मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019चंद्रशेखर रावण की मोदी के सहारे मायावती के कद को ‘लांघने’ की छलांग

चंद्रशेखर रावण की मोदी के सहारे मायावती के कद को ‘लांघने’ की छलांग

वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव क्यों लड़ना चाहते हैं चंद्रशेखर?

विक्रांत दुबे
पॉलिटिक्स
Published:
चंद्रशेखर रावण पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से लड़ रहे हैं लोकसभा का चुनाव
i
चंद्रशेखर रावण पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से लड़ रहे हैं लोकसभा का चुनाव
(फोटोः Shadab Moizee)

advertisement

ब्राह्मणवाद के खिलाफ आन्दोलन छेड़ ‘रावण’ बनकर उभरे चंद्रशेखर ने जेल से छूटने के बाद साफ हिदायत दी थी कि अब उन्हें रावण के नाम से न पुकारा जाए. अगर कोई ऐसा करता है कि वो कानूनी कार्रवाई करेंगे. मतलब साफ था कि सहारनपुर के छोटे से कस्बे में दलितों के सामाजिक उत्थान के लिए बना भारत एकता मिशन भीम आर्मी के कमांडर चन्द्रशेखर जिले और जोन की सीमा से आजाद होकर देश के दलित नेता बनना चाहते हैं, जो मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव लड़ने के ऐलान से दिखने लगा है.

यूपी में दलित आंदोलन से पोस्टर ब्वॉय बने भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद मोदी के खिलाफ ताल ठोंककर फिर सुर्खियों में हैं. चन्द्रशेखर ने सियासी पिच पर उतरने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो-दो हाथ करने का ऐलान कर दिया, वो भी उनके गढ़ यानी वाराणसी में. जहां बड़े-बड़े धुरंधर सियासी मैदान में उतरने से पहले सौ बार सोच रहे हैं, वहां चंद्रशेखर की हुंकार के क्या मायने हैं? उनकी ये हुंकार क्या वाकई में मोदी को टक्कर देने की है या फिर सिर्फ राजनीति की अति महत्वाकांक्षा, यह अहम सवाल है.

मोदी के सहारे मायावती को लांघने की छलांग

चंद्रशेखर का बनारस से चुनाव लड़ना कई मायनों में अहम है. चंद्रशेखर ने किसी जज्बात में बहकर बनारस से चुनाव लड़ने का फैसला नहीं किया, बल्कि इसके पीछे उनकी एक बड़ी रणनीति है. चंद्रशेखर आजाद जानते हैं कि उनकी पॉलिटिकल लॉन्चिंग के लिए बनारस से बेहतर प्लेटफॉर्म और कहीं नहीं हो सकता. यहां से चुनाव लड़ने का मतलब है कि वो सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनल और अखबारों में छाए रहेंगे.

देश-विदेश के नेताओं की नजरें उन पर जमीं रहेंगी. चुनाव के दौरान उनकी गिनती मोदी को टक्कर देने वाले नेताओं में होगी. दूसरे शब्दों में कहें तो जिस राजनीतिक मुकाम पर चंद्रशेखर सालों बाद भी नहीं पहुंच पाते, मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर उसे चंद दिनों में हासिल कर लेंगे. वाराणसी की चुनावी जंग में अगर चंद्रशेखर जीत जाते हैं तो कहना ही क्या, और अगर हारते हैं तो दलितों के बीच ‘शहीद’ का दर्जा मिलेगा.

चंद्रशेखर, मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर एक तीर से दो निशाने साध रहे हैं. एक तो सुर्खियों बटोरेंगे और दूसरा दलितों के बीच मायावती के विकल्प के तौर पर अपनी स्थिति को मजबूत कर लेंगे.

दलित यूथ आइकन बनने की कोशिश

उत्तर प्रदेश में दलितों के दिलों पर अभी तक सिर्फ और सिर्फ मायावती ही राज करती थीं. गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर तक दलित वोटबैंक पर बहुजन समाज पार्टी का सिक्का चलता था. लेकिन पश्चिम में इस दलित युवा ने आंदोलन का ऐसा बिगुल फूंका कि बड़ी जमात चन्द्रशेखर की मुरीद हो गई. खासतौर से दलित यूथ के बीच चंद्रशेखर आइकन के तौर पर पहचाने जाने लगे हैं. अगड़ों के खिलाफ उनके आक्रामक तेवर को दलित युवाओं ने खूब पसंद किया.

