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कांग्रेस का चिंतन शिविर खत्म, इन 6 फैसलों में पार्टी खोज रही कमबैक का उपाय

Congress Chintan Shivir में लिए गए फैसलों का मतलब क्या है?

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Congress Chintan Shivir खत्म, इन 6 फैसलों में पार्टी खोज रही कमबैक का उपाय

(फोटो-पीटीआई)

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देश की राजनीति में अपने कमबैक की राह जोहती कांग्रेस पार्टी के तीन दिवसीय चिंतन शिविर (Congress Chintan Shivir) का समापन उदयपुर में रविवार,15 मई को हो गया. छह कमिटियों में करीब 70 नेताओं का ग्रुप बनाकर तमाम मुद्दों पर तीन दिनों तक मंथन चला. आंतरिक सुधार के लिए टास्क फोर्स से लेकर कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 'भारत जोड़ो' पदयात्रा तक- जानते हैं कांग्रेसी नेताओं ने चिंतन शिविर में कौन से फैसले लिए हैं.

1. राहुल गांधी के नेतृत्व का मुद्दा रहा गर्म

चिंतन शिविर के आखिरी दिन कर्नाटक कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार ने कहा कि "हम सभी को विश्वास है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस वापसी करेगी. G23 (विद्रोही कोंग्रेसियों का समूह) जा चुका है, पूरी पार्टी एकजुट है और हम सब एक हैं."

युवा कांग्रेस प्रमुख द्वारा राहुल गांधी को पार्टी संभालने के लिए कहने के प्रस्ताव को कार्य समिति ने खारिज कर दिया.

2. आंतरिक सुधार के लिए एक सप्ताह के अंदर टास्क फोर्स का गठन

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रविवार को चिंतन शिविर के आखिर दिन बताया कि पार्टी में आंतरिक सुधार के लिए एक सप्ताह के अंदर टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा. उन्होंने बताया कि टास्क फोर्स पार्टी में जरूरी सुधारों की प्रक्रिया में तेजी लाएगा. इन सुधारों के बारे में यहां अलग-अलग समूहों से चर्चा की गई है. इन सुधारों का लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है.

यह समूह 2024 के लोकसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित करेगा और संगठन, आउटरीच और गठबंधन के सभी पहलुओं को कवर करेगा.

3. 2 अक्टूबर से 'भारत जोड़ो' पदयात्रा

सोनिया गांधी ने कहा कि 2 अक्टूबर को कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 'भारत जोड़ो' पदयात्रा शुरू की जाएगी. इसमें पार्टी के सभी लोग हिस्सा लेंगे। इस पदयात्रा का उद्देश्य सामाजिक सौहार्द को मजबूत करना और संविधान के मौलिक तत्व का संरक्षण करना है. इसका उद्देश्य भारत के करोड़ों लोगों की रोजमर्रा की चिंताओं को उजागर करना भी है.

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4. संगठनात्मक पदों पर 50% युवा और 50% जातिगत आरक्षण

उदयपुर के चिंतन शिविर में कांग्रेस ने घोषणा की है कि पार्टी संगठन के सभी स्तरों पर 50 वर्ष से कम आयु वाले लोगों को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व प्रदान करेगी. साथ ही नए लोगों को अवसर देने के लिए कोई भी व्यक्ति पांच साल से अधिक समय तक पार्टी के किसी एक पद पर नहीं रहेगा.

5. "एक व्यक्ति एक पद" और "एक परिवार एक टिकट" पर लगी मुहर

चिंतन शिविर में "एक व्यक्ति एक पद" और "एक परिवार एक टिकट" के मुद्दे पर पहले से नेताओं के बीच आम सहमति थी और यह आज पारित भी हो गया. हालांकि यह नियम गांधी परिवार के लिए लूपहोल भी छोड़ता है.

6. संचालन समिति के लोग सलाहकार समिति का हिस्सा बनेंगे

सोनिया गांधी ने अपने भाषण में कहा कि कांग्रेस की संचालन समिति के लोग सलाहकार समिति का हिस्सा बनेंगे. यह समिति नियमित रूप से उनकी अध्यक्षता में बैठकें करेगी, जहां पार्टी के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों तथा जिन राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान दिया जाना है, उसके विषय में चर्चा होगी.

उन्होंने कहा, "कांग्रेस संचालन समिति पहले की तरह कायम रहेगी और उसकी बैठकें भी होती रहेंगी. नई समिति कोई निर्णय लेने वाली समिति नहीं होगी, बल्कि उसका काम मुझे सलाह देना होगा, ताकि मैं उन वरिष्ठ नेताओं के विस्तृत अनुभव का लाभ उठा सकूं."

इन फैसलों का मतलब क्या है?

कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक आंदोलन की मांग चिंतन शिविर में संगठन समिति, राजनीतिक मुद्दे की समिति, युवा समिति और आर्थिक समिति- सब में उठी थी. इस मांग को पूरा भी किया गया और 2 अक्टूबर को कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 'भारत जोड़ो' पदयात्रा शुरू करने का फैसला लिया गया.

भले ही प्रशांत किशोर ने पार्टी का दामन नहीं थामा लेकिन पार्टी के इस फैसले में उनकी एक नसीहत की झलक दिखती है. प्रशांत किशोर ने पिछले महीने कांग्रेस नेतृत्व के सामने दिए गए अपने प्रजेंटशन में इसी बात पर जोड़ दिया था.

"एक परिवार एक टिकट" नियम के तहत यदि किसी उम्मीदवार के परिवार के सदस्य चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उन्हें तभी अनुमति दी जाएगी जब वे पांच साल से सक्रिय पार्टी के सदस्य हों. यह लूपहोल सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव लड़ने के योग्य बनाता है.

विद्रोही G23 नेताओं से लेकर प्रशांत किशोर जैसे मंझे चुनावी रणनीतिकार भी कई दफे पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी पर सवाल उठा चुके हैं.पार्टी 5 राज्यों में चुनाव हारकर यह खुद देख चुकी है. टास्क फोर्स का गठन कर उसी कमजोरी को साधने की कोशिश दिख रही है. हालांकि पार्टी के कई नेता खुद गांधी परिवार के नेतृत्व को ही सबसे बड़ी कमजोरी बताते रहे हैं. ऐसे में बढ़ा सवाल यह है कि क्या यह टास्क फोर्स इस एंगल से विचार करने की क्षमता रखेगा.

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