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कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद BJP के लिए नासूर, चुनाव में JD(S) को मिलेगा फायदा?

बीजेपी क्यों चाहेगी कि अगले साल के कर्नाटक चुनावों तक Karnataka-Maharashtra Border Dispute का मुद्दा दबा रहे?

निखिला हेनरी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Karnataka Maharashtra Border Row BJP के लिए नासूर, चुनाव में JD(S) को मिलेगा फायदा</p></div>
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Karnataka Maharashtra Border Row BJP के लिए नासूर, चुनाव में JD(S) को मिलेगा फायदा

(फोटो- अलटर्ड बाई क्विंट)

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कर्नाटक-महाराष्ट्र बॉर्डर (Karnataka Maharashtra Border Dispute) पर दिसंबर की शुरुआत से ही तनाव तेजी से बढ़ता देखा गया. इसकी वजह थी कि महाराष्ट्र के 2 मंत्री सहित नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने कर्नाटक के कुछ गांवों को महाराष्ट्र में मिलाने की मांग करने के लिए वहां के बेलगावी जिले का दौरा करने का प्रस्ताव सामने रखा था.

हालांकि उन्हें 5 दिसंबर को कर्नाटक में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई. कर्नाटक रक्षण वेदिके (KRV) सहित कई कन्नड़ संगठनों ने इस प्रस्तावित दौरे के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया. इस सीमा विवाद के इतिहास और कारण को विस्तार से जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

सवाल है कि एक बार फिर से गरमाए दशकों पुराने कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद की यह लड़ाई कर्नाटक की राजनीति को कैसे प्रभावित कर सकती है, जहां अगले साल 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं?

बता दें कि यह विवाद पांच दशक पुराना है. 1973 से लगातार महाराष्ट्र की सरकारों ने मांग की है कि कर्नाटक के 864 गांवों को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि वहां के अधिकांश निवासी मराठी बोलते हैं.

Karnataka vs Maharashtra सीमा विवाद को किस तरह देख रही है कर्नाटक बीजेपी?

कर्नाटक में बीजेपी चाहती है कि राज्य का चुनाव समान नागरिक संहिता की मांग सहित उनके परिचित मुद्दों पर लड़ा जाए. वह महाराष्ट्र बीजेपी के साथ झगड़ा नहीं करना चाहता, जो शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के साथ गठबंधन बनाकर वहां सरकार में है.

क्या कहते हैं बीजेपी सूत्र: यह बेहतर है कि सीमा विवाद "2023 में होने जा रहे राज्य चुनावों के अंत तक दबा रहे क्योंकि यह मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट में है."

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बेलगावी में भी, RSS के हिंदू जागरण वैदिक सहित कुछ दक्षिणपंथी हिंदुत्व समूह चाहते हैं कि चुनाव सीमा विवाद के मुद्दे पर नहीं बल्कि "हिंदू एकता" के मुद्दे आसपास केंद्रित हो.

"बेलगावी के विधानसभा क्षेत्रों में हमारी मजबूत उपस्थिति है, लेकिन यह भी भावना बढ़ रही है कि पार्टी (बीजेपी) को महाराष्ट्र में उसके नेताओं द्वारा दबाया जा रहा है."
क्विंट को एक बीजेपी सूत्र

क्या विपक्ष स्थिति का फायदा उठा रहा है?

भले ही कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने सुप्रीम कोर्ट में चल रही कानूनी लड़ाई का समर्थन किया हो, वे कर्नाटक में इस बार सीमा विवाद के मुद्दे पर काफी हद तक चुप हैं. हालांकि कन्नड़ समर्थक सांस्कृतिक संगठन, कर्नाटक रक्षणा वेदिके (KRV) की गतिविधियों ने इस पूरी स्थिति को जनता दल (सेक्युलर)/ JD(S) के पक्ष में झुका दिया है.

JD(S) को इसका फायदा क्यों मिल सकता है?

"कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही राष्ट्रीय दल हैं और इस विवाद में उन्हें महाराष्ट्र और कर्नाटक, दोनों पक्षों का समर्थन करना पड़ सकता है. जबकि इसके विपरीत JD(S) के लिए कर्नाटक ही एकमात्र प्राथमिकता है."
KRV के अरुण जवागल

बेलागवी के अंदर आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में लड़ाई पारंपरिक रूप से बीजेपी और कांग्रेस के बीच रही है. इस क्षेत्र में दोनों पार्टियों के विधायकों की संख्या लगभग बराबर है. दूसरी तरफ यहां JD(S) की मौजूदगी और प्रभाव मुश्किल से ही है.

लेकिन 2023 के चुनाव में KRV - जिसके कर्नाटक महाराष्ट्र बॉर्डर क्षेत्र में 10 लाख से अधिक फॉलोवर्स हैं - इस मुद्दे पर JD(S) का समर्थन करने का विकल्प चुन सकता है.

"हम बीजेपी से खुश नहीं हैं, क्योंकि उन्हें महाराष्ट्र के नेताओं को बेलगावी में शांति भंग करने से रोकना चाहिए था. अगर JD(S) मुखर रूप से कर्नाटक पक्ष का समर्थन करती है, तो हम अपने फॉलोवर्स को चुनावी रूप से उनका समर्थन करने की सलाह देंगे."

इसके संभावित नतीजे क्या होंगे? महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद JD(S) के समर्थन में तेजी ला सकता है, जो खुद को कर्नाटक की क्षेत्रीय पार्टी कहती रही है. लेकिन दूसरी ओर चुनाव से पहले अगर यह विवाद शांत हुआ तो यहां लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहेगी.

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