चंद्रशेखर की एक आवाज पर हजारों युवा मर मिटने को तैयार रहते हैं. आलम ये है कि मायावती जैसी मजबूत दलित नेता भी चंद्रशेखर से डरने लगीं. तो प्रियंका जैसी शख्सियत उसका हालचाल लेने के लिए पहुंच गयीं. ऐसे में चंद्रशेखर को लगता है कि अब वक्त आ गया है कि वह सियासी मैदान में उतरें.

हालांकि, वो न तो मायावती पर कटाक्ष कर रहे हैं और न ही राहुल या फिर अखिलेश पर. उनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी हैं. बताया जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी का पहले सिर्फ पश्चिम यूपी पर ही पूरा फोकस था लेकिन प्रियंका गांधी से मिलने के बाद चंद्रशेखर की हसरतें उबाल मारने लगीं हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मोदी के विरोधी या मददगार!

चंद्रशेखर के बनारस से चुनाव लड़ने को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं. सवाल कोई और नहीं बल्कि उनके ही दलित वर्ग से आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि बनारस से चुनाव लड़कर चंद्रशेखर एक तरह से नरेंद्र मोदी की मदद ही कर रहे हैं. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि चंद्रशेखर दलितों के सहारे ही यहां चुनाव लड़ने के लिए आए हैं. जबकि इस सीट पर एसपी-बीएसपी गठबंधन अपना प्रत्याशी उतारने जा रहा है. तो ऐसे में चंद्रशेखर की दावेदारी की सूरत में बनारस सीट पर गठबंधन कमजोर होगा और इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा.

यही कारण है कि चंद्रशेखर बीएसपी सुप्रीमो मायावती को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं. उन्होंने तो अब खुलेआम कहना शुरू कर दिया है कि चंद्रशेखर बीजेपी के एजेंट बनकर चुनाव लड़ रहे हैं. सिर्फ मायावती ही नहीं दलित चिंतक भी चंद्रशेखर के इस कदम से हैरान हैं.

बीएचयू के प्रोफेसर एमपी अहिरवार कहते हैं, ‘चंद्रशेखर का बनारस से चुनाव लड़ना राजनीति की अति महत्वाकांक्षा को दिखाता है. वे पहले कहते थे कि हम सामाजिक लड़ाई लड़ेंगे. लेकिन अब वे चुनाव में आ गए और सीधे तौर पर मोदी के विरोध के नाम पर राजनीति में आए हैं, लेकिन मोदी के लिए काम कर रहे हैं. जब यहां पर गठबंधन है तो फिर क्यों चुनाव लड़ रहे हैं. सवाल ये है कि किसका वोट काटेंगे?’

क्या अरविंद केजरीवाल से सबक लेंगे चंद्रशेखर?

चंद्रशेखर की तरह मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की हसरत लेकर आम आदमी प्रमुख और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी साल 2014 में बनारस पहुंचे थे. लेकिन सियासी मैदान में उनका क्या हश्र हुआ, .ये सभी ने देखा. मोदी की लहर के आगे केजरीवाल औंधे मुंह गिर गए. उस दौर में भी इस बात को लेकर चर्चा तेज थी कि मोदी के खिलाफ केजरीवाल के चुनाव लड़ने के पीछे की क्या स्ट्रेटजी है?

चंद्रशेखर की तुलना में अरविंद केजरीवाल उस वक्त सियासत की बुलंदियों पर थे. ईमानदार छवि और क्रांतिकारी विचारधारा के चलते उन्होंने राजनीति में एक अलग जगह बना ली थी. केजरीवाल और उनके समर्थकों को लगता था कि अन्ना आंदोलन के वो देश के नए राजनीतिक हीरो बन चुके हैं. लेकिन बनारस की सरजमीं पर उतरते ही केजरीवाल की क्रांति गायब हो गई, जबकि उन्हें सपोर्ट करने के लिए देशभर के आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता पहुंचे थे.

केजरीवाल की तरह सोशल मीडिया के घोड़े पर सवार होकर चंद्रशेखर भी बनारस पहुंच रहे हैं. बड़ी बात यह भी है कि वाराणसी में दलित वोट की कोई खास धमक भी नहीं है. ऐसे में अगर चन्द्रशेखर की सम्मानजनक स्थिति नहीं बनी, तो मायावती की ट्रेडिशनल दलित पॉलिटिक्स से हटकर नये सोच और जोश के साथ तैयार हो रही दलित युवा क्रांति जवान होने से पहले ही दम तोड़ देगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT