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राहुल गांधी से पहले Bharat Yatra करने वाले चंद्रशेखर की कहानी। SIYASAT

Chandra Shekhar ने कभी मंत्रीपद नहीं स्वीकारा, सीधे सांसद से प्रधानमंत्री बने.

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Rahul Gandhiसे पहले 'Bharat Yatra' करने वाले Chandra Shekhar की कहानी</p></div>
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Rahul Gandhiसे पहले 'Bharat Yatra' करने वाले Chandra Shekhar की कहानी

फोटोः उपेंद्र कुमार/क्विंट

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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस बिखर रही है. लगातार चुनावों में मिल रही हार से उसके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं. उसके अपने ही नेता एक-एक कर पार्टी से किनारा कर रहे हैं. शायद इसी को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी "भारत जोड़ो यात्रा" पर निकलने वाले हैं. जिससे कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भरा जा सके और पार्टी के संगठन को मजबूत किया जा सके. ऐसी ही एक यात्रा आज से करीब 39 साल पहले एक ऐसे नेता ने की थी, जिसे इंदिरा गांधी का युवा तुर्क कहा जाता था. उसने भी बिखरती पार्टी और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए 'भारत एकता यात्रा' की थी, जिसके बाद आगे चलकर वो देश का प्रधानमंत्री बना.

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साल 1977 में लोकसभा का कार्यकाल नवंबर में खत्म होने वाला था. लेकिन, इंदिरा गांधी ने अचानक जनवरी में चुनाव की घोषणा करके देशवासियों और विपक्ष दोनों को अचंभे में डाल दिया था. इंदिरा गांधी के खिलाफ एकजुट हुआ विपक्ष, जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरा. पार्टी के अध्यक्ष चुने गए चंद्रशेखर. उनके स्वभाव में एक ठसक थी. चंद्रशेखर की राजनीतिक यात्रा पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय बताते हैं कि उस समय में चंद्रशेखर की जब कोई चुनावी सभा होती थी, तो हजारों की भीड़ जमा हो जाती थी. सभा में बस एक आदमी चादर लेकर घूम जाता था और 10 से 15 लाख रुपए इकट्ठा हो जाते थे.

20 मार्च 1977 को जब परिणाम आए तो 295 सीटों पर जनता पार्टी की जीत हुई और कांग्रेस 154 सीटों पर सिमट कर रह गई. इस चुनाव में इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की भी हार हुई.

24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई ने भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. जब मंत्रियों की पहली सूची बनी तो उसमें चंद्रशेखर सिंह का भी नाम था. लेकिन, चंद्रशेखर सिंह ने मंत्री बनने से इनकार कर दिया.

जब मैं मंत्री नहीं बना तो जयप्रकाश बहुत नाराज हुए कि मैंने चुनौती को स्वीकार नहीं किया. मैंने उनसे कहा कि आप मेरे विचार जानते हैं. मैं जिसे पार्टी के लिए त्रासदी समझता हूं, उस सरकार में मंत्री कैसे बन जाऊं? ये कहना गलत है कि मैं मंत्रिमंडल में जाऊंगा और वहां से प्रधानमंत्री को सुधारूंगा, क्योंकि संसदीय जनतंत्र में मंत्री रहना प्रधानमंत्री की इच्छा पर निर्भर करता है. अगर प्रधानमंत्री से इस हद तक सहमत नहीं हैं कि आप उसके साथ सरकार चला सकें, तो ऐसे मंत्रिमंडल में शामिल होना न तो नैतिकता है और न ही ईमानदारी.
चंद्रशेखर, रहबरी के सवाल (किताब)

जनता पार्टी की सरकार नेताओं के बीच आपसी लड़ाई, विचारों में अंतर और निजी महत्वकांक्षा की वजह से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और 15 जुलाई 1979 को मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

देश एक बार फिर चुनाव की दहलीज पर खड़ा था. साल 1980 में 7वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए. इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई. कांग्रेस ने लोकसभा में 353 सीटें जीतीं और जनता पार्टी या बचे हुए गठबंधन को मात्र 31 सीटें मिलीं, जबकि जनता पार्टी सेक्युलर को 41 सीटें मिली थीं. माकपा 37 सीटें जीतने में सफल रही.

