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कर्फ्यू,हिंसा,धमकी... 66 साल पुराना कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद क्यों है?

Karnataka Maharashtra Border Row: कर्नाटक में महाराष्ट्र की गाड़ियों पर हमला,शरद पवार ने CM बोम्मई को दिया अल्टीमेटम

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कुंजी
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महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद (Karnataka-Maharashtra Border Row) गरमाता जा रहा है. दोनों राज्यों के बीच विवाद के केंद्र- कर्नाटक के बेलगावी में कन्नड़ रक्षण वेदिका संगठन के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र की गाड़ियों पर हमला कर तोड़फोड़ की है. बदले में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के कार्यकर्ताओं ने पुणे में कर्नाटक राज्य परिवहन की कम से कम 3 बसों पर "जय महाराष्ट्र" लिख दिया है.

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम फडणवीस ने इसके बाद कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई से फोन पर बात कर अपनी नाराजगी जाहिर की है और साथ ही केंद्र सरकार को स्थिति से अवगत कराया है. जबकि दूसरी तरफ NCP प्रमुख शरद पवार ने चेतावनी दी है कि अभी जो हो रहा है उसे 48 घंटे के अंदर बंद किया जाए नहीं तो वे महाराष्ट्र के नेताओं को साथ लेकर बेलगावी पहुंच जाएंगे.

सवाल है कि कर्नाटक और महाराष्ट्र की सरकार आमने-सामने क्यों है? यह सीमा विवाद कैसे और कब शुरू हुआ? दशकों से चला आ रहा यह सीमा विवाद हाल में क्यों फिर से भड़क उठा है?

कर्फ्यू,हिंसा,धमकी... 66 साल पुराना कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद क्यों है?

  1. 1. Karnataka-Maharashtra Border Row: महाराष्ट्र के मंत्रियों का दौरा और बोम्मई की चेतावनी 

    कर्नाटक के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच, मंगलवार को महाराष्ट्र के दो मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल बेलगावी का दौरा करने वाला था. ये दोनों मंत्री बेलगावी स्थित महाराष्ट्र समर्थक संगठन, मध्यवर्ती महाराष्ट्र एकीकरण समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बेलगावी जाने वाले थे.

    लेकिन बढ़ते विवाद के बीच यात्रा को आगे बढ़ा दिया गया है. इनमे से एक मंत्री देसाई ने मंगलवार सुबह पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि 'हमने दौरा रद्द नहीं किया है. हमने इसे रीशेड्यूल किया है. यह (6 दिसंबर) महापरिनिर्वाण दिवस है, और इस अवसर पर, हम नहीं चाहते कि हमारी यात्रा बेलगावी में किसी अप्रिय घटना का कारण बने.”

    बता दें कि पिछले हफ्ते ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई के कार्यालय ने अपने समकक्ष एकनाथ शिंदे के कार्यालय को पत्र लिखकर महाराष्ट्र के मंत्रियों से बेलगावी का दौरा नहीं करने का आग्रह किया था क्योंकि यह क्षेत्र के निवासियों को भड़का सकता है.

    सोमवार को मीडिया को दिए एक बयान में, बोम्मई ने कहा कि पुलिस को राज्य में उत्पन्न होने वाली किसी भी कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्होंने राज्य में प्रवेश करने की कोशिश की तो उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी.

    यहां तक कि बेलागवी जिला प्रशासन ने सोमवार को महाराष्ट्र के दो मंत्रियों और नेताओं के शहर में प्रवेश से रोकने के लिए कर्फ्यू लगाने का आदेश जारी किया था.

    हालांकि अब बेलगावी में महाराष्ट्र की गाड़ियों पर हुई हिंसा ने मामले को और भड़का दिया है. इसपर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि "महाराष्ट्र ने अबतक धैर्य रखा है लेकिन इसकी भी सीमा है. अगर महाराष्ट्र के वाहनों पर हमले 24 घंटे में नहीं रुके तो जो कुछ भी होगा उसके लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री जिम्मेदारी होंगे. महाराष्ट्र के लोगों ने संयम दिखाया है. लेकिन अगर कर्नाटक के मुख्यमंत्री भड़काऊ बयान देने जा रहे हैं, तो केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए." उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र की ओर से कोई भी फैसला लेने से पहले सीएम शिंदे को सभी पार्टियों से बात करनी चाहिए.

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  2. 2. Karnataka-Maharashtra Border Row: 1956 से शुरू होती है सीमा विवाद की कहानी

    आज से लगभग 6 दशक से भी पहले भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद सीमा विवाद शुरू हुआ. 1956 में संसद द्वारा 'राज्य पुनर्गठन अधिनियम' पारित किए जाने के बाद से ही महाराष्ट्र और कर्नाटक में राज्य की सीमा से लगे कुछ कस्बों और गांवों को शामिल करने पर विवाद हुआ.

    1 नवंबर, 1956 को मैसूर राज्य (जिसे बाद में कर्नाटक नाम दिया गया) का गठन किया गया और इसके साथ ही पड़ोसी बॉम्बे राज्य (बाद में महाराष्ट्र) के बीच मतभेद उभर आए. महाराष्ट्र का मानना था कि कर्नाटक के उत्तर-पश्चिमी जिले, बेलगावी को महाराष्ट्र का हिस्सा होना चाहिए. इसके कारण एक दशक लंबा हिंसक आंदोलन शुरू हुआ और महाराष्ट्र एकीकरण समिति (MES) का गठन हुआ.

    महाराष्ट्र के विरोध और दबाव के बीच, केंद्र सरकार ने 25 अक्टूबर, 1966 को सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मेहरचंद महाजन के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग ने आयोग ने अगस्त 1967 में अपनी रिपोर्ट दी. इसमें उसने कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र में और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में मिलाने की सिफारिश की थी.

    इस रिपोर्ट को 1970 में संसद में भी पेश किया गया था, लेकिन न इसपर चर्चा हुई और न ही कोई कानून पास हुआ. सिफारिशों को लागू न करने की स्थिति में, मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को कर्नाटक का हिस्सा बनाने की मांग बढ़ती रही.

    मामला फिर 2007 में गरमाया जब कर्नाटक ने बेलगावी पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए विधान सभा का निर्माण शुरू किया. इसका उद्घाटन 2012 में किया गया था, और यहां कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र आयोजित किए जाते हैं. हर साल शीतकालीन सत्र के समय सीमा विवाद गरमाता है.

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  3. 3. Karnataka-Maharashtra Border Row:  कोर्ट-कचहरी में क्या चल रहा?

    महाराष्ट्र ने साल 2004 में 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. महाराष्ट्र ने कर्नाटक के पांच जिलों के 865 गांवों और कस्बों को राज्य में मिलाने की मांग की थी.

    हालांकि इस याचिका के दायर होने के 18 साल बाद भी इसपर सुनवाई नहीं हुई है क्योंकि कर्नाटक ने इसको मेंटेनबिलिटी के आधार पर चुनौती दी है. कर्नाटक ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 का सहारा लेते हुए तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के पास राज्यों की सीमाओं को तय करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है, और केवल संसद के पास ही ऐसा करने की शक्ति है.
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  4. 4. Karnataka-Maharashtra Border Row: दोनों राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार, सीमा विवाद से घिरेगी पार्टी?

    दोनों राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार है और गहराते सीमा विवाद ने पार्टी के आलाकमान के सामने चुनौती पेश की है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से लेकर शरद पवार एकनाथ शिंदे-फडणवीस पर हमलावर हैं. कर्नाटक में भी अगले साल चुनाव होने हैं और यहां का बीजेपी यूनिट और सीएम बोम्मई सीमा विवाद के विषय पर कमजोर नहीं दिखना चाहते.

    सीमा विवाद का असर कर्नाटक के 6-7 विधानसभा सीटों पर देखने को मिल सकता है. हाल के दशकों में महाराष्ट्र एकीकरण समिति की राजनीतिक ताकत कम हुई है और इसका फायदा बीजेपी को मिला है. लेकिन अब उसे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का साथ मिला है और अगर सीमा विवाद चुनाव तक गरमाया रहता है तो वह बीजेपी को बड़ा डेंट दे सकती है.

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Karnataka-Maharashtra Border Row: महाराष्ट्र के मंत्रियों का दौरा और बोम्मई की चेतावनी 

कर्नाटक के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच, मंगलवार को महाराष्ट्र के दो मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल बेलगावी का दौरा करने वाला था. ये दोनों मंत्री बेलगावी स्थित महाराष्ट्र समर्थक संगठन, मध्यवर्ती महाराष्ट्र एकीकरण समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बेलगावी जाने वाले थे.

लेकिन बढ़ते विवाद के बीच यात्रा को आगे बढ़ा दिया गया है. इनमे से एक मंत्री देसाई ने मंगलवार सुबह पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि 'हमने दौरा रद्द नहीं किया है. हमने इसे रीशेड्यूल किया है. यह (6 दिसंबर) महापरिनिर्वाण दिवस है, और इस अवसर पर, हम नहीं चाहते कि हमारी यात्रा बेलगावी में किसी अप्रिय घटना का कारण बने.”

बता दें कि पिछले हफ्ते ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई के कार्यालय ने अपने समकक्ष एकनाथ शिंदे के कार्यालय को पत्र लिखकर महाराष्ट्र के मंत्रियों से बेलगावी का दौरा नहीं करने का आग्रह किया था क्योंकि यह क्षेत्र के निवासियों को भड़का सकता है.

सोमवार को मीडिया को दिए एक बयान में, बोम्मई ने कहा कि पुलिस को राज्य में उत्पन्न होने वाली किसी भी कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्होंने राज्य में प्रवेश करने की कोशिश की तो उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी.

