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सियासत में 24 घंटे का वक्त काफी होता है. चीजें बदल जाती हैं, पलट जाती हैं और कभी-कभी सिर के बल भी खड़ी हो जाती हैं. जैसे उत्तर प्रदेश से आती खबर . बीजेपी ने 25 साल बाद त्रिपुरा में ‘लाल किला’ ढहाया तो मानो विपक्षियों को साथ आने की एक और वजह मिल गई. फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर होने वाले चुनाव में बीएसपी ने ऐलान किया है कि वो समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों को समर्थन देगी.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीएसपी और एसपी धुर विरोधी समझे जाते हैं. दोनों का हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा है. जब देश के सबसे बड़े सूबे में सत्ता बनाए रखने या हथियाने की बात हो तो ये लाजिमी भी है. लेकिन, त्रिपुरा समेत जब 20 सूबों में एक पार्टी का राज दिखाई दे रहा हो और 2019 लोकसभा चुनाव मुंह बांए खड़ा हो तो वक्त, पुरानी धूल और सोच पर लगे पुराने जाले, दोनों को हटाने का है. बीएसपी अध्यक्ष, मायावती के दिमाग में यही सब चल रहा होगा जब उन्होंने ये तय किया कि फूलपुर में वो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल को समर्थन देंगी और गोरखपुर में एसपी के प्रवीण निषाद को.
फूलपुर सीट, केशव प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद खाली हुई. केशव, अब यूपी के डिप्टी सीएम हैं. यहां 2014 में बीजेपी ने पहली बार जीत हासिल की थी. फूलपुर में कुर्मी (पटेल) वोट अगर बंटे, तो मुकाबला काफी दिलचस्प होगा. फूलपुर में बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती इसलिए उसने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम आने के बाद पत्ते खोले और पटेल वोटों को ध्यान में रखते हुए बनारस के कौशलेंद्र सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया. कौशलेंद्र के सामने होंगे, एसपी के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल. कौशलेंद्र के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें बनारस से इंपोर्ट किया गया है. यानी उन पर बाहरी होने का ठप्पा है.
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गोरखपुर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि रही है. वो भी पूरे पांच बार. वो, गोरखपुर के ‘ताज वाले बादशाह’ रह चुके हैं. ऐसे में विरोधियों के पास खोने को कुछ नहीं है और बीजेपी के पास बचाए रखने के लिए बहुत कुछ. गोरखपुर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं- उपेंद्र शुक्ल जो संगठन मेंअगड़ों के चेहरे के तौर पर देखे जाते हैं. समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार हैं प्रवीण निषाद. प्रवीण हाल ही में एसपी में शामिल हुए हैं. फिलहाल, हालात देखते हुए गोरखपुर में बहनजी का साथ, एसपी के लिए कोई बड़ी उम्मीद बनकर उभरेगा, इसकी संभावना नजर नहीं आती.
इन दोनों ही जगहों पर 11 मार्च को मतदान होना है.
अगर आप सिर्फ यूपी उपचुनाव के चश्मे से दोनों धुर-विरोधी दलों के साथ आने को देखेंगे तो आपको कुछ निराशा हाथ लग सकती है. लेकिन, जब आपको याद आता है कि महज साल भर के भीतर एक महायुद्ध का बिगुल फूंका जाना है तो इस साथ को बदल कर देखने के लिए यकायक नए चश्मे की जरूरत महसूस होने लगती है. 2014 के आम चुनाव में बीएसपी की सीट संख्या थी- जीरो. शून्य. सिफर. वहीं बीजेपी ने पूरे राज्य में भगवा फहरा दिया था. उसके बाद 2017 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को 403 में से 325 सीटें मिलीं.
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वैसे भी, जिस राज्य का इतिहास ही धर्म और जाति की राजनीति से बार-बार तय होता रहा हो, वहां ये देखना भी जरूरी हो जाता है कि 2019 में पिछड़े, दलित और मुसलमानों के एक छाते के नीचे खड़े होने पर बाकियों को भारी बरसात का सामना करना पड़ सकता है जिसमें कइयों के अरमान धुल जाएंगे.
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Published: 04 Mar 2018,02:43 PM IST