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इंस्टाग्राम रील और सॉफ्ट हिंदुत्व: 'अच्छे अब्दुल' कैसे बनाए और बेचे जा रहे हैं?

इंस्टाग्राम पर एक नया पैटर्न है - एक अच्छा मुस्लिम बनने का रास्ता दिखाया जा रहा. कैसे? सबसे पहले एक अच्छा हिंदू बनकर.

अलीज़ा नूर
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>कैसे क्रिएटर्स अपने सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ इंस्टाग्राम पर 'अच्छे अब्दुल' का नैरेटिव फैला रहे हैं</p></div>
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कैसे क्रिएटर्स अपने सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ इंस्टाग्राम पर 'अच्छे अब्दुल' का नैरेटिव फैला रहे हैं

(फोटो: अरूप मिश्रा/द क्विंट)

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ऑनलाइन दुनिया की रीलों की एक नई लहर की माने तो एक अच्छा मुस्लिम होने का मतलब है एक अच्छा हिंदू होना या हिंदू की तरह व्यवहार करना. कम से कम, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर कई कंटेंट क्रिएटर इसी बात का प्रचार कर रहे हैं और चाहते हैं कि यूजर्स इस पर विश्वास करें.

एक नया पैटर्न सामने आया है. द क्विंट इंस्टाग्राम के इस व्यापक रूप से लोकप्रिय पहलू की तह तक गया, जहां भाईचारा-बराबरी फैलाने के बहाने, कंटेंट क्रिएटर अक्सर सांप्रदायिकता की गाढ़ी चाशनी में 'अच्छे बनाम बुरे' मुस्लिम रूढ़िवादिता (स्टीरियोटाइप) को आगे बढ़ा रहे हैं.

और इन सब का पोस्टर बॉय? अब्दुल. आपने उनके बारे में जरूर देखा या सुना होगा. नहीं देखा तो इस स्टोरी के जरिए देखिए और समझिए.

काजल हिंदुस्तानी और सुरेश चव्हाणके के सुदर्शन न्यूज चैनल जैसे दक्षिणपंथी चेहरे, जो समाज के एक खास धार्मिक तबके के बीच बड़ा प्रभाव रखते हैं, वे अक्सर 'अब्दुल' और विभिन्न प्रकार के कथित 'जिहाद' को लेकर नैरेटिव फैलाते हैं.

अब्दुल एक मिथ्या नाम है; यह सभी मुस्लिम पुरुषों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक व्यापक शब्द. इसका इस्तेमाल हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा अपमानजनक तरीके से किया जाता है.

'अच्छा' अब्दुल अब इंस्टाग्राम पर आ गया है, जहां कंटेंट क्रिएटर रील के माध्यम से या तो मुसलमानों के रूप में कपड़े पहन रहे हैं या दूसरों को उनके जैसे कपड़े पहना रहे हैं. यहां वे उपदेश देते हैं कि एक अच्छा मुसलमान कैसे बनें. लेकिन नियम और शर्तें लागू होती हैं.

'क्या असली अब्दुल प्लीज खड़े नहीं होंगे?'

उदाहरण के लिए अभिनव अरोड़ा को लेते हैं. नौ साल के अभिनव को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भारत के सबसे कम उम्र के आध्यात्मिक वक्ता के रूप में सम्मानित किया था.

अभिनव अरोड़ा के इंस्टाग्राम पर 9.5 लाख से ज्यादा फॉलोवर्स हैं. वह दुकानों में जाने, अन्य धार्मिक गुरुओं से मिलने, मंदिरों में जाने और हिंदू त्योहारों का जश्न मनाने के लिए सोशल मीडिया पर मशहूर हुआ.

हाल ही में उसने 'सनातन की शक्ति' दिखाने के लिए एक वीडियो पोस्ट किया था. कैसे? भगवा पठानी सूट पहनाकर एक बच्चे को अब्दुल बनाया और उसे हनुमान चालीसा का जाप कराया. इससे न केवल यह संदेश जाता है कि मुसलमान तभी दोस्ती करने के योग्य हैं जब वे हनुमान चालीसा सीख सकें. बल्कि दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहित किया जाता है कि वे मुसलमानों को ऐसे करने के लिए मजबूर करें और देखें कि वे इस लिटमस टेस्ट में पास होते हैं या नहीं.

अभिनव अरोड़ा के वीडियो में दिखाया गया 'अच्छा अब्दुल'.

(फोटो: अभिनव अरोड़ा/इंस्टाग्राम)

इस वीडियो को उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर 1.8 मिलियन व्यूज मिल चुके हैं.

यह रील ट्रेंड मुसलमानों से हिंदू मंत्रों का जाप कराने के रियल ट्रेंड से भी मेल खाता है. रियल दुनिया में भी जय श्री राम का नारा लगाने के लिए मजबूर करने के लिए मुसलमानों और दलितों को पीटने या पीट-पीटकर मार डालने की कई घटनाएं सामने आई हैं.

हाल ही में एक दूसरे वायरल वीडियो में एक डॉक्टर एक बच्चे को उसकी मां के सामने 'जय श्री राम' बोलने के लिए मजबूर करते हुए देखा गया था.

वीडियो में बच्चे को 'जय श्री राम' बोलने के लिए कहा रहा है.

(फोटो: इंस्टाग्राम)

फिर एक रॉनी हैं, जो खुद को एक एक्टर और मॉडल बताता है और उसके 1.4 लाख से अधिक फॉलोवर्स हैं. उसकी मुसलमानों पर रीलों को 40 मिलियन से अधिक बार देखा गया है.

रॉनी कहानियां सुनाता है, ज्यादातर दोस्ती और समुदायों से संबंधित होती हैं.

उसके कुछ वीडियो नेक इरादे वाले प्रतीत होते हैं, लेकिन कई दूसरे वीडियो न केवल लक्ष्य से चूकते दिखते हैं, बल्कि उनमें इस बात पर भी जोर दिया कि सद्भाव बनाए रखने की जिम्मेदारी हमेशा मुस्लिमों पर होती है और हिंदू धर्म के बारे में सब कुछ सीखकर सद्भावना बनाई जा सकती है.

उदाहरण के लिए, रॉनी की एक वीडियो को 21 मिलियन से अधिक बार देखा गया है. वीडियो गणेश चतुर्थी पर बनाया गया है. इसमें एक हिंदू गणेश जी की मूर्ति खरीदने के लिए एक दुकान पर जाता है. उसको एक दूसरा व्यक्ति गाइड करता है जो उसे कुछ गणेश जी की मूर्तियां दिखाता है और उसे विभिन्न प्रकार की 'मुद्राओं' के बारे में शिक्षित करता है.

और वहीं आश्चर्य! वह व्यक्ति अपनी टोपी लगाता है और रॉनी के चेहरे के भाव तुरंत बदल जाते हैं. "नमाज अदा करने वाले हाथ अगर बप्पा की मूर्ति सजाएंगे तो हैरानी तो होगी ही."

हालांकि यह सच है कि कई मुस्लिम कारीगर हैं जो हर साल गणेश जी की मूर्तियां बनाते और रंगते हैं. लेकिन यह वीडियो दोहराता है कि एक अच्छा मुसलमान वह है जो हिंदू प्रथाओं का पालन करता है. वास्तविकता तो यह है कि मुसलमानों को अपनी धार्मिक पहचान के कारण आज भी अपनी आजीविका के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है. वहीं गुजरात और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में उन्हें नवरात्र जैसे हिंदू त्योहारों से दूर रहने को कहा गया है.
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एक दूसरे वीडियो में, जिसे 6 मिलियन से अधिक बार देखा गया है, रॉनी एक मुस्लिम कैरेक्टर बना है.

वह जबरदस्ती चंदा मांगने वाले हिंदू पुरुषों का विरोध करता है. उस समूह में एक ने गमछा पहना है जिस पर 'जय श्री राम' लिखा होता है, वह उन्हें उपदेश देता है कि इस नारे का असली मतलब क्या है और इसका महत्व क्या है. साथ ही यह भी बताता है कि वह एक सच्चा 'राम भक्त' है.

हिंदुत्व और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अंतर्संबंध के बारे में बात करते समय मोहन जे दत्ता का एक पेपर प्रासंगिक हो जाता है. भले ही यह पेपर 2022 में हुए लीसेस्टर हिंसा के बैकग्राउंड पर लिखा गया है, लेकिन इसमें सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व के प्रसार में डिजिटल प्लेटफार्मों की भूमिका की जांच की गई है.

इस पेपर में उन्होंने यह भी बताया कि मानवविज्ञानी सहाना उडुपा ने इन्हें 'इंटरनेट हिंदू' के रूप में वर्णित किया है. 'यह उन तरीकों को दर्शाता है जिनसे हिंदू राष्ट्रवाद ऑनलाइन निकलता है और बदले में डिजिटल संस्कृतियों का निर्माण करता है.' वे हाशिये पर मौजूद अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने के लिए हिंदुत्व की उसी ऑनलाइन बयानबाजी का भी उपयोग करते हैं.

