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कर्नाटक-महाराष्ट्र बॉर्डर (Karnataka Maharashtra Border Dispute) पर दिसंबर की शुरुआत से ही तनाव तेजी से बढ़ता देखा गया. इसकी वजह थी कि महाराष्ट्र के 2 मंत्री सहित नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने कर्नाटक के कुछ गांवों को महाराष्ट्र में मिलाने की मांग करने के लिए वहां के बेलगावी जिले का दौरा करने का प्रस्ताव सामने रखा था.
हालांकि उन्हें 5 दिसंबर को कर्नाटक में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई. कर्नाटक रक्षण वेदिके (KRV) सहित कई कन्नड़ संगठनों ने इस प्रस्तावित दौरे के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया. इस सीमा विवाद के इतिहास और कारण को विस्तार से जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.
बता दें कि यह विवाद पांच दशक पुराना है. 1973 से लगातार महाराष्ट्र की सरकारों ने मांग की है कि कर्नाटक के 864 गांवों को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि वहां के अधिकांश निवासी मराठी बोलते हैं.
कर्नाटक में बीजेपी चाहती है कि राज्य का चुनाव समान नागरिक संहिता की मांग सहित उनके परिचित मुद्दों पर लड़ा जाए. वह महाराष्ट्र बीजेपी के साथ झगड़ा नहीं करना चाहता, जो शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के साथ गठबंधन बनाकर वहां सरकार में है.
क्या कहते हैं बीजेपी सूत्र: यह बेहतर है कि सीमा विवाद "2023 में होने जा रहे राज्य चुनावों के अंत तक दबा रहे क्योंकि यह मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट में है."
बेलगावी में भी, RSS के हिंदू जागरण वैदिक सहित कुछ दक्षिणपंथी हिंदुत्व समूह चाहते हैं कि चुनाव सीमा विवाद के मुद्दे पर नहीं बल्कि "हिंदू एकता" के मुद्दे आसपास केंद्रित हो.
भले ही कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने सुप्रीम कोर्ट में चल रही कानूनी लड़ाई का समर्थन किया हो, वे कर्नाटक में इस बार सीमा विवाद के मुद्दे पर काफी हद तक चुप हैं. हालांकि कन्नड़ समर्थक सांस्कृतिक संगठन, कर्नाटक रक्षणा वेदिके (KRV) की गतिविधियों ने इस पूरी स्थिति को जनता दल (सेक्युलर)/ JD(S) के पक्ष में झुका दिया है.
JD(S) को इसका फायदा क्यों मिल सकता है?
बेलागवी के अंदर आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में लड़ाई पारंपरिक रूप से बीजेपी और कांग्रेस के बीच रही है. इस क्षेत्र में दोनों पार्टियों के विधायकों की संख्या लगभग बराबर है. दूसरी तरफ यहां JD(S) की मौजूदगी और प्रभाव मुश्किल से ही है.
लेकिन 2023 के चुनाव में KRV - जिसके कर्नाटक महाराष्ट्र बॉर्डर क्षेत्र में 10 लाख से अधिक फॉलोवर्स हैं - इस मुद्दे पर JD(S) का समर्थन करने का विकल्प चुन सकता है.
इसके संभावित नतीजे क्या होंगे? महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद JD(S) के समर्थन में तेजी ला सकता है, जो खुद को कर्नाटक की क्षेत्रीय पार्टी कहती रही है. लेकिन दूसरी ओर चुनाव से पहले अगर यह विवाद शांत हुआ तो यहां लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहेगी.
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