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तेलंगाना गठन (Telangana formation) की नौवीं वर्षगांठ से एक दिन पहले 1 जून को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता और तेलंगाना के आईटी मंत्री के तारक रामा राव राज्य में पार्टी के भविष्य को लेकर काफी आश्वस्त दिखाई दिए. केटी रामा राव केटीआर के नाम से लोकप्रिय हैं. उन्होंने बंजारा हिल्स (हैदराबाद) स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि “तेलंगाना में हम तीसरी बार सरकार बनाएंगे और केसीआर गारू (तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव) राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे.”
2023 के अंत तक तेलंगाना विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अध्ययन और दृढ़ संकल्प के साथ गुलाबी पार्टी को लेकर अपनी कमर कस ली हैं, जोकि बीआरएस के लिए अप्रिय झटके प्रस्तुत कर सकता है. हालांकि, केटीआर ने यह खुलासा कर दिया है कि भारतीय संसद में विपक्ष के भीतर बीआरएस की स्थिति क्या होगी.
द क्विंट को मिली जानकारी के मुताबिक, डाटा या आंकड़ों के आधार पर बीआरएस खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का विरोध करते हुए नहीं देखती है. आखिरकार, 2024 के लोकसभा चुनावों से एक साल पहले भी देश में लोकप्रियता के मामले में मोदी की रैंकिंग अभी भी सबसे ज्यादा है, NDTV-CSDS सर्वे के आंकड़ों के अनुसार 43 फीसदी उत्तरदाताओं ने मोदी को 2023 में अपने पीएम उम्मीदवार के रूप में चुना है. यह दर्शाता है कि मोदी को पूरे देश में समर्थन का मजबूत स्तर प्राप्त है.
जब केटीआर से यह सवाल किया गया कि क्या बीआरएस बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयोजित होने वाली विपक्ष की बैठक में शामिल होगी? इस पर उन्होंने कहा कि 'जहां तक मुझे पता है, हमें न्योता नहीं मिला है.' हालांकि, विपक्षी बैठक (जोकि 12 जून को निर्धारित है) में शामिल होने के लिए बीआरएस की अनिच्छा या हिचकिचाहट केवल 'निमंत्रण नहीं आने' के बारे में नहीं है, बल्कि इससे कहीं बढ़कर है. केटीआर ने आगे समझाते हुए बताया कि मोदी पर हमला करने के इर्द-गिर्द केंद्रित 'विपक्षी एकता' बीआरएस के लिए काम क्यों नहीं करती है :
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में बीजेपी का जोरदार विरोध करने वाली बीआरएस ने चुनावी साल में रणनीतिक यू-टर्न ले लिया है. केटीआर द्वारा जो प्रेस मीटिंग की गई थी, उससे लोकसभा चुनाव में बीजेपी का सामना करने को लेकर पार्टी (बीआरएस) का स्टैंड साफ नजर आ रहा है. इसके साथ ही कर्नाटक में कांग्रेस और दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अपने-अपने राज्यों के चुनाव प्रचार के दौरान क्या और कैसे किया था? उस पर भी बीआरएस की नजर है.
जो प्रेस मीट आयोजित की गई थी, उसका एक बड़ा हिस्सा तेलंगाना में पार्टी द्वारा किए गए कार्यों पर केंद्रित था, जहां रामा राव ने राज्य में पानी, धन और रोजगार लाने में बीआरएस के योगदान के बारे में बात की थी. ये सभी क्षेत्र कभी आंध्र प्रदेश में 'उपेक्षित' क्षेत्रों थे. यह मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी (बीआरएस) के भविष्य के बारे में था. इसका मतलब यह है कि विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच भी बीआरएस, जिसे पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नाम से जाना जाता था, अभी भी सक्रिय रूप से अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पीछा कर रही है. टीआरएस ने 2022 में राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया था.
केटीआर ने कहा :
2024 के लोकसभा चुनावों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बीआरएस नेता ने कहा "मुझे लगता है कि पीएम मोदी को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए क्योंकि वह भारत के सबसे अयोग्य, अक्षम और अप्रभावी प्रधान मंत्री हैं."
केटीआर के बयानों में विरोधाभास वैसा ही है जैसा रुख आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनावों में अपनाया था और उस चुनाव में AAP ने जोरदार जीत हासिल की थी. AAP का कैंपेन स्थानीय मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर केंद्रित था. इसी तरह, कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी और उसके स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी के ध्रुवीकरण बयानबाजी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय उसने अपने पांच चुनावी वादों पर ध्यान केंद्रित किया. कांग्रेस ने वादे सामाजिक न्याय पर पार्टी की व्यापक बयानबाजी के बीच लोगों के लिए भरोसेमंद कल्याणकारी उपायों की पेशकश करते थे.
तमिलनाडु में, 2019 के लोकसभा चुनावों और 2021 के विधानसभा चुनावों में DMK ने हिंदुत्व विरोधी बयानबाजी पर काम करते हुए भारी बहुमत हासिल किया. मोदी के कट्टर आलोचकों में से एक मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अपनी पार्टी की धर्मनिरपेक्ष द्रविड़ राजनीति को बीजेपी के खिलाफ खड़ा कर दिया. केरल में भी 2021 में कार्यालय में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने से पहले सीपीआई (एम) के पिनाराई विजयन ने भी धर्मनिरपेक्ष राजनीति के चैंपियन के तौर पर खुद को कांग्रेस से ऊपर रखा था.
लेकिन तमिलनाडु और केरल, तेलंगाना और शेष दक्षिण भारत और भारत नहीं हैं. लंबे समय तक सामाजिक न्याय आंदोलनों और वामपंथी झुकाव वाले राजनीतिक इतिहास ने यह सुनिश्चित किया है कि धर्मनिरपेक्षता तमिलनाडु और केरल में स्थानीय राजनीतिक चेतना और सामाजिक ताने-बाने में बुनी गई है. 21वीं सदी और इसके दक्षिणपंथी मोड़ ने इस लोकाचार को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया है.
ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने यह समझ लिया है कि जिन जगहों पर दक्षिणपंथी मोड़ आ रहा है या चल रहा है, वहां भगवा पार्टी की शर्तों पर बीजेपी का विरोध (खासकर मोदी के प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्तित्व के खिलाफ मोर्चा खोलकर) नहीं किया जा सकता है. राजनीतिक चर्चा को मोदी के इर्द-गिर्द केन्द्रित करने की अनिच्छा के बावजूद, बीआरएस से यह स्पष्ट है कि चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद गठबंधन 2024 में हो सकता है. उदाहरण के लिए, तेलंगाना में आयोजित बीआरएस के लॉन्चिंग समारोह सहित लगभग सभी बड़े राजनीतिक कार्यक्रमों में, राष्ट्रीय नेताओं, विशेष रूप से आम आदमी पार्टी के नेताओं को आमंत्रित किया गया था.
हालांकि, यह देखते हुए कि कांग्रेस अपने मूल राज्य में मुख्य विपक्षी दल भी है, बीआरएस का इस पुरानी पार्टी के साथ तनावपूर्ण संबंध रहा है. कांग्रेस ने भी यह दूरी बना रखी है. हाल ही में जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में बीआरएस, आम आदमी पार्टी और सीपीआई (एम) को आमंत्रित नहीं किया गया था.
जब द क्विंट ने केटीआर से अरविंद केजरीवाल के साथ केसीआर की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस बारे में सवाल किया. जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने (केजरीवाल ने) मांग की थी कि दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण पर अध्यादेश के खिलाफ 'विपक्षी एकता' के रूप में क्या समझा जा सकता है, तो उन्होंने (केटीआर ने) स्पष्ट किया था कि "गठबंधन किसी का विरोध करने या किसी को 'गद्दी से उतारने' के बारे में नहीं होना चाहिए. जनता भी इस तरह के नकारात्मक एजेंडे को पसंद नहीं करेगी. इस एकता को बनाने के लिए एक सामान्य एजेंडा, एक सकारात्मक एजेंडा होना चाहिए. जैसे कि शासन (गवर्नेंस) के एक बेहतर मॉडल की तरह होना चाहिए."
केटीआर ने क्विंट के सवाल में यह कहते हुए अपनी बात जारी रखी कि भविष्य के गठबंधन के लिए बीआरएस एक विपक्षी पार्टी को दूसरे पर समर्थन नहीं करती है. लेकिन इस तरह की साझेदारी करने से पहले स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखा जाएगा. “उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में जहां ममता बनर्जी बीजेपी को एक भारी राजनीतिक खतरा पा सकती हैं, वह भविष्य के सहयोगी के रूप में कांग्रेस को लेकर अनुकूल रूप से सोच सकती हैं. लेकिन तेलंगाना में टीआरएस को कांग्रेस और बीजेपी दोनों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए, यहां किसी के साथ गठबंधन करने या काम करने की कोई गुंजाइश नहीं है.”
बीआरएस द्वारा विपक्ष से एक रणनीतिक दूरी बनाए रखने का मतलब यह भी है कि यह पार्टी देश में बड़े राजनीतिक मंथन (जहां नीतीश कुमार जैसे दिग्गज नेता मोदी की राजनीति का विरोध करने के लिए आगे आए हैं) में शामिल नहीं होगी. क्या बीआरएस के रुख से लोकसभा में पार्टी को फायदा होगा या इसकी हार होगी? तेलंगाना विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर बीआरएस का राष्ट्रीय भविष्य निर्भर करता है.
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