गुजरात चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद यह साफ हो गया है कि दोनों ने इस बार जोखिम लेने से परहेज किया है. शुरुआत में दोनों पार्टियों ने कुछ जमे-जमाए नेताओं के पत्ते काटे, लेकिन आखिरी लिस्ट आते-आते साफ हो गया कि दोनों ने सेफ गेम खेलने की कोशिश है. दोनों पार्टियों ने दूसरे समुदायों की तुलना में ओबीसी उम्मीदवारों को तवज्जो दी है.
बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने 2012 में उतारे गए अपने अधिकतर उम्मीदवारों को इस बार भी टिकट दिया है. शुरू में बीजेपी की लिस्ट में पाटीदार उम्मीदवारों की तादाद बढ़ती दिखी, लेकिन आखिरी लिस्ट आते-आते ओबीसी उम्मीदवार बाजी मार ले गए. कांग्रेस ने भी यही फॉर्मूला अपनाया. उसकी लिस्ट में भी ओबीसी उम्मीदवार ज्यादा हैं.
आजमाए उम्मीदवारों को ही तवज्जो
बीजेपी ने 2012 में उतारे गए 148 उम्मीदवारों को इस बार भी टिकट दिया है. 2012 में इसने 60 विधायकों को टिकट काटा था, लेकिन इस बार इसने सिर्फ 34 विधायकों के ही टिकट काटे. वहीं कांग्रेस ने 39 मौजूदा विधायकों समेत 60 पुराने उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
पाटीदार से आगे निकले ओबीसी उम्मीदवार
टिकट बंटवारे को लेकर इस रस्साकशी का फायदा पाटीदारों को तो हुआ है, लेकिन उनसे भी ज्यादा फायदे में रहे हैं ओबीसी उम्मीदवार. बीजेपी ने हार्दिक पटेल के पाले में जाने से रोकने के लिए पाटीदार उम्मीदवारों को टिकट देने में उदारता दिखाई, लेकिन पार्टी को यह भी पता है कि वह पाटीदारों को हार्दिक पटेल की ओर जाने से एक हद तक ही रोक सकती है. लिहाजा ओबीसी उम्मीदवारों पर ज्यादा भरोसा जताया. कांग्रेस ने भी यही स्ट्रेटजी अपनाई.
बीजेपी ने 57 और कांग्रेस ने 65 ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. 2012 के चुनाव में बीजेपी ने 47 और कांग्रेस ने 57 ओबीसी उम्मीदवारों को उतारा था.
2012 की तरह इस बार भी कांग्रेस और बीजेपी ने पाटीदारों को लगभग बराबर टिकट दिए हैं. बीजेपी ने इस बार 53 और कांग्रेस ने 47 पाटीदार उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं
मुस्लिम उम्मीदवार दरकिनार
बीजेपी ने तो एक भी मुसलमान उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. वहीं कांग्रेस ने सिर्फ 6 ऐसे उम्मीदवारों को उतारा है. गुजरात की आबादी में मुस्लिम 10 फीसदी हैं. लेकिन कांग्रेस जान-बूझकर मुस्लिम परस्त नहीं दिखना चाहती. यही वजह है कि राहुल ने इस बार मंदिरों के दर्शन से चुनाव अभियान की शुरुआत की.
कांग्रेस पटेल, दलित, आदिवासी और ओबीसी का समीकरण बनाना चाहती है. उसे पता है कि मुस्लिम उसे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों की लिस्ट में जैन और ब्राह्मण उम्मीदवार भी कम है.
जिनके हिस्से में आई मायूसी
बीजेपी ने अपने कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं. नरोदा से विधायक और महिला, बाल विकास मंत्री निर्मला माधवानी, कोडिनार से विधायक जेठा सोलंकी, गांधीधाम से रमेश माहेश्वरी, चोटिला से शामजी चौहान, टंकारा से मोहन कुंदरिया, सूरत पूर्वी से विधायक रंजीत गिलिटवाला और गणदेवी से मंगू पटेल का टिकट काट दिया गया.
कांग्रेस ने जिन मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया है, उनमें धनेरा की विधायक जोयिता पटेल, कांकरेज के विधायक धरसी खानपारा, महुढा के नटवर सिंह ठाकौर, झालोड के मितेश गरसिया शामिल हैं, जबकि नाथाभाई पटेल को धनेरा, दिनेश जालेरा को कांकरेज से और झालोड से भावेश कटारा को उतारा गया है.
इन दिग्गजों का कटा टिकट
बीजेपी ने अपने जिन दिग्गजों का टिकट काटा है, उनमें अहमदाबाद के मेयर गौतम शाह, पूर्वी डिप्टी सीएम नरहरि अमीन और बाल अधिकार संरक्षण आयोग की जागृति पंड्या शामिल हैं. जागृति बीजेपी नेता हरेन पंड्या की पत्नी हैं, जिनकी 2003 में दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी. बीजेपी प्रवक्ता भरत पंड्या, यूथ विंग के नेता ऋत्विज पटेल और बड़ोदरा के मेयर भरत डांगर को भी टिकट नहीं मिला है.
कांग्रेस के जिन दिग्गजों के टिकट कटे हैं, उनमें नरेश रावल, निशीथ व्यास, सब्बीर काबलीवाला, हिमांशु पटेल, दिनेश शर्मा और जयराज सिंह परमार शामिल हैं. दिनेश शर्मा अहमदाबाद में बापूनगर से टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने हिम्मत सिंह पटेल को तवज्जो दी, जो दो विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव हार चुके हैं.
क्या काम करेगा वाघेला फैक्टर
कांग्रेस का दामन छोड़ चुके दिग्गज शंकर सिंह वाघेला के जन विकल्प मोर्चा ने जन विकल्प पार्टी और इंडियन हिन्दुस्तान कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर उम्मीदवार उतारे हैं. इस गठबंधन की ओर से दूसरे चरण के मतदान के लिए 65 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है. पहले चरण में इसने 74 उम्मीदवारों को टिकट दिए थे. विश्लेषकों का मानना है कि उनका गठबंधन कांग्रेस और बीजेपी के कुछ उम्मीदवारों का खेल खराब कर सकता है.
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