देश की राजनीतिक 'राजधानी' उत्तर प्रदेश की दो हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान हो गया है. गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों के लिए 11 मार्च को वोटिंग होगी और नतीजे 14 मार्च को आएंगे. गोरखपुर सीट से योगी आदित्यनाथ और फूलपुर सीट से केशव प्रसाद मौर्य सांसद थे. बाद में योगी के सीएम और केशव प्रसाद मौर्य के डिप्टी सीएम बनने के बाद ये दोनों सीटें खाली हो गईं थीं.
ऐसे में योगी सरकार के एक साल पूरे होने के बाद सबसे बड़ा मुकाबला सीएम और डिप्टी सीएम के गढ़ में ही है. फूलपुर में जहां बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी वहीं गोरखपुर में 1991 के बाद से ही बीजेपी की सरकार है.
फूलपुर सीट का राजनीतिक 'गणित'
इस सीट का इतिहास अपने आप में बेहद खास है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई बड़े दिग्गजों ने इस सीट का नेतृत्व किया है. वहीं बीजेपी-बीएसपी के लिए भी ये सीट अहमियत रखता है. साल 1952,1957 और 1962 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस सीट का प्रतिनिधत्व किया था. साल 1962 में नेहरू को टक्कर देने के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया उतरे, लेकिन करीब 55 हजार वोटों से हार गए.
पिछले 5 लोकसभा चुनाव की बात करें तो साल 2014 में बीजेपी को जहां 52 % वोट मिले, वहीं कांग्रेस, बीएसपी, एसपी के कुल वोटों की संख्या महज 43 % ही रह गई.
बीएसपी के लिए ये सीट अहम
अटकलें ये भी लगाई जा रही थी कि इस सीट से बीएसपी अध्यक्ष मायावती चुनाव लड़ सकती हैं. ये वही सीट है जहां से साल 1996 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम हार चुके हैं. कांशीराम को समाजवादी पार्टी उम्मीदवार जंग बहादुर पटेल ने 16 हजार वोटों से हराया था. मायावती की बीएसपी ने इस सीट पर अपना खाता 2009 के चुनाव में खोला, जब कपिल मुनि करवरिया ने 30 फीसदी वोट हासिल किए थे.
गोरखपुर सीट का राजनीतिक 'गणित'
पिछले 29 साल से गोरखपुर सीट से लगातार गोरक्षपीठ का दबदबा रहा है. साल 1989 में पीठ के महंत अवैद्यनाथ ने हिंदू महासभा की टिकट पर चुनाव लड़ा और 10 फीसदी वोट शेयर के अंतर से जनता दल के उम्मीदवार रामपाल सिंह को मात दी थी. 1991 और 1996 के चुनाव में अवैद्यनाथ ने बीजेपी की टिकट से जीत हासिल की थी. फिर 1998 से लगातार 2 दशक तक यानी अबतक इस सीट पर बीजेपी के टिकट पर योगी आदित्यनाथ काबिज हैं.
पिछले 5 लोकसभा चुनाव की बात करें तो 1998, 1991 में जहां बीजेपी को समाजवादी पार्टी से कड़ी टक्कर मिलती दिखी थी. वहीं 2004 के बाद से बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की है.
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