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पिछले कई सालों से बीजेपी (BJP) के बड़े से लेकर छोटे नेता 'कांग्रेस मुक्त भारत' की बात कह रहे हैं, और शायद कांग्रेस (Congress) खुद भी 'मुक्ती' मोड में है. अब कांग्रेस समर्थक मुझसे भड़ककर कहेंगे- जनाब ऐसे कैसे? फिर मैं कहूंगा कि खुद देखिए कैसे एक के बाद एक पुराने कांग्रेसी पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. फिर कांग्रेसी कहेंगे, जो छोड़कर जा रहे हैं वे मौका परस्त थे.. मतलबी थे.. ईडी, सीबीआई का डर दिखाया गया. फिर मैं कहूंगा बात थोड़ी सही है, 'डर सबको लगता है गला सबका सूखता है, लेकिन ये सच भी तो है कि 'नाच न जाने तो आंगन टेढ़ा'.
इन सबके बीच सवाल ये है कि क्या प्रॉब्लम कांग्रेस में है या छोड़कर जाने वाले नेताओं में? इस वीडियो और लेख में समझिए कि कांग्रेस कहां चूक कर रही है, और कैसे ग्रैंड ओल्ड पार्टी चाहे तो ओल्ड इज गोल्ड बन सकती है? नहीं तो कांग्रेस समर्थक पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
अब कांग्रेस कहां चूक कर रही है और कैसे कोर्स करेक्शन की जरूरत है? उससे पहले थोड़ा पानी की गहराई में उतरते हैं.
अभी वैलेंटाइन के महीने में मध्यप्रदेश से कांग्रेसी नेता कमलनाथ के कमल का फूल यानी बीजेपी का गुलदस्ता थामने की खबरों पर विराम लगा ही थी कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के विधायकों के ब्रेकअप की खबरें आ गई. राज्यसभा चुनाव में पार्टी के 6 विधायकों ने बगावत की, पार्टी के खिलाफ वोट डाला, सुक्खू सरकार के अहम मंत्री और वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने इस्तीफे की पेशकश कर दी.
सवाल है कि क्या ये सब अचानक हुआ? जवाब है नहीं.. लेकिन आप कांग्रेस का भोलापन देखिए और कांग्रेस नेता जयराम रमेश की ये पोस्ट देखिए.
यहां दो शब्द हैं: कांग्रेस नेतृत्व के हस्तक्षेप और तत्परता.. मतलब राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, अभिशेक मनु सिंघवी चुनाव हार गए, विक्रमादित्य सिंह ने इस्तीफे की पेशकश कर दी, हिमाचल कांग्रेस की अध्यक्ष पार्टी पर सवाल उठा रही हैं, और जयराम रमेश कह रहे हैं कि तत्परता के बाद सब कंट्रोल में है. इसे तत्परता कहते हैं?
तो सवाल है कि क्या इस घटना ने पार्टी को कमजोर नहीं किया? क्या इस बार भी कांग्रेस ने वही नहीं किया जो पहले से करती आई है? संकट का हल नहीं निकालना बल्कि बस टालना.
संकट टालने के उदाहरण देखिए-
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच तनातनी और सचिन पायलट का उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना, राजस्थान में सत्ता गंवाना.
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस देव सिंह के बीच कलह. पार्टी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
कर्नाटक में सिद्दारमैया और डीके शिवकुमार में मनभेद.
कांग्रेस छोड़कर जाने वालों की लिस्ट भी लंबी है.. महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक च्वहाण, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्या सिंधिया, आरपीएन सिंह, सुष्मिता देव, कैप्टन अमरिंदर सिंह, हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़, कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद. ये तो कुछ नाम हैं. 2019 के बाद से अब तक कांग्रेस को एक दर्जन से ज्यादा बड़े नाम वाले नेता अलविदा कह चुके हैं.
अब कुछ लोग कहेंगे ये सब मौका परस्त हैं, सबने धोखा दिया है, ये अनैतिक है, या इन्हें ईडी का डर दिखाया गया. आपकी बात बहुत हद तक मान ली जाएगी. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये कह देना काफी है? ये सारे तर्क सिर्फ अपने बचाव के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. जबकि असल में राजनीति ऐसी ही है.
