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इन दिनों जब गुजरात चुनाव की सरगर्मी तेज है, वहां की सबसे 'हॉट सीट' के बारे में दिलचस्पी लाजिमी है. गुजरात की 182 सीटों में से सबसे खास है वलसाड विधानसभा सीट. इसे राज्य में ‘सत्ता की चाबी’ के रूप में देखा जाता है.
गुजरात में ऐसा कहा जाता है कि जिस पार्टी ने ‘वलसाड’ जीता, गांधीनगर पर उसी का कब्जा. हो सकता है कि ये एक मिथ जैसा हो, लेकिन इस सीट का इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है.
पिछले 42 साल में राज्य में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं. उनमें इस सीट से जीत दर्ज करने वाली पार्टी की ही सरकार बनी है या फिर उस पार्टी की मदद से सरकार बनी है. 1975 से ये सिलसिला चलता आ रहा है. हमेशा यहां के विधायक सत्ता में होते हैं.
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1990 में दौलत देसाई ने बीजेपी की टिकट पर किस्मत आजमाते हुए वलसाड को अपनी मुट्ठी में किया. राज्य में बीजेपी-जनता दल गठबंधन की सरकार बनी. 1995 में एक बार फिर से दौलत देसाई ने बीजेपी की टिकट पर इस सीट पर कब्जा किया और केशुभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी.
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2012 में बीजेपी ने दौलत देसाई की जगह भरतभाई कीकूभाई पटेल को वलसाड के चुनावी मैदान में उतारा. उन्होंने वलसाड को फतह करने में कामयाबी हासिल की.
2012 के विधानसभा चुनाव में, इस सीट पर बीजेपी के भरतभाई कीकूभाई पटेल ने 93658 वोटों के साथ जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस के धर्मेश पटेल को 35,999 के बड़े अंतर से हराया था. राज्य बीजेपी में भरत पटेल की अच्छी पकड़ है और अपने विधानसभा इलाके में भी उनकी ठीक-ठाक छवि है. ऐसे में बीजेपी ने इस बार फिर से उन पर दांव लगाया है.
अब देखना ये है कि इस सीट के तमाम मतदाता 9 दिसंबर को किसके पक्ष में वोट डालते हैं. 18 दिसंबर को ये साफ हो पाएगा कि 'सत्ता की चाबी' का तिलिस्म कायम रहता है या यह मिथ टूटता है.
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