट्ठियों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए गए थे, जिन चिट्ठियों के आधार पर 2018 में जांच एजेंसियों ने एल्गार परिषद मामले में विल्सन सहित 15 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था.

आर्सेनल कंसल्टिंग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि समाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से 22 महीने पहले एक साइबर हमले में उनके लैपटॉप को कथित तौर पर हैक किया गया था और कम से कम दस ‘आपराधिक’ चिट्ठियां इसमें प्लांट की गई थीं. आर्सेनल की रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया था कि 17 अप्रैल 2018 को विल्सन के घर छापेमारी होने से कुछ समय पहले ही उनके कंप्यूटर से छेड़छाड़ की गई थी. उनके कंप्यूटर में आखिरी बदलाव 16 अप्रैल 2018 की शाम चार बजकर 50 मिनट पर किए गए थे. इसकी अगली ही सुबह 6 बजे जांच अधिकारी शिवाजी पवार के साथ पुणे पुलिस दिल्ली में मुनिरका में उनके घर छापा मारने पहुंची थी और रोना विल्सन को गिरफ्तार किया था.

फिलहाल, ये मामला NIA के हाथ में और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. ऐसे ही आधार पर आरोप लगता रहा है कि इन लोगों को बिना वजह फंसाया गया है. हालांकि जांच एजेंसियां इन सारे आरोपों को खारिज करती हैं. इस केस में इस बात की भी काफी आलोचना हुई है कि कई आरोपियों को दोष साबित हुए बिना लंबे समय तक जमानत देने से इंकार किया गया. ये केस अब महाराष्ट्र में सियासी तौर पर अहम हो गया है. ये केस महाराष्ट्र में चुनावों पर असर डालता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT