देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 'करिश्माई' गांधी परिवार पर सवाल उठने लगे हैं और कांग्रेस की कमान अब गैर गांधी परिवार को सौंपने की बातें होने लगी हैं. कांग्रेस इस कगार पर पहुंच गई है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, या इस्तीफे की बात कर रहे हैं. आधी सदी से ज्यादा तक पार्टी के नेता रहे गुलाम नबी अब पार्टी से 'आजाद' हो चुके हैं. इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल गांधी यानी चार पीढ़ियों के साथ काम कर चुके गुलाम ने नेतृत्व पर कई आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया है. इस बीच मीडिया में कहा जा रहा कि सोनिया गांधी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकारने के लिए कहा है. अगर ऐसा होता है तो गैर गांधी परिवार से आने वाले अशोक गहलोत को, अंदरूनी कलह से जूझ रही पार्टी को संभालने के लिए कांग्रेस के एक ऐसे नेता से सीख लेनी चाहिए, जिसने कांग्रेस को ऐसे ही बुरे वक्त से बाहर निकाला था.
नमस्कार मैं उपेंद्र कुमार, सियासत में आज बात गैर गांधी परिवार से आने वाले पहले कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज की. जिन्होंने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और दो बार प्रधानमंत्री बनने की पेशकश ठुकरा दी थी.
साल 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार तीसरी बार जीत मिली थी. जवाहर लाल नेहरू चौथी बार देश के प्रधानमंत्री चुने गए. हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा देने वाले जवाहर लाल नेहरू पर तब संकट के बादल मंडराने लगे जब चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठने लगे और विरोध के स्वर भी मुखर हो गए.
उधर, वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने जनता पर भारी टैक्स का बोझ डाल दिया. ऐसे में जनता के बीच कांग्रेस को लेकर भरोसा डगमगाने लगा. इसकी झलक तब दिखी, जब 1963 में हुए 3 लोकसभा उपचुनावों में कांग्रेस हार गई. हार की समीक्षा करने के लिए हैदराबाद में कांग्रेस नेताओं की मीटिंग बुलाई गई. इस मीटिंग में जवाहर लाल नेहरू भी पहुंचे थे.
इसी मीटिंग में के कामराज ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से हैदराबाद में कहा कि कांग्रेस की संगठन से पकड़ कमजोर होती जा रही है. लिहाजा, इसे ठीक करने की सख्त जरूरत है. उन्होंने नेहरू को एक सुझाव दिया कि...
पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस की चूलें कसने में लगा दें. कांग्रेस के सब बुजुर्ग नेताओं में सत्ता लोभ भर चुका है. उन्हें वापस संगठन में लौटना चाहिए. लोगों से जुड़ना चाहिए.
ये सुझाव थोड़ा मुश्किल था क्योंकि उस वक्त भी कुछ ऐसे नेता थे जिनको ऐसा लग रहा था कि ये प्लान कुछ नेताओं को साइडलाइन करने के लिए है. हालांकि, इस प्लान को कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने मंजूरी दे दी और 2 महीने के अंदर ही यह लागू कर दिया.
चीन पर अपनी नीति को लेकर नेहरू कई प्रमुख कैबिनेट मंत्रियों की कटु आलोचना से आहत महसूस कर रहे थे. तभी कामराज ने सुझाव दिया कि कैबिनेट के सदस्यों को भी संस्थागत काम करके पार्टी को मजबूत करना चाहिए.कुलदीप नैयर, 'बियॉन्ड द लाइन्स
इसी प्लान के तहत के कामराज ने खुद 2 अक्तूबर 1963 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और लाल बहादुर शास्त्री, बीजू पटनायक, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई और एसके पाटिल जैसे बड़े नेताओं को इस्तीफा देना पड़ा था. इस प्लान के तहत करीब आधे दर्जन केंद्रीय मंत्रियों और करीब इतने ही मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा था. यही योजना ‘कामराज प्लान’ के नाम से फेमस हुई. इसके बाद कामराज को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया.
