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बीजेपी (BJP) के राष्ट्रीय नेतृत्व ने बृज भूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan Singh) के मामले को जिस तरह से संभाला है वह कुछ असामान्य प्रतीत हो रहा है. यह असामान्य इसलिए है क्योंकि अब तक जब भी पार्टी किसी मुश्किल स्थिति में फंसी है ऐसे में या तो वह पीछे हट जाती है (जैसा कि उसने कृषि कानूनों, भूमि अधिग्रहण संशोधन और एमजे अकबर स्कैंडल के दौरान किया था) या फिर पार्टी ने ऐसे मामलों का बिना संकोच के सामना किया है, जैसा कि पहले भी BJP ने कई मौकों पर अनगिनत बार किया है.
लेकिन भारतीय कुश्ती महासंघ (Wrestling Federation of India) के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के मामले में ऐसा प्रतीत नहीं होता है, जिन पर कई महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है.
दरअसल, यह पूरा मामला अब बड़ी फजीहत की वजह इसलिए बनता जा रहा है क्योंकि पहलवान विनेश फोगाट ने दावा करते हुए कहा है कि उन्होंने 2021 में बृज भूषण शरण सिंह के व्यवहार के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया था.
बीजेपी के लिए इस पूरे मामले में क्या गलत 'दांव' रहे?
इस मामले को लेकर जनवरी में जब पहली बार विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, तब ऐसा लगा कि इस मामले को बीजेपी ने कंट्रोल कर लिया है. बृज भूषण शरण सिंह को पार्टी के भीतर एक बाहरी व्यक्ति के तौर पर पेश किया गया. उस दौरान यह बताया गया था कि उनकी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ नहीं बनती है और वह बाबा रामदेव के विरोधी हैं.
पहलवानों ने भी, बृज भूषण शरण सिंह की आलोचना से पार्टी को अलग रखने का प्रयास किया. उस दौरान विपक्षी नेताओं को पहलवानों के मंच पर नहीं आने दिया गया था.
बीजेपी के एक लोकसभा सांसद ने द क्विंट को बताया कि "या तो उन्हें (पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह) को इस मामले पर उचित फीडबैक नहीं दिया गया या उन्होंने (बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ) एक्शन नहीं लेने का फैसला किया. केवल तीन लोगों (नरेंद्र मोदी, अमित शाह और खेल मंत्री (अनुराग ठाकुर)) को ही पता होगा कि वास्तव में क्या हुआ है."
बीजेपी को शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि पहलवान एक बार फिर आकर विरोध करेंगे, वह भी नए जोश और ताकत के साथ.
सांसद ने कहा कि "शायद पार्टी लीडरशिप ने यह सोचा था कि ये मुद्दा खत्म हो जाएगा."
कई पहलवान अभी भी सक्रिय रूप से डटे हुए हैं जिन्होंने फेडरेशन और सरकार का विरोध करते हुए अपना करियर दांव पर लगा दिया है.
जनवरी में ऐसा प्रतीत हुआ कि पहलवान सरकार को नाराज नहीं करना चाहते. इसलिए उन्होंने विपक्ष के नेताओं को अपने मंच से बोलने नहीं दिया.
इस बार विपक्ष के कई नेता प्रदर्शन स्थल पर गए हैं, जिनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी, पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और सीपीआई-एम नेता बृंदा करात आदि शामिल हैं.
बीजेपी लीडरशिप ने शुरू में विरोध प्रदर्शन को "विपक्षी साजिश" के तौर पर सोचा था. लेकिन इस मुद्दे की आग बुझी नहीं बल्कि बरकरार रही. हाल ही में दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में बताया है कि बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ दो FIR दर्ज की जाएगी.
बीजेपी में कुछ लोगों का मानना है कि अगर जनवरी में ही सरकार ने बृज भूषण के खिलाफ एक्शन ले लिया होता तो इस मुद्दे को इतनी राजनीतिक बल नहीं मिलता. हालांकि, यह कहना आसान था करना नहीं. इस बारे में अगले सेक्शन में बात करेंगे.
बृज भूषण शरण सिंह की जिद बीजेपी के लिए एक बड़ी समस्या रही है.
