advertisement
हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. हार्दिक पटेल ने एक ट्वीट कर इस्तीफे की घोषणा की है. इस साल के आखिर में गुजरात में चुनाव हैं. ऐसे में हार्दिक का इस्तीफा पार्टी (Congress) के लिए बहुत बुरी खबर है. हार्दिक ने अपने ट्वीट में लिखा है कि-
मैंने 3 सालों में पाया कि कांग्रेस पार्टी सिर्फ विरोध की राजनीति तक सीमित रह गई है, जबकि देश लोगों को विरोध नहीं, एक ऐसा विकल्प चाहिए जो उनके भविष्य के बारे में सोचता हो. देश को आगे ले जाने की क्षमता हो.
अयोध्या मंदिर, सीएए-एनआरसी, धारा 370 हटाना हो या जीएसटी लागू करने जैसे निर्णय हो, देश लंबे समय से इनका समाधान चाहता था और कांग्रेस पार्टी सिर्फ इसमें एक बाधा बनने का काम करती रही.
मैं जब भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिला तो लगा कि नेतृत्व का ध्यान गुजरात के लोगों और पार्टी की समस्याओं को सुनने से ज्यादा अपने मोबाइल और बाकी चीजों पर रहा.
दुख होता है जब हम जैसे कार्यकर्ता अपनी गाड़ी से अपने खर्च पर दिन में 500-600 किमी तक की यात्रा करते हैं. जनता के बीच जाते हैं और फिर देखते हैं कि गुजरात के बड़े नेता जो जनता के मुद्दों से दूर सिर्फ इस बात पर ध्यान देते हैं कि दिल्ली से आए हुए नेता को उनका चिकन सैंडविच समय पर मिला या नहीं.
बता दें कि हार्दिक पटेल और कांग्रेस के बीच रिश्ते कुछ अच्छे नहीं चल रहे थे. हार्दिक ने कई बार खुलकर पार्टी नेतृत्व पर आजादी और ताकत नहीं देने का आरोप लगाया था. हार्दिक के जाने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है. आशंका पहले से ही थी लेकिन पार्टी डैमेट कंट्रोल में नाकाम रही. हाल ही में गुजरात प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर से इस बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि वो उनसे बात करेंगे. जाहिर है ऐसा कुछ नहीं हुआ. क्विंट से बातचीत में कांग्रेस के समर्थक और निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी ने भी कहा था कि हार्दिक अच्छे मित्र हैं, और वो उनको बात करके मना लेंगे. जाहिर है ये जुगत भी काम नहीं आई. हाल ही में हार्दिक ने कहा था कि पार्टी उन्हें नजरअंदाज कर रही है. उन्होंने कहा था -
तब हार्दिक ने ये भी कहा था कि उन्हें गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठकों में नहीं बुलाया जाता. कोई भी फैसला लेने से पहले सलाह नहीं ली जाती.
हार्दिक की कांग्रेस से नाराजगी के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि वो बीजेपी में जाएंगे या फिर आम आदमी पार्टी में. दोनों ही पार्टियां हार्दिक को अपने साथ मिलाना चाहती हैं. 2015 में पाटीदार आंदोलन का मुख्य चेहरा बनकर हार्दिक ने काफी जनसमर्थन जुटाया है और उनकी जमीन पर पकड़ है.
इसे आप गुजरात की राजनीति में एक अहम मोड़ मान सकते हैं. 2015 में ओबीसी समुदाय के लिए आंदोलन के दौरान हिंसा के लिए हाई कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक लगा दी है, तो हो सकता है हार्दिक अगले चुनाव में मैदान में खुद उतरेंगे.
तीन लोग थे जो गुजरात में बीजेपी को चुनौती देते थे-हार्दिक पटेल, अलपेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी. अलपेश ठाकोर को बीजेपी पहले ही अपने साथ मिला चुकी है. अब हार्दिक भी टूट चुके हैं, बाकी बचे जिग्नेश, जिन्हें बीजेपी ने केस मुकदमों में उलझा कर रखा है. ऐसे में 2022 के चुनावों के लिए राज्य में बीजेपी की बड़ी चुनौतियां खत्म हो चुकी हैं. पिछले चुनावों में हारते-हारते बची थी और इसमें इन तीन चेहरों का बड़ा हाथ था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 18 May 2022,10:48 AM IST