कांग्रेस ने भी तो अपने विरोधियों से हाथ मिलाया है. आप खुद देख लीजिए. अन्ना आंदोलन के जरिए केजरीवाल का सत्ता में खुद भी आना और बीजेपी का मजबूत होना और अब उसी आम आदमी पार्टी से दोस्ती. या फिर एनसीपी के शरद पवार का साथ आना. वक्त पड़ने पर अपने से ठीक उलट विचारधारा वाले शिवसेना यानी उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर सरकार बनाना.
ये सबको पता था कि नीतीश कुमार करीब दो दशक एनडीए के साथ थे, तब भी उनके साथ कांग्रेस ने मिलकर 'इंडिया' गुट बनाया.
साल 2013 की बात है, अप्रैल महीने में मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में पार्टी के एक कार्यक्रम में कहा था- "कांग्रेस से लड़ना आसान नहीं है. जेल में डाल देगी. सीबीआई पीछे लगा देगी."
वही समाजवादी पार्टी आज लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने जा रही है. तो राजनीति में नैतिकता का पाठ ठीक वैसा ही जान पड़ता है जैसे खुद की कमीज को ज्यादा सफेद बताना.
चलिए मान लिया ईडी, सरकारी एजेंसी के डर से ही सब पार्टी छोड़ गए. लेकिन इंडिया गुट बनाने और सीट बंटवारे पर देरी को लेकर नीतीश से लेकर केजरीवाल, अखिलेश सब आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं. इसमें किसकी गलती है?
कांग्रेस की कमियों पर थेसिस लिखी जा सकती है, लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है कोर्स करेक्शन.
2019 लोकसभा चुनाव के दौरान मेरी बात गोरखपुर से बीजेपी उम्मीदवार रवि किशन से हुई थी, रवि किशन 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर से चुनाव लड़े थे. तब वो हार गए थे. रवि किशन ने मुझसे कहा था कि जब मैं हारा तो उसके बाद आलाकमान ने एक फोन नहीं किया. मतलब कम्यूनिकेशन गैप है, जिसे लेकर अशोक च्वाहण से लेकर कई नेता कह चुके हैं.
कांग्रेस को एक कोर्स करेक्शन की जरूरत है. वो है राहुल गांधी को लेकर.
राहुल गांधी भारत जोड़ों यात्रा पर हैं, लेकिन एक लीडर होने के नाते पार्टी जोड़ो की जिम्मेदारी भी उनकी है. सिर्फ ये कह देने से काम नहीं चलेगा कि जाने दो. डरपोक थे चले गए. राजनीति में मैसेजिंग बहुत अहम है. इंडिया गुट वाले राहुल गांधी को शाहरुख खान की चक दे इंडिया देखना चाहिए. टूटे हुए, कमजोर टीम को कैसे जोड़ा जाता है.
एक और अहम कोर्स करेक्शन- टिकट बंटवारे के बाद टिकट वापस ले लेने की आदत. या बार-बार चुनाव हार रहे सीनियर नेताओं के टिकट की मांग करना. कांग्रेस को जिंदा रहना है तो कठोर फैसले लेने होंगे. बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बदल देती है और आपकी पार्टी में सत्ता का मोह ऐसा है कि सरकार गिर जाए लेकिन कुर्सी न जाए.
बीजेपी 24x7 मोड में काम करती है, तो अगर आपको 'कांग्रेस मुक्त योजना' से बचना है तो चाणक्य से जुड़ी एक लाइन को समझना होगा.
कौटिल्य की प्रसिद्ध रचना है 'अर्थशास्त्र'. इसमें चाणक्य 7वें अध्याय में कहते हैं कि बलवान व्यक्ति को बल द्वारा जीतना मुश्किल है, इसलिए उसे उसके अनुकूल व्यवहार करके वश में कर लें. शत्रु को उसके प्रतिकूल व्यवहार से पराजित करें. अब कांग्रेस को ये मंत्र चाहिए तो वीडियो देखें. नहीं तो कांग्रेस कार्यकर्ता और समर्थक कहेंगे जनाब ऐसे कैसे?
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