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संसद के शीतकालीन सत्र (Parliament Winter Session) के दौरान सांसदों के निलंबन का मुद्दा गरमाया हुआ है. अब तक लोकसभा और राज्यसभा से रिकॉर्ड 143 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है. इन सबके बीच संसद परिसर में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) की मिमिक्री (Jagdeep Dhankhar Mimicry Row) करने को लेकर राजनीति शुरू हो गई.
एक तरफ बीजेपी ने इस पूरे विवाद को किसान से लेकर जाट समाज से जोड़ दिया है और विपक्ष के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन का ऐलान किया है. वहीं दूसरी तरफ खुद उपराष्ट्रपति धनखड़ ने विपक्ष पर जाट समाज का अपमान करने का आरोप लगाया है.
दरअसल, मंगलवार, 19 दिसंबर को निलंबन के खिलाफ विपक्षी सांसद संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इस दौरान तृणमूल कांग्रेस के निलंबित सांसद कल्याण बनर्जी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नकल करते दिखे थे. वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी मोबाइल से वीडियो बना रहे थे.
बीजेपी ने वीडियो साझा करते हुए उपराष्ट्रपति का मजाक उड़ाने का आरोप लगाकर बनर्जी और राहुल गांधी पर निशाना साधा था. बीजेपी ने 'एक्स' पर लिखा, अगर देश सोच रहा है कि विपक्षी सांसदों को क्यों निलंबित किया गया, तो इसका कारण यहां है. टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने माननीय उपराष्ट्रपति का मजाक उड़ाया, जबकि राहुल गांधी ने उनकी जय-जयकार की. कोई कल्पना कर सकता है कि वे सदन के प्रति कितने लापरवाह और उल्लंघनकारी रहे हैं!.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में कहा कि
मिमिक्री पर विवाद बढ़ने पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा, सांसद वहां बैठे थे, मैंने उनका वीडियो शूट किया. मेरा वीडियो मेरे फोन पर है. मीडिया उसे दिखा रहा है. किसी ने कुछ नहीं कहा हमारे 150 सांसदों को बाहर निकाल दिया गया है, लेकिन मीडिया में उस पर कोई चर्चा नहीं है.
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "अध्यक्ष साहब ने जाति की बात कही. क्या मैं यह कहूं कि अध्यक्ष ने मुझे बोलने नहीं दिया, क्योंकि मैं दलित नेता हूं. ऐसे तो मेरी जाति पर हमेशा हमला होता है, क्योंकि मुझे बोलने नहीं दिया जाता. जो घटना सदन के बाहर हुई, उसके बारे में सदन के अंदर भर्त्सना करना, रेजोल्यूशन पास करना है. यह कहां तक सही है. हम किसी का अपमान नहीं करना चाहते. क्या पीएम और गृह मंत्री सदन का बहिष्कार कर रहे हैं? संसद चलते हुए सदन के बाहर बात कर रहे हैं, सदन के अंदर नहीं."
देश के चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में जाट चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं. राजनीतिक रूप से शक्तिशाली समुदाय लगभग 40 लोकसभा सीटों और लगभग 160 विधानसभा सीटों पर परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. 2024 में लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में राजनीतिक दल मिमिक्री विवाद से जाट राजनीति को हवा देने में जुटे हैं. चलिए आपको चारों राज्यों में जाट राजनीति का समीकरण समझाते हैं.
सबसे पहले बात हरियाणा की. यहां अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है. दशकों से प्रदेश की राजनीति में जाट समुदाय का बोलबाला रहा है और सत्ता की चाबी उनके हाथों में रही है. राज्य की 27 फीसदी आबादी जाट है और यहां विधानसभा की 90 में से 37 सीटें जाट बाहुल्य हैं. वहीं प्रदेश में 10 लोकसभा सीटें हैं.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की 10 में से 10 सीटों पर कब्जा जमाया था. सेंटर फॉर डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS)-लोकनीति के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी को गैर-जाट उच्च जाति और ओबीसी वोटों का 70% से अधिक वोट शेयर मिला था. वहीं पार्टी 50% जाट वोट शेयर पर भी कब्जा जमाने में कामयाब रही थी.
लेकिन 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को झटका लगा. पार्टी बहुमत का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई. बीजेपी को 40 सीटें, कांग्रेस को 31 सीटें और दुष्यंत चौटाला की JJP को 10 सीटें मिली थी. अन्य के खाते में 9 सीटें गई थी. हालांकि, बीजेपी ने JJP के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.
2014 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने अन्य समुदायों की तरह बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया, लेकिन 2019 में वो सत्ता में बैठी बीजेपी के खिलाफ हो गए और कांग्रेस, JJP और INLD में बंट गए, जिससे बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रति जाटों की नाराजगी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कैप्टन अभिमन्यु, ओपी धनकड़, सुभाष बराला, प्रेम लता और सुखविंदर जैसे बड़े चेहरे चुनाव हार गए थे.
जिलेवार नतीजों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने सोनीपत में 5, रोहतक में 7, सिरसा में 2 और हिसार में 1 सीट जीती थी. वहीं JJP ने हिसार में 4, सिरसा में 2 और सोनीपत में 1 सीट पर सफलता पाई थी. जबकि, बीजेपी हिसार में 4, सिरसा में 2, सोनीपत में 3 और रोहतक में 1 सीट ही जीत पाई थी.
ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि बीजेपी ने अभी हाल ही में ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर नायब सिंह सैनी को कमान सौंपी है. धनखड़ जाट कम्युनिटी से हैं, जबकि सैनी पिछड़ा वर्ग से आते हैं.
बीजेपी के इस फैसले के बाद कहा जा रहा था कि पार्टी जाटों से किनारा करके गैर-जाट वोट बैंक पर फोकस करना चाहती है. हालांकि, इस ताजा विवाद के बाद पार्टी चाहेगी की इसके जरिए जाट वोट बैंक को बरकरार रखे, जिससे उसे आगामी चुनावों में फायदा मिल सके.
पश्चिमी यूपी में एक दर्जन लोकसभा सीटों और करीब 40 विधानसभा सीटों पर जाट समुदाय का प्रभाव है. एक अनुमान के मुताबिक, 17 जिलों में 10-15 प्रतिशत जाट आबादी है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक रूप से ये समुदाय प्रभावशाली है.
2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी गठबंधन के हाथों पश्चिम यूपी में बीजेपी को झटका लगा. क्षेत्र की 19 संसदीय सीटों में से 12 पर जीत हासिल की. बाकी सात सीटों में से चार पर बीएसपी और तीन पर एसपी ने जीत दर्ज की थी. पिछले साल हुए उपचुनाव में बीजेपी ने रामपुर सीट एसपी से छीन ली थी.
राज्य की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 95 पश्चिम यूपी में हैं. 2017 के विधानसभा चुनावों में, जब एसपी ने कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था, एसपी को 15 सीटें और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी. जबकि बीजेपी ने 74 सीटें जीतकर क्षेत्र में जीत हासिल की थी. तब बीएसपी ने तीन और आरएलडी ने केवल एक सीट जीती थी. जाटों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को वोट दिया था, जो चुनाव जीतकर सत्ता में आई थी.
पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाने की मांग कई वर्षों से उठा रही है. आरएलडी ये मांग सालों से उठाती रही है. वहीं कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्री और मुजफ्फरनगर से बीजेपी सांसद संजीव बालियान ने भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की बात कही थी. उनके इस बयान को जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा था. पहले कृषि कानून और बाद में पहलवानों के प्रदर्शन के बाद कहा जा रहा था कि जाट बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. ऐसे में अब बीजेपी धनखड़ की मिमिक्री को मुद्दा बनाकर जाटों को साधने में जुट गई है.
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक जाटों का मानना है कि राजस्थान में उनकी आबादी कुल आबादी का 20 प्रतिशत है. इस समुदाय को 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने ओबीसी में शामिल किया था. शेखावाटी और मारवाड़ बेल्ट में जाट समुदाय का वर्चस्व है. शेखावाटी बेल्ट में सीकर, झुंझुनूं और चूरू में जाट समुदाय का 21 सीटों पर प्रभाव है और बाकी नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर और टोंक, बीकानेर, अजमेर जैसे मारवाड़ क्षेत्र में है. इस समुदाय का 50-60 सीटों पर प्रभाव है. राजस्थान में हर चुनाव में कम से कम 10 से 15 फीसदी विधायक जाट समाज के ही होते हैं.
2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो प्रदेश की 25 सीटों में से 24 पर बीजेपी और एक पर सहयोगी RLP ने जीत दर्ज की थी. 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सभी 25 सीटों पर कब्जा जमाया था. ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी एक बार फिर इसी प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी.
2023 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शेखावाटी संभाग में निराशा हाथ लगी है. सीकर और झुंझुनूं में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 15 में से 10 सीटें हासिल की है. दो दशकों से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए कांग्रेस ने झुंझुनूं जिले की सात में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की है. बता दें कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ शेखावाटी के झुंझुनूं जिले से आते हैं. ऐसे में मिमिक्री विवाद के मद्देनजर अगर जाटों ने एकजुट होकर बीजेपी का समर्थन किया तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फायदा हो सकता है.
लोकनीति-CSDS के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 3 फीसदी जाट वोटर्स हैं. दिल्ली 2020 चुनाव पूर्व संध्या सर्वेक्षण और लोकनीति-CSDS पोस्ट पोल सर्वे 2015 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है दिल्ली में जाट वोटर्स का झुकाव बीजेपी की ओर रहा है. 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 54 फीसदी जाट वोट शेयर मिला था, जो कि 2015 के मुकाबले 35 फीसदी ज्यादा था. वहीं AAP के खाते में 7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 38 फीसदी वोट शेयर आया था. कांग्रेस को 4 फीसदी जाट वोट शेयर का नुकसान हुआ था, उसे मात्र 1 फीसदी वोट शेयर ही मिला था.
चुनावी नतीजों की बात करें तो 2015 और 2020 में AAP ने राष्ट्रीय राजधानी की 70 विधानसभा सीटों में से क्रमशः 67 और 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी को 2015 में 3 और 2020 में 8 सीटें ही मिली थी. हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया था.
बहरहाल, मिमिक्री विवाद से बीजेपी को कितना फायदा और विपक्ष को कितना नुकसान होगा ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि इस पूरे विवाद ने जाट समुदाय को एक बार फिर राजनीति के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है.
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