बृज भूषण के प्रति हमदर्दी रखने वाले एक बीजेपी पदाधिकारी ने द क्विंट को बताया कि "उनके लिए यह अहंकार का मुद्दा है. उन्हें लगता है कि इस्तीफा देने का मतलब यह है कि उन्होंने अपराध और आरोप स्वीकार कर लिए हैं."
बीजेपी पदाधिकारी ने बृज भूषण पर पार्टी के प्रभाव की सीमा बताते हुए कहा कि "उन्होंने पार्टी से न कोई मंत्री पद और न ही कोई अन्य पद कुछ भी नहीं मांगा. कुश्ती महासंघ में यह पद उन्होंने अपने काम से हासिल किया. यह पद उन्हें पार्टी द्वारा नहीं दिया गया था."
उनका कहना है कि बृज भूषण अन्य राज्यों से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर रहे हैं और "जाट लॉबी" इसका विरोध रही है.
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले कई पहलवान जैसे कि विनेश फोगट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया जाट हैं.
बृज भूषण ने इस विरोध प्रदर्शन के पीछे 'पूरी साजिश रचने' का आरोप कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा और पहलवान बजरंग पुनिया पर लगाया है.
दूसरी ओर बृज भूषण ठाकुर जाति हैं और संयोग से, खेल मंत्री अनुराग भी ठाकुर हैं
बृज भूषण को उनके ही समुदाय की एक लॉबी का समर्थन मिल रहा. यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी कई नौजवान ठाकुरों द्वारा यह ट्रेंड किया जा रहा है कि 'हम बृज भूषण शरण सिंह के साथ खड़े हैं.' (We stand with Brij Bhushan Sharan Singh.)
लेकिन बृज भूषण का प्रभाव वाकई में कितना है?
ये क्षेत्र घाघरा नदी के उत्तर-पूर्व में स्थित हैं जोकि काफी पिछड़े हैं और यहां बाढ़ आने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. एक मजबूत व्यक्ति के तौर पर देखे जाने वाले बृज भूषण के पास इस क्षेत्र में एक निष्ठावान समर्थक हैं. इसके साथ ही बृज भूषण को इस क्षेत्र में काम करने, विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों का एक नेटवर्क स्थापित करने के लिए भी जाना जाता है.
पांच लोकसभा सीटों (बहराइच, कैसरगंज (इस सीट से ही बृज भूषण सांसद हैं), श्रावस्ती, गोंडा और डुमरियागंज) तक उनका प्रभाव क्षेत्र फैला हुआ है.
इस समय इन 5 सीटों में से चार सीटें बीजेपी के पास हैं - इनमें से तीन में ठाकुर सांसद हैं और एक आरक्षित सीट है.
बीजेपी को इस बात का डर सता रहा है कि अगर बृज भूषण से अलग हो गए तो इन पांच सीटों पर वे पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी के साथ पहले से ही उनके अच्छे संबंध हैं. राम मंदिर आंदोलन से जुड़े होने के बावजूद बृज भूषण कुछ समय के लिए समाजवादी पार्टी (SP) में शामिल हो गए थे. यहां तक कि 2009 में SP के टिकट पर वे सांसद भी बने थे.
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए बृज भूषण की हालिया प्रशंसा को बीजेपी के लिए एक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि उनके (बृज भूषण के) पास अन्य विकल्प भी हैं.
यहां तक कि अब भले ही बृज भूषण इस्तीफा दे दें और उनकी एक उचित आपराधिक जांच होती हो, इससे ज्यादा यह हो सकता है कि बीजेपी को होने वाला नुकसान रोका जा सकेगा, लेकिन इससे फिर से वही स्थिति हासिल नहीं हो पाएगी.
इस मामले में बीजेपी की असमंजस या अनिर्णय वाली स्थिति ने विपक्ष को खुलने का मौका दे दिया है. चूंकि इसमें एक व्यक्ति निशाने पर है, इसलिए इस मुद्दे में UPA के दौर के जन लोकपाल आंदोलन या वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान किसानों के आंदोलन या सीएए विरोधी आंदोलन जैसा राजनीतिक प्रभाव नहीं है. हालांकि, यह एक शर्मनाक स्थिति है, अगर सरकार ने जल्द कार्रवाई की होती तो इससे बचा जा सकता था.
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