साल 1980 में जनता पार्टी की हार के बाद मैंने प्रतिपक्षी एकता कायम करने की कोशिश की. लेकिन, अधिकतर नेताओं की दिलचस्पी जोड़-तोड़ की राजनीति में थी. ऐसे में एकता असंभव हो गई. एक मसले का समाधान हो, तब तक दूसरा सामने आ जाता था. पार्टी की अध्यक्षता का बीड़ा तीखा अनुभव था. समस्याएं जनता के सवाल को लेकर नहीं, नेताओं के आपसी विवाद को लेकर थीं. पार्टी टूटने के कागार पर थी. इस बीच कर्नाटक में पार्टी की सरकार बन गई. पार्टी के कार्यकर्तओं में आशा का नया संचार हुआ था. इस बीच कुछ नया करने का विचार मन में उठा और मैंने नेताओं के पास पहुंचने के बजाय आम आदमी के पास जाने का फैसला किया.
चंद्रशेखर, रहबरी के सवाल (किताब)

चंद्रशेखर ने 6 जून 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से भारत यात्रा की शुरूआत की. गुलाम भारत में जैसे गांधी ने पदयात्राओं के जरिए भारत की थाह ली, उसी तरह आजाद भारत की समस्याओं को चंद्रशेखर ने अपने पैरों से नापने की कोशिश की थी.

इस पदयात्रा में एक घटना को याद करते हुए चंद्रशेखर कहते हैं कि तमिलनाडु के पहाड़ी क्षेत्र के एक गांव के बाहर पगडंडी पर एक बुढ़िया लालटेन लेकर खड़ी थी. जब मैं उसके पास पहुंचा तो उसने सिर्फ यही कहा कि आजादी के 40 साल बीत गए, लेकिन पीने का पानी अबतक नहीं मिला. आखिर कब दोगे पानी?

गांव की पगडंडियों और कस्बों से होते हुए करीब 3700 किलोमीटर की यह पदयात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर समाप्त हुई.

जब मैं दिल्ली आया तो पहली ही मीटिंग में पानी का सवाल खड़ा किया. यात्रा के दौरान जिन बुनियादी चीजों की कमी उभर का सामने आई, उसी अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि रोटी-कपड़ा-मकान, पढ़ाई और दवाई का माकूल इंतजाम किए बगैर देश को तरक्की के रास्ते पर नहीं लाया जा सकता. सरकारी आंकड़े चाहें जो तस्वीर पेश कर लें, पर देश की अधिकांश आबादी आज भी इन बुनियादी चीजों से महरूम है. अगर, ये बात उसी समय गंभीरता से ली गई होती तो आज देश के हर नागरिक को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होता.
चंद्रशेखर

साल 1989 में एक बार फिर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और जनता दल की सरकार बनी. बड़े ही नाटकीय तरीके से संसदीय दल के नेता के रूप में वीपी सिंह की घोषणा की गई.

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय लिखते हैं कि जैसे ही वीपी सिंह के नाम की घोषणा हुई चंद्रशेखर का चेहरा फक पड़ गया. जब वो बाहर निकले तो उनके चेहरे पर बहुत गुस्सा था. उन्होंने कहा भी कि हमारे साथ धोखा हुआ है.
मैंने उसी समय कहा कि ये गलत है. मैं इसे नहीं मानता. उसके बाद बीजू पटनायक और देवी लाल दोनों मेरे पास आए और बोले, आप उप प्रधानमंत्री बन जाइए. मैंने कहा आप मुझ पर कृपा करो, मुझे ये मंज़ूर नहीं है. मुझे यह महसूस हुआ कि इस सरकार का प्रारंभ ही कपटपूर्ण ढंग से हुआ है.
चंद्रशेखर, आत्मकथा 'जिंदगी का कारवां'

बहरहाल ये सरकार एक साल भी पूरा नहीं कर पाई. लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. उस वक्त नेतृत्व परिवर्तन कर सरकार बचाने का भी विकल्प था, लेकिन उसके लिए वीपी सिंह तैयार नहीं थे. तभी राजीव गांधी ने चंद्रशेखर से संपर्क किया.

