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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी की कमान संभालने के करीब दस महीने बाद आखिरकार कार्य समिति (CWC) का गठन कर दिया, जिसमें कुल 62 नेताओं को जगह दी गई है. खड़गे ने अपनी टीम में जातीय समीकरण को भी साधने की पूरी कोशिश की है. उन्होंने दलित और मुस्लिम चेहरों को भी अपनी टीम का हिस्सा बनाया है.
अब सवाल है कि ये नेता कौन हैं और इनका राजनीतिक वजूद कितना है? दूसरा, खड़गे ने क्यों इन्हें टीम में जगह दी है?
64 वर्षीय कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक की पहचान पार्टी के वफादार और गांधी परिवार के खास लोगों के तौर पर होती रही है. दलित समुदाय से आने वाले वासनिक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता दिवगंत बालकृष्ण वासनिक सांसद थे, जबकि मुकुल NSUI और IYC (भारतीय युवा कांग्रेस) के अध्यक्ष के अलावा कई राज्यों के प्रभारी के साथ कांग्रेस महासचिव भी रह चुके हैं. वो महाराष्ट्र के विदर्भ से आते हैं और वर्तमान में राजस्थान कोट से 2022, से राज्यसभा सांसद हैं.
उन्होंने अपनी ज्यादातर राजनीति दिल्ली में रहकर की है और उनकी पहचान इलेक्टोरल लीडर्स से अधिक संगठन के नेता के तौर पर ज्यादा होती है. वो ग्रुप 23 का भी हिस्सा थे और उनका नाम तेजी से उस वक्त उभरा जब, भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव चल रहा था. उस वक्त ये चर्चा तेजी से थी कि पार्टी मुकुल वासनिक को कांग्रेस अध्यक्ष बना सकती है, लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ और मल्लिकार्जुन खड़गे बाजी मार ले गये.
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (60) की पहचान जमीन से जुड़े नेता के तौर पर होती है. कांग्रेस ने 2021 में ऐतिहासिक फैसला करते हुए किसी दलित नेता को पहली बार पंजाब का सीएम बनाया था. और अपने छह महीने के कार्यकाल में चन्नी ने तेजी से कई फैसले लिये, लेकिन वो कांग्रेस को सत्ता में वापस नहीं ला पाये.
कांग्रेस नेता ने कहा कि इसका फायदा न सिर्फ लोकसभा बल्कि आगामी राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी दलित वोटर्स के रूप में मिलेगा.
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार (78), पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं. बिहार के भोजपुर में जन्मी मीरा कुमार की पहचान कांग्रेस के प्रमुख दलित चेहरे को तौर पर होती है. पार्टी ने 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में मीरा कुमार को UPA की तरफ से उम्मीदवार बनाया था, हालांकि, वो एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद से हार गई थी. लेकिन कांग्रेस गाहे-बगाहे मीरा कुमार को दलित नेता के तौर पर आगे करती रही है.
हालांकि, वो लंबे समय से सियासत में एक्टिव नहीं हैं और अपने पिछले दोनों चुनाव (2014 और 2019 लोकसभा) हार चुकी हैं.
खड़गे ने दलित चेहरे के रूप में जिस नेता को अपनी टीम में जगह दी है, उसमें सबसे एक्टिव और चर्चा में हरियाणा से आने वाली कुमारी शैलजा (60) हैं. हालांकि, कुमार शैलजा 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव हार गई थी. लेकिन उन्हें कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ अच्छे संबंध का लाभ हमेशा मिलता रहा है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को कांग्रेस ने 2014 में हार के बावजूद न सिर्फ राज्यसभा भेजा बल्कि विरोध के बाद भी 2019 में हरियाणा पीसीसी का अध्यक्ष बनाया. वो वर्तमान में छत्तीसगढ़ की प्रभारी भी हैं.
माना जाता है कि बघेल और टीएस सिंह देव के बीच समन्वय स्थापित करने और राज्य में आंतरिक गुटबाजी को लगाम लगाने में शैलजा ने मुख्य भूमिका निभाई है. क्योंकि पीएल पुनिया के प्रभारी रहते हुए छत्तीसगढ़ में सब ठीक नहीं चल रहा था.
