कर्नाटक कांग्रेस द्वारा किए गए पांच चुनावी वादों में से एक यानी राज्य के परिवहन निगमों द्वारा संचालित बसों में महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स के लिए मुफ्त परिवहन की शुरुआत 11 जून से हो गई है. 'शक्ति' योजना के लागू होने के एक दिन बाद, 40 लाख से अधिक महिलाओं ने इस सेवा का लाभ उठाया और सार्वजनिक बसों में मुफ्त में यात्रा की.
कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम के पुत्तूर डिवीजनल कंट्रोलर जयकर शेट्टी ने द क्विंट को बताया कि "शक्ति योजना को लेकर लोगों की बहुत अच्छी प्रतिक्रिया आ रही है. राज्य में यात्रा करने वाली अधिकांश महिलाएं सरकारी बसों में यात्रा कर रही हैं."
उन्होंने आगे कहा कि "जो लोग पहले निजी बसों में यात्रा कर रहे थे, वे योजना के लागू होने के बाद प्राइवेट बसों को छोड़कर सरकारी बसों में यात्रा करने लगे हैं."
उन महिला यात्रियों के लिए जो वहां कि स्थानीय निवासी हैं और सेवा का लाभ उठाना चाहती हैं, कर्नाटक सरकार तीन महीने के भीतर 'स्मार्ट कार्ड' जारी करेगी. तब तक, महिलाओं को यह साबित करने के लिए कि वे राज्य की निवासी हैं, बस कंडक्टरों को अपनी सरकारी आईडी दिखानी होगी.
हालांकि, यह योजना सामाजिक कल्याण के लिए है, और इस समय इस योजना की प्रशांसा की जा रही है, लेकिन इसमें दो प्रमुख बाधाएं हैं, पहला- भारी वित्तीय बोझ और दूसरा गंभीर गोपनीयता संबंधी चिंताएं.
राज्य के खजाने पर कितना बोझ?
सबसे स्पष्ट हिचकिचाहट पैसा है, जो राज्य के खजाने को लंबे समय तक योजना को बनाए रखने के लिए खर्च करना होगा.
कर्नाटक सरकार ने कहा है कि "वह महिलाओं के लिए मुफ्त परिवहन प्रदान करने के लिए किए गए खर्च के लिए सभी चार राज्य परिवहन निगमों की प्रतिपूर्ति करेगी. इससे राज्य के खजाने को भारी नुकसान होना तय है."
उदाहरण के लिए, सोमवार, 12 जून को - जो पहला सप्ताह का दिन था जब शक्ति योजना चालू थी, राज्य की लागत 8.84 करोड़ रुपये थी, मंगलवार को 50 लाख से अधिक महिलाओं ने मुफ्त सेवा का लाभ उठाया, जिस पर राज्य को 10.82 करोड़ रुपये की लागत आई.
अगर यह पैटर्न जारी रहता है, तो कुल लागत सालाना 4,000 करोड़ रुपये से अधिक होने की उम्मीद है. इसके अलावा, राज्य परिवहन विभाग द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यात्रियों में लगातार हो रही वृद्धि को देखते हुए 4,028 से अधिक बसों को सरकार के बेड़े में शामिल करना होगा.
शेट्टी ने द क्विंट को यह भी बताया कि "जब से यह योजना सक्रिय हुई है, कई जगहों पर भीड़भाड़ हो गई है. "धर्मस्थल जैसे धार्मिक स्थलों की ओर जाने वाली बसों में यात्रियों की भारी भीड़ है. इससे कुछ कठिनाई हो रही हैं."
इसलिए, योजना का सफल कार्यान्वयन न केवल एक विशाल वित्तीय कार्य है, बल्कि मुश्किल प्रशासनिक कार्य भी है.
दूसरा पहलू: महिलाओं की गतिशीलता को सशक्त बनाना
अर्थशास्त्री विभूति पटेल ने द क्विंट को बताया कि "महिलाओं की गतिशीलता (एक जगह से दूसरे जगह सफर करना) की कमी को इस तथ्य के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है कि उनका अपने पैसे पर बहुत कम नियंत्रण है - और मुफ्त परिवहन अधिक महिलाओं को कार्यबल में रखने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है."
पटेल ने कहा कि...
"वर्तमान में केवल 19 प्रतिशत महिलाएं काम के क्षेत्र में हैं, जिनमें से 92 प्रतिशत से अधिक महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्र में हैं, जिन्हें अपने घर के अस्तित्व के लिए न्यूनतम आय प्राप्त होती है. उन्हें अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है. इसलिए, स्वाभाविक रूप से, वे मुफ्त परिवहन से लाभान्वित होंगी."
पटेल ने गरीब और हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की बात आने पर 'मुफ्त उपहार/फ्रीबीज' शब्द पर अपनी कड़ी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि "सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाली मैक्रोइकोनॉमिक नीतियों द्वारा जारी अन्यायपूर्ण और शोषणकारी प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, जिसके परिणामस्वरूप मानव विकास से महिलाओं का सामाजिक बहिष्कार होता है, हम एक सामाजिक समावेशी उपाय जैसे मुफ्त परिवहन को 'फ्रीबीज' के रूप में वर्गीकृत कर रहे हैं."
शक्ति योजना के अलावा, चार अन्य कल्याणकारी सेवाएं हैं, जिनका वादा कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में किया था. इसमे शामिल हैं...