मैं सरकार बनाने के लिए देश हित में तैयार हुआ, क्योंकि उस समय देश में खूनखराबे का माहौल था. जिन दिनों मैंने शपथ ली, उस दिन 70-75 जगहों पर कर्फ्यू लगा हुआ था. युवक आत्मदाह कर रहे थे. दूसरी तरफ सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. मुझे सरकार बनाने और चलाने का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन मेरा विश्वास था कि अगर देश के लोगों से सही बात कही जाए तो देश की जनता सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाएगी.
चंद्रशेखर, रहबरी के सवाल

प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद चंद्रशेखर ने वित्त सचिव रहे विमल जालान को पद से हटा दिया. राज्यपालों की नियुक्ति और कैबिनेट सेक्रेटरी के सवाल पर भी कांग्रेस और चंद्रशेखर के बीच मदभेद दिखे. चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने के शुरूआती कुछ हफ्तों में ही यह साफ कर दिया की वो किसी की कठपुतली नहीं हैं. इस बीच राजीव गांधी के घर के बाहर हरियाणा पुलिस के दो सिपाही संदिग्ध हालत में घूमते पाए गए. इसके बाद राजनैतिक गलियारों में हल्ला मच गया कि चंद्रशेखर उस शख्स की जासूसी करा रहे हैं, जिसके समर्थन के बल पर वो प्रधानमंत्री बने हैं.

रविवार की सुबह मुझे बताया गया कि हरियाणा पुलिस के दो जवान राजीव गांधी के घर के पास संदिग्ध अवस्था में घूम रहे हैं. मैंने तुरंत जांच के आदेश दिए. लोकसभा में इसे रखा. कांग्रेस के सभी नेता मेरे इस कदम से संतुष्ट थे. उसी शाम मुझे एक पार्टी में राजीव गांधी मिले. मैंने उनसे कहा कि ऐसा होना शर्मनाक है और मैं इस पर पूरा ध्यान दे रहा हूं. अगली सुबह जब मैं संसद गया तब मुझे सूचना दी गई कि कांग्रेस सभा का बहिष्कार करने वाली है. जब मैं लोकसभा पहुंचा तो देवी लाल मेरे पास आए और पूछा की राजीव गांधी बात करना चाहते हैं मैं जाऊं? मैंने जवाब दिया जरूर जाइए और अपनी प्राइमिनस्टरी की बात करके जरूर आइएगा. मेरे दिन इस पद पर पूरे हो गए हैं. लोकसभा में भाषण करने के बाद मैंने अपनी सरकार का इस्तीफा सौंप दिया.
चंद्रशेखर, रहबरी के सवाल

शरद पवार अपनी आत्मकथा 'ऑन माई टर्म्स' में लिखते हैं कि राजीव गांधी के कहने पर मैं चंद्रशेखर के पास गया. उन्होंने मेरे आने की वजह पूछी. मैंने कहा 'मैं आपसे बात करना चाहता हूं. उन्होंने कुछ रुखे अंदाज में पूछा 'क्या तुम्हें राजीव ने भेजा है? मैंने कहा 'कुछ गलतफहमियां हुई हैं. कांग्रेस नहीं चाहती है कि आपकी सरकार गिरे. आप अपना इस्तीफा वापस ले लीजिए. इस पर चंद्रशेखर ने गुस्से से कांपते हुए जवाब दिया कि 'जाओ और उनसे कह दो, चंद्रशेखर एक दिन में तीन बार अपने विचार नहीं बदलता.

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