जवाहर लाल नेहरू कामराज पर बहुत भरोसा करते थे और उनके काम के बहुत कायल थे. एक बार नेहरू ने उनकी तारीफ में कहा था कि मद्रास भारत में सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है, इसके पीछे कामराज का काम है.
मुख्यमंत्री रहते हुए कामराज ने हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल खोलने की मुहिम चलाई. उन्होंने 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना चलाई. उन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार मिड डे मील योजना चलाई. उनका कहना था कि राज्य के लाखों गरीब बच्चे कम से कम एक वक्त तो भरपेट भोजन कर सकें. उन्होंने मद्रास के स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना की शुरुआत की. इसी तरह मद्रास में तय समय के भीतर सिचाईं परियोजनाओं को पूरा करने और हर गांव में आजादी के महज 15 साल बाद बिजली पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें जाता है.
1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस के सामने सवाल था कि अगला प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए? प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस में दो दावेदारों के बीच संघर्ष शुरू हो गया. प्रधानमंत्री चुनने का सारा दारोमदार कामराज के कंधों पर आ गया. तब वित्त मंत्री रहे मोरारजी देसाई के मन में पीएम बनने की आकांक्षा हिलोरें ले रही थीं. पार्टी के भीतर भी देसाई की पकड़ मजबूत थी. लेकिन, कामराज ने उनके दांव को फेल कर दिया. कामराज उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. अधिकतर कांग्रेसी चाहते थे कि कामराज ही प्रधानमंत्री बनें लेकिन, उन्होंने ये कहते हुए नकार दिया था कहा कि राष्ट्रनिर्माण के लिए पार्टी का फिट रहना जरूरी है.
कामराज के नेतृत्व में सिंडीकेट ने शास्त्री का समर्थन किया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नीलम संजीव रेड्डी, निजा लिंगाप्पा, अतुल्य घोष, एसके पाटिल जैसे गैर-हिंदी भाषी नेताओं के गुट को तब के प्रेस रिपोर्टर सिंडीकेट कहा करते थे, जिसकी अगुआई कामराज किया करते थे. कामराज के समर्थन से शास्त्री प्रधानमंत्री बन गए.
जनवरी 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई. फिर से प्रधानमंत्री पद के लिए रस्सा-कस्सी का खेल शुरू हो गया. इस बार मोरारजी देसाई ने सर्वसम्मति की बात नहीं मानी. वह मतदान कराने की बात पर अड़ गए. कामराज ने इंदिरा गांधी के लिए लामबंदी की. हालांकि, सिंडीकेट ने इस बार कामराज के नाम का भी प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के लिए दिया, लेकिन उन्होंने इसके लिए साफ मना कर दिया.
उन्होंने पश्चिम बंगाल के नेता अतुल्य घोष से कहा जिसे ठीक से हिंदी और अंग्रेजी न आती हो, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए.
इस बार उन्होंने इंदिरा का समर्थन किया. इंदिरा कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर प्रधानमंत्री बनीं. कामराज ने भारत के दो प्रधानमंत्री बनाने में मुख्य भूमिका निभाई, जिसकी वजह से उन्हें आजाद भारत का पहला "किंगमेकर" भी कहा जाता है.
भारतीय राजनीति में सत्ता से जुड़े रहने के लिए सिद्धांतों के साथ समझौता करने वाले और पार्टी की अनदेखी करने वाले नेताओं के तमाम उदाहरण मिल जाएंगे. लेकिन, कामराज ने अपनी पार्टी की कमजोर होती जड़ों को फिर से मजबूत करने के लिए न सिर्फ सत्ता को छोड़ा बल्कि नि:स्वार्थ राजनीति की नजीर पेश की. किंगमेकर कामराज ने कांग्रेस को एक नई दिशा दी थी. ऐसे में पार्टी चाहे तो अब भी सीख ले सकती है.
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