इस्लामिक स्कॉलर इंस्टा रील्स पर सक्रिय हैं

सामने से देखें तो, हिंदू धर्म और मुस्लिम-पन का परस्पर संबंध है, लेकिन यदि आप बारीकी से देखें, तो बाद वाला गायब है. इन वीडियो में मुस्लिम टोपी पहनने और हिंदुत्व की भावनाओं को बढ़ावा देने से आगे नहीं बढ़ता है. वह अपने धर्म या भाईचारे को एक्सप्लोर नहीं किया जाता है.

फिर सोशल मीडिया की इस दुनिया में डॉ. इमाम उमर अहमद इलियासी जैसे इस्लामिक स्कॉलर भी हैं जो अखिल भारतीय इमाम संगठन (AIIO) के अनुसार "इमाम संगठन का वैश्विक चेहरा" हैं.

डॉ. इलियासी हाल ही में रणवीर इलाहाबादिया द्वारा होस्ट किए गए 'द रणवीर शो पॉडकास्ट' में बैठे.

इंस्टाग्राम पर प्रोमो के रूप में पोस्ट की गई अधिकांश रीलें इस्लाम और एक अच्छा मुसलमान होने का क्या मतलब है, इससे संबंधित थीं. एक वीडियो में इमाम CAA पर सरकार के वर्जन को दोहराते हैं और कहते हैं, "कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और इसे नकारात्मक रूप से चित्रित किया."

CAA पर डॉ. इलियासी के समर्थन को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है और उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत की बधाई भी दी है.

इमाम उमर अहमद इलियासी कई बार पीएम मोदी की तारीफ कर चुके हैं

(फोटो: उमर अहमद इलियासी/फेसबुक)

इसके अलावा, वह इस साल जनवरी में राम मंदिर उद्घाटन में भी शामिल हुए थे. इसके बाद, उन्होंने न्यूज एजेंसी ANI को बताया कि समारोह में भाग लेने के लिए उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया था और राम मंदिर कार्यक्रम की शाम से उन्हें धमकी भरे फोन आए थे.

इमाम ने कहा, "जो मुझसे प्यार करते हैं, देश से प्यार करते हैं - वे मेरा समर्थन करेंगे. जो लोग समारोह में शामिल होने के लिए मुझसे नफरत करते हैं, उन्हें शायद पाकिस्तान चले जाना चाहिए."

पूछने लायक सवाल यह है कि क्या सरकार के साथ उनके घनिष्ठ संबंध और उनके शब्दों के चयन से उनकी विश्वसनीयता पर कोई असर पड़ता है?

इसी तरह, इंस्टाग्राम पर नीचे दिए जैसे अन्य रील भी हैं जो सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने की आड़ में मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रहों को मजबूत करते हैं, अक्सर एक मुसलमान को दूसरे के खिलाफ खड़ा करते हैं. इसमें दिखाया यही जाता है कि केवल वही एक अच्छा मुसलमान है जब वे अपने बच्चों को भगवान कृष्ण के रूप में तैयार करते हैं.

लंदन में रिसर्च और पॉलिसी विशेषज्ञ मोहम्मद उमर का यह पेपर इस संदर्भ में प्रासंगिक है, क्योंकि उन्होंने लिखा है:

"हिंदू धर्म को अनिवार्य बनाने के बाद, इस राष्ट्रवादी पहचान को इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ खड़ा किया गया था, जो हर उस चीज के लिए जिम्मेदार थे जो समरूप हिंदू पहचान के विपरीत थी."

उन्होंने आगे कहा, "मुसलमानों के प्रति दृष्टिकोण भी अनिवार्यीकरण का था. एक सजातीय मुस्लिम पहचान का निर्माण मुसलमानों और उनकी गतिविधियों का विश्लेषण करते समय इस्लाम को एकमात्र कारक बनाने की इच्छा से प्रेरित था."

और हिंदू राष्ट्रवाद का यह पहलू रीलों के इस नए उभरते पैटर्न के मूल में है. एक अच्छा मुसलमान, एक अच्छा 'अब्दुल' होने का मतलब फिर से परिभाषित करना, लेकिन दूसरों द्वारा निर्धारित शर्तों पर.

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