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केंद्र की सत्ता में लगातार तीसरी बार वापसी की कोशिश में जुटी बीजेपी एनडीए का कुनबा बढ़ाने में लगी है. इसी क्रम में बीजेपी, दक्षिण में कभी उसका सबसे मजबूत किला रहा कर्नाटक (Karnataka) में गठबंधन की कोशिश में है. चर्चा है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर कर्नाटक में जेडीएस से हाथ मिला सकती है. और अगर सबकुछ सही रहा तो जल्द ही दोनों के बीच गठबंधन का ऐलान हो सकता है.
लेकिन बीजेपी-जेडीएस के गठबंधन को लेकर कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब जानने जरूरी हैं. जैसे- क्या BJP कर्नाटक में कमजोर हो गई है? BJP-JDS का गठबंधन क्यों हो रहा है? और गठबंधन पर दोनों दलों ने चुप्पी क्यों साधी है?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "मौजूदा स्थिति में बीजेपी के लिए कर्नाटक कमजोर कड़ी ही नजर आ रही है क्योंकि विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने जीत हासिल की, उससे साफ है कि कभी दक्षिण में बीजेपी का दुर्ग कहे जाने वाले कर्नाटक में कांग्रेस का 'पंजा' मजबूत है. ऐसे में अगर बीजेपी को 2019 का प्रदर्शन दोहराना है तो उसे कड़ी मेहनत करनी होगी."
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर हरीश रामास्वामी ने कहा, "बीजेपी-जेडीएस अगर साथ आते हैं, तो ये दोनों दलों के लिए लाभदायक हो सकता है, क्योंकि गठबंधन की चर्चा 'जरूरी' से ज्यादा दोनों की दलों की मजबूरी को दिखाता है."
रामास्वामी ने आगे कहा, "विधानसभा चुनाव के बाद कई लोगों का कहना था कि इन नतीजों का असर 2024 के लोकसभा चुनाव में नहीं पड़ेगा, क्योंकि 2018 के नतीजे भी बीजेपी के पक्ष में नहीं थे और 2019 में पार्टी ने बड़ी सफलता हासिल की थी. लेकिन इस बार बीजेपी के लिए 2019 की कहानी दोहराना आसान नहीं है."
एक वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा, "कर्नाटक के जातीय समीकरण में कांग्रेस मजबूत हैं तो वहीं उसके पास चेहरा भी है, हालांकि, कांग्रेस के भीतर भी विवाद है लेकिन बीजेपी के मुकाबले वो मजबूत है. जबकि बीजेपी को अभी भी एक मजबूत नेता की तलाश है. पार्टी के भीतर इस बात की चर्चा विधानसभा चुनाव के पहले से चल रही है कि जेडीएस के साथ गठबंधन किया जाए, लेकिन उस वक्त किसी वजह से बात नहीं बन पायी."
प्रोफेसर हरीश रामास्वामी ने कहा, "बीजेपी, जेडीएस के साथ इसलिए गठबंधन करना चाहती है क्योंकि वो जनता दल (सेक्युलर) के वोट शेयर को अपने साथ जोड़ना चाह रही है, जबकि जेडीएस अपना अस्तित्व बचाने के लिए गठबंधन की इच्छुक है. देवगौड़ा अपने बेटे कुमारस्वामी और पोते प्रज्वल रेवन्ना का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना चाह रहे हैं, और कांग्रेस-जेडीएस की विचारधारा करीब-करीब एक जैसी है, ऐसे में देवगौड़ा बीजेपी साथ जाने के मूड में हैं."
दरअसल, 2019 में, जेडीएस ने अपना गढ़ माने जाने वाले हसन में सिर्फ एक लोकसभा सीट जीती (कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन), जहां एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना जीते थे. लेकिन प्रज्वल रेवन्ना की लोकसभा सदस्यता अब खतरे में है क्योंकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2018-2019 के आम चुनाव के दौरान प्रस्तुत झूठे हलफनामों का हवाला देते हुए उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया है. हालांकि, उन्हें सुप्रीम कोर्ट से इसी हफ्ते राहत मिल गई है और अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है.
वहीं, 2023 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस की सीट 37 से घटकर 19 हो गई है. जबकि बीजेपी ने 2018 में 104 और 2019 में 26 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2023 में पार्टी को 66 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है.
दरअसल, कुछ दिन पहले कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि बीजेपी-जेडीएस का गठबंधन हो गया है और देवगौड़ा की पार्टी को चार लोकसभा सीट पर देने का फैसला किया गया है.
लेकिन बाद में बीजेपी नेता सीट शेयरिंग की बात से मुकर गये थे. बीजेपी संसदीय दल की बैठक में शामिल होने दिल्ली में आये येदियुरप्पा ने कहा:
अब सवाल है कि आखिर येदियुरप्पा बात से क्यों मुकर गये. बीजेपी से जुड़े सूत्रों की मानें तो, पार्टी हाईकमान की तरफ से गठबंधन पर अभी चुप रहने की हिदायत दी गई है. इसी वजह से पूर्व सीएम ने चुप्पी साध रखी है. क्योंकि अभी कई कई मुद्दों पर सहमति होना बाकी है, और राज्य के कुछ नेता गठबंधन का विरोध कर रहे हैं. ऐसे में बड़बोले बयान गठबंधन की कवायद पर पानी फेर सकते हैं.
वहीं, जेडीएस के एक नेता ने कहा, "गठबंधन पर बात जारी है. हमारे ज्यादातर नेता एलायंस के पक्ष में है और जो भी निर्णय होगा वो जल्द ही सबके सामने आ जाएगा."
जानकारी के अनुसार, बीजेपी को कर्नाटक में लिंगायतों का समर्थन प्राप्त है और वो जेडीएस के साथ गठबंधन कर लाभ उठाना चाहती है, जो राज्य की अन्य प्रमुख जाति वोक्कालिगाओं के बीच एक मजबूत आधार रखती है. लेकिन, 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दोनों दलों के वोटबैंक में मजबूत सेंधमारी की थी.
हालांकि, बीजेपी-जेडीएस गठबंधन को लेकर पर्दे के पीछे खिचड़ी तेजी से पक रही है और ये कब बनकर तैयार होगी, ये कहना फिलहाल मुश्किल है, लेकिन ये सच है कि मौजूदा वक्त में दोनों दलों का करीब आना मजबूरी और सियासी जरूरत, दोनों दिखता है.
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