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गुजरात में चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. करीब एक महीने पहले से ही वो पार्टी को इस बात का संकेत दे रहे थे. अब सवाल उठता है कि हार्दिक का आगे का क्या प्लान है? वह कहां जाएंगे. गुजरात में कांग्रेस के अलावा बीजेपी और आम आदमी पार्टी भी चुनाव में उतर रही है. तो क्या हार्दिक आप में जाएंगे या फिर बीजेपी का दामन थामेंगे? हार्दिक पटेल में अपने इस्तीफे में इसके संकेत दिए हैं.
हार्दिक ने जितने भी फैसलों को गिनाया, उन सब को बीजेपी अपना मास्टरस्ट्रोक मानती है. इस्तीफे का विश्लेषण करें तो संकेत मिलता है कि हार्दिक इन फैसलों पर बीजेपी की तारीफ कर रहे हैं और सालों से ये फैसले क्यों नहीं लिए गए? इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
हार्दिक पटेल ने मई के पहले हफ्ते में जामनगर में एक कार्यक्रम के दौरान शिक्षा मंत्री जीतू वघानी के साथ मंच साझा किया था. कार्यक्रम का आयोजन बीजेपी विधायक हाकू जडेजा ने किया था. हालांकि उन्होंने इसे एक सामाजिक कार्यक्रम के रूप में खारिज कर दिया था.
अप्रैल में हार्दिक पटेल ने कहा था कि मैं बीजेपी की तरफ से हाल ही में लिए गए राजनीतिक फैसलों का स्वागत करता हूं. गुजरात में बीजेपी मजबूत है क्योंकि उनके पास निर्णय लेने की क्षमता के साथ नेतृत्व है.
हार्दिक ने खुद को हिंदूवादी नेता कहे जाने पर भी जवाब दिया था. उन्होंने कहा था, मैं रघुवंशी वंश से हू. हम हिंदू को संरक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. मुझे हिंदू होने पर गर्व है.
हाल ही में कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में हार्दिक पटेल ने हिस्सा नहीं लिया था. इस दौरान पटेल ने कई टीवी इंटरव्यू में कहा था कि पार्टी के नेता निराशा महसूस कर रहे हैं. हार्दिक चाहते थे कि पाटीदार नेता नरेश पटेल को कांग्रेस में शामिल कराया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. हाल ही में हार्दिक ने नरेश पटेल से मुलाकात भी की थी.
हार्दिक पटेल ने अपने इस्तीफे में कहा,
मैंने 3 वर्षों में पाया कि कांग्रेस पार्टी सिर्फ विरोध की राजनीति तक सीमित रह गई है, जबकि देश लोगों को विरोध नहीं, एक ऐसा विकल्प चाहिए जो उनके भविष्य के बारे में सोचता हो. देश को आगे ले जाने की क्षमता हो.
अयोध्या मंदिर, सीएए-एनआरसी, धारा 370 हटाना हो या जीएसटी लागू करने जैसे निर्णय हो, देश लंबे समय से इनका समाधान चाहता था और कांग्रेस पार्टी सिर्फ इसमें एक बाधा बनने का काम करती रही.
मैं जब भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिला तो लगा कि नेतृत्व का ध्यान गुजरात के लोगों और पार्टी की समस्याओं को सुनने से ज्यादा अपने मोबाइल और बाकी चीजों पर रहा.
दुख होता है जब हम जैसे कार्यकर्ता अपनी गाड़ी से अपने खर्च पर दिन में 500-600 किमी तक की यात्रा करते हैं. जनता के बीच जाते हैं और फिर देखते हैं कि गुजरात के बड़े नेता जो जनता के मुद्दों से दूर सिर्फ इस बात पर ध्यान देते हैं कि दिल्ली से आए हुए नेता को उनका चिकन सैंडविच समय पर मिला या नहीं.
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