हालांकि, कुछ जानकारों का कहना है कि लोकसभा के बाद हरियाणा में भी 2024 के सिंतबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहीं, छत्तीसगढ़ में भी कुछ महीनों में चुनाव है, ऐसे में पार्टी वोटर्स को संदेश देना चाहती है कि दलित उनके एजेंडे में प्रमुख है.
64 वर्षीय भक्त चरण दास वर्तमान में बिहार कांग्रेस के प्रभारी हैं. उनका जन्म ओडिशा में हुआ था. पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त चरण दास ने किसानों और वन को लेकर 80 के दशक में कई आंदोलन किये थे.
पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर (72) बिहार से आते हैं. उन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद 1999 में शरद पवार और पीए संगमा के साथ एनसीपी का गठन किया था, लेकिन 2018 में वो दोबारा कांग्रेस में आ गये. लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य रह चुके अनवर कई राज्यों के प्रभारी रह चुके हैं. हालांकि, उनकी पहचान आज तक मुस्लिम के बड़े नेता के तौर पर नहीं हो पायी.
नामी वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद (70) केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. यूपी से आने वाले सलमान खुर्शीद भले ही कई बार संसद सदस्य रहे हों लेकिन वो आज तक कांग्रेस के मुस्लिम लीडर के तौर पर पहचान नहीं बना पाये हैं.
दक्षिण राज्य कर्नाटक से आने वाले सैयद नासिर हुसैन वर्तमान में 2018 से राज्यसभा सदस्य हैं. उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का करीबी माना जाता है. हालांकि, उनकी पहचान मास लीडर के तौर पर कर्नाटक में भी नहीं रही है. वो राष्ट्रीय प्रवक्ता के साथ राज्यसभा में डिप्टी व्हीप भी हैं.
गुलाम अहमद मीर जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं. इनका भी राजनीतिक वजूद राज्य के कुछ क्षेत्र तक ही सीमित है.
पूर्व सांसद तारिक हमीद कर्रा पहले पीडीपी में हुआ करते थे, लेकिन बीजेपी-पीडीपी गठबंधन से नाराज होकर कर्रा 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गये. जम्मू-कश्मीर से आने वाले कर्रा घाटी के पहले ऐसे नेता हैं, जिन्हें कांग्रेस कार्य समिति में जगह मिली है. वो राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. हालांकि, कर्रा का प्रभाव राज्य में भी बहुत ज्यादा नहीं है.
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर आनंद कुमार ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "कांग्रेस ने सीडब्लूसी में सामाजिक विविधिता को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है. लेकिन CWC सदस्यों की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐसे में अगर कांग्रेस बीते जमाने के नेताओं की जगह जीवंत संपर्क वाले चेहरों को जगह देती तो, पार्टी की राह आसान हो सकती थी. हालांकि, पहले की तुलना में अधिक पिछड़े, आदिवासी, दलित, महिला और मुस्लिम चेहरों को जगह दी गई है. इसमें जी-23 के नेता भी शामिल हैं, जो उल्लेखनीय बात और ये कांग्रेस के अंदर आंतरिक लोकतंत्र का संकेत है."
वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज ने कहा, "मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनाकर पहले ही कांग्रेस ने ये संदेश दे दिया है कि दलितों के प्रति पार्टी का कितना प्रेम हैं."
कुमार पंकज ने इस सवाल के जवाब में कहा, "युवा और मुस्लिम चेहरों को लेकर सवाल उठ रहे हैं लेकिन कांग्रेस में अभी दूसरी पीढ़ी के नेताओं का अभाव है."
उन्होंने आगे ये भी कहा कि कई पुराने चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है. ऐसे में पार्टी अपनी रणनीति के तहत फैसले लेती है. लेकिन इसका कितना असर होगा, ये वक्त ही बताएगा. पर इसमें कोई संदेह नहीं की पार्टी ने सामाजिक समीकरण साधने का पूरा प्रयास किया है.
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