गृह लक्ष्मी (प्रत्येक परिवार की महिला मुखिया को 2,000 रुपये मासिक सहायता)
गृह ज्योति (हर घर को हर महीने 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली)
युवा निधि (बेरोजगार स्नातक युवाओं के लिए 3,000 रुपये मासिक और बेरोजगार डिप्लोमा धारकों के लिए 1,500 रुपये दो साल की अवधि के लिए)
अन्न भाग्य ('गरीबी रेखा से नीचे' परिवारों के सभी सदस्यों को 10 किलो मुफ्त चावल)
इस प्रकार, कई लोगों ने यह आशंका जताई है कि क्या राज्य सरकार इतने सारे कल्याणकारी उपायों के लिए बिल का भुगतान करने में सक्षम होगी, जिन्हें कर्नाटक जैसे विशाल राज्य में लागू किया जाना है. हालांकि, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने योजनाओं के व्यावहारिक कार्यान्वयन के बारे में संदेह को खारिज कर दिया.
द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होने रविवार को बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा बस टर्मिनल में शक्ति योजना को हरी झंडी दिखाते हुए कहा कि "यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितना खर्च कर रहे हैं, लेकिन हम इसे किस पर खर्च कर रहे हैं. अगर पैसा अमीर आदमी की जेब में है तो कोई फायदा नहीं है. लेकिन, अगर किसी गरीब के पास पैसा है तो लाभ (अर्थव्यवस्था के लिए) आदमी (जेब) के रूप में यह बाजारों में प्रवेश करेगा."
सुरक्षा की चिंता
चिंता का एक और बिंदु है जिसे अभी नजरअंदाज किया जा रहा है - मुफ्त परिवहन का लाभ उठाने वाली महिला यात्रियों की निजता.
लाभार्थियों को स्मार्ट कार्ड जारी किए जाने के बाद, राज्य परिवहन निगमों द्वारा किए गए कुल खर्च की गणना प्रत्येक महिला यात्री द्वारा तय की गई कुल दूरी के आधार पर की जाएगी.
दूसरे शब्दों में, हर बार जब कोई महिला बस में चढ़ती और उतरती है, तो उसे मशीन पर अपना स्मार्ट कार्ड टैप करना होगा. इसलिए राज्य के पास इस बात का रिकॉर्ड होगा कि महिला बस में कहां चढ़ी और कहां उतरी.
जबकि, इस तरह के स्मार्ट कार्ड दुनिया भर में लागू किए गए हैं, परिवहन के कई तरीकों का उपयोग करने के लिए एक साधन के रूप में, और ऐसे समय में जब भारत के प्रमुख शहरों में मेट्रो कार्ड का उपयोग करके समान डेटा एकत्र किया जा सकता है, ऐसे में क्या यहां लाभ जोखिम से अधिक हैं?
दिल्ली और तमिलनाडु जैसी जगहों पर - जहां समान योजनाएं मौजूद हैं - ऐसे कार्ड की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सेवाओं का लाभ उठाने वाली महिला यात्रियों की संख्या पर नजर रखने के लिए शून्य मूल्य कार्ड जारी किया जाता है, साथ ही उनकी गोपनीयता की रक्षा भी की जाती है.
डेटा गोपनीयता और तकनीकी विशेषज्ञ के स्वतंत्र शोधकर्ता श्रीनिवास कोडाली ने द क्विंट से कहा कि "जब महिला उपयोगकर्ता बस में मुफ्त परिवहन का लाभ उठाने के लिए अपना स्मार्ट कार्ड दिखाती हैं, तो सरकार को पता चल जाएगा कि उन्होंने कितनी बार इस योजना का लाभ उठाया है और वे इसका उपयोग कैसे कर रही हैं.
इतना ही नहीं, सरकार यात्रियों के यात्रा पैटर्न का अध्ययन कर सकेगी- जैसे कि क्या कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक ही मार्ग पर यात्रा करता है, क्या वे घर से काम करने के लिए यात्रा करते हैं, और वे सप्ताहभर में कितनी बार यात्रा करते हैं.
कोडाली ने यह भी कहा कि अगर व्यवस्था में सेंध लगती है, तो डेटा जिसमें विभिन्न महिलाओं के परिवहन पैटर्न शामिल हैं, गलत हाथों में जा सकते हैं.
"उदाहरण के लिए, इस डेटा की बिक्री हो सकती है, जिसमें कई महिलाओं का स्थान शामिल होगा. इसलिए, यह राजनीतिक दलों या मार्केटिंग एजेंसियों के पास जा सकता है जो अपने महिला-केंद्रित उत्पादों का बेहतर विज्ञापन करना चाहते हैं और इस प्रकार जानना चाहते हैं कि महिलाएं कहां यात्रा कर रही हैं."
गोपनीयता बरकरार रखने वाली एक वैकल्पिक प्रणाली की सिफारिश करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार मासिक और वार्षिक यात्रा पास के प्रावधान को जारी रखने का विकल्प चुन सकती है.
उन्होंने आगे कहा कि, "यह सबसे अच्छा मॉडल है. क्योंकि अगर आपके पास 'पास' है, तो आप इसे बस कंडक्टर को दिखा सकते हैं और जहां चाहें वहां जा सकते हैं."
जबकि एक यात्री को अभी भी पास बनवाने के लिए अपनी फोटो पहचान पत्र प्रदान करना होगा, इसमें शामिल गोपनीयता जोखिम स्मार्ट कार्ड की तुलना में बहुत कम है. कोडाली ने जोर देकर कहा कि, "इस प्रणाली में, सरकार को यह पता नहीं चलेगा कि आप कहां यात्रा कर रहे हैं. इसलिए निजता का जोखिम न्यूनतम है."
(मीनाक्षी शशिकुमार के इनपुट्स के साथ)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)