यहां तक कि बेलागवी जिला प्रशासन ने सोमवार को महाराष्ट्र के दो मंत्रियों और नेताओं के शहर में प्रवेश से रोकने के लिए कर्फ्यू लगाने का आदेश जारी किया था.

हालांकि अब बेलगावी में महाराष्ट्र की गाड़ियों पर हुई हिंसा ने मामले को और भड़का दिया है. इसपर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि "महाराष्ट्र ने अबतक धैर्य रखा है लेकिन इसकी भी सीमा है. अगर महाराष्ट्र के वाहनों पर हमले 24 घंटे में नहीं रुके तो जो कुछ भी होगा उसके लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री जिम्मेदारी होंगे. महाराष्ट्र के लोगों ने संयम दिखाया है. लेकिन अगर कर्नाटक के मुख्यमंत्री भड़काऊ बयान देने जा रहे हैं, तो केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए." उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र की ओर से कोई भी फैसला लेने से पहले सीएम शिंदे को सभी पार्टियों से बात करनी चाहिए.

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Karnataka-Maharashtra Border Row: 1956 से शुरू होती है सीमा विवाद की कहानी

आज से लगभग 6 दशक से भी पहले भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद सीमा विवाद शुरू हुआ. 1956 में संसद द्वारा 'राज्य पुनर्गठन अधिनियम' पारित किए जाने के बाद से ही महाराष्ट्र और कर्नाटक में राज्य की सीमा से लगे कुछ कस्बों और गांवों को शामिल करने पर विवाद हुआ.

1 नवंबर, 1956 को मैसूर राज्य (जिसे बाद में कर्नाटक नाम दिया गया) का गठन किया गया और इसके साथ ही पड़ोसी बॉम्बे राज्य (बाद में महाराष्ट्र) के बीच मतभेद उभर आए. महाराष्ट्र का मानना था कि कर्नाटक के उत्तर-पश्चिमी जिले, बेलगावी को महाराष्ट्र का हिस्सा होना चाहिए. इसके कारण एक दशक लंबा हिंसक आंदोलन शुरू हुआ और महाराष्ट्र एकीकरण समिति (MES) का गठन हुआ.

महाराष्ट्र के विरोध और दबाव के बीच, केंद्र सरकार ने 25 अक्टूबर, 1966 को सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मेहरचंद महाजन के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग ने आयोग ने अगस्त 1967 में अपनी रिपोर्ट दी. इसमें उसने कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र में और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में मिलाने की सिफारिश की थी.

इस रिपोर्ट को 1970 में संसद में भी पेश किया गया था, लेकिन न इसपर चर्चा हुई और न ही कोई कानून पास हुआ. सिफारिशों को लागू न करने की स्थिति में, मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को कर्नाटक का हिस्सा बनाने की मांग बढ़ती रही.

मामला फिर 2007 में गरमाया जब कर्नाटक ने बेलगावी पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए विधान सभा का निर्माण शुरू किया. इसका उद्घाटन 2012 में किया गया था, और यहां कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र आयोजित किए जाते हैं. हर साल शीतकालीन सत्र के समय सीमा विवाद गरमाता है.

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Karnataka-Maharashtra Border Row:  कोर्ट-कचहरी में क्या चल रहा?

महाराष्ट्र ने साल 2004 में 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. महाराष्ट्र ने कर्नाटक के पांच जिलों के 865 गांवों और कस्बों को राज्य में मिलाने की मांग की थी.

हालांकि इस याचिका के दायर होने के 18 साल बाद भी इसपर सुनवाई नहीं हुई है क्योंकि कर्नाटक ने इसको मेंटेनबिलिटी के आधार पर चुनौती दी है. कर्नाटक ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 का सहारा लेते हुए तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के पास राज्यों की सीमाओं को तय करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है, और केवल संसद के पास ही ऐसा करने की शक्ति है.
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Karnataka-Maharashtra Border Row: दोनों राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार, सीमा विवाद से घिरेगी पार्टी?

दोनों राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार है और गहराते सीमा विवाद ने पार्टी के आलाकमान के सामने चुनौती पेश की है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से लेकर शरद पवार एकनाथ शिंदे-फडणवीस पर हमलावर हैं. कर्नाटक में भी अगले साल चुनाव होने हैं और यहां का बीजेपी यूनिट और सीएम बोम्मई सीमा विवाद के विषय पर कमजोर नहीं दिखना चाहते.

सीमा विवाद का असर कर्नाटक के 6-7 विधानसभा सीटों पर देखने को मिल सकता है. हाल के दशकों में महाराष्ट्र एकीकरण समिति की राजनीतिक ताकत कम हुई है और इसका फायदा बीजेपी को मिला है. लेकिन अब उसे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का साथ मिला है और अगर सीमा विवाद चुनाव तक गरमाया रहता है तो वह बीजेपी को बड़ा डेंट